Fishermen s Struggles in Hemjapur Panchayat Government Neglect and Lack of Support बोले मुंगेर: आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं की मिले जानकारी, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsBhagalpur NewsFishermen s Struggles in Hemjapur Panchayat Government Neglect and Lack of Support

बोले मुंगेर: आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं की मिले जानकारी

हेमजापुर पंचायत के तिरासी टोला के मछुआरे सरकारी उपेक्षा का शिकार हैं। लगभग 500 मछुआरों में से केवल 18 निबंधित हैं। महंगे जाल और डीजल की कमी के कारण मछुआरे पलायन कर रहे हैं। असामाजिक तत्वों का डर और...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरWed, 14 May 2025 10:05 PM
share Share
Follow Us on
बोले मुंगेर: आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं की मिले जानकारी

गंगा के किनारे बसे हेमजापुर पंचायत के तिरासी टोला के मछुआरे आज भी उपेक्षा और सरकारी अनदेखी के शिकार हैं। जहां एक ओर यह समुदाय सदियों से अपनी जीविका गंगा नदी के जल से प्राप्त करता रहा है, वहीं दूसरी ओर आज उनकी पहचान, अधिकार और सुरक्षा की उपेक्षा की जा रही है। आधुनिक तकनीक और सरकारी योजनाओं की पहुंच से दूर यह समुदाय बुनियादी सुविधाओं और समर्थन के लिए आज भी संघर्ष कर रहा है। उनके संघर्ष को उजागर करने के लिए हेमजापुर में मछुआरा समुदाय के साथ अपने हिन्दुस्तान समाचार पत्र द्वारा संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें उन्होंने अपने संघर्ष एवं दर्द को हमारे समक्ष रखा।

मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड में हेमजापुर पंचायत का तिरासी टोला मछुआरों की बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है। इस गांव में लगभग 500 मछुआरों के परिवार हैं और लगभग 2000 आबादी है। इसके साथ ही गांव में लगभग 700 से अधिक मतदाता हैं। इनमें से अधिकांश परिवार मछली पकड़ने के पारंपरिक कार्य से जुड़े हैं। लेकिन, आज विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त यह समुदाय अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़कर यहां से पलायन करने को मजबूर हैं। आज यहां स्थिति यह है कि, लगभग 200 मछुआरे ही अपने पारंपरिक कार्य से जुड़े हुए हैं। जबकि, अधिकांश मछुआरे रोजी- रोजगार की तलाश में दूसरे जगह पलायन कर गए हैं।

संवाद के दौरान मछुआरों ने बताया कि, हमारा गांव पूरी तरह से सरकारी उपेक्षा का शिकार है। हमारी आवाज शायद ही शासन-प्रशासन तक पहुंच पाती है। यही कारण है कि, यहां के 500 मछुआरों में से केवल 18 मछुआरे ही निबंधित हैं। बांकी मछुआरे बिना किसी सरकारी पहचान के अपने पारंपरिक व्यवसाय में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि, हम गोछैल, छौनी, दसौन, अठावन और तेनी जैसे जाल बनाते हैं, जिनकी लागत प्रति जाल लगभग 1.5 लाख रुपए तक आती है। इसके अलावा डेंगी (छोटी नाव) है, जो उनके मछली पकड़ने के मुख्य साधन हैं। यह भी काफी महंगा होता है। हम डेंगी के सहारे पूरी रात गंगा नदी में जाल डालकर मेहनत करते हैं, लेकिन कई बार डीजल जलाने एवं रात भर जागकर मेहनत करने के बाद भी हमें मछली नहीं मिलती है। सरकार यदि अनुदान पर डीजल उपलब्ध कराती तो हमें काफी राहत मिलती। उन्होंने कहा कि, सबसे अधिक मछली कार्तिक महीने में मिलती है और पूरे प्रखंड में औसतन प्रतिदिन 1 क्विंटल मछली पकड़ी जाती है, जिससे सालाना लगभग 80 हजार किलो मछली का उत्पादन होता है। पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के शासनकाल में जल कर मुफ्त कर दिया गया था, जिससे मछुआरों को राहत मिली थी। लेकिन, अब गंगा के विभिन्न हिस्सों को जल कर के रूप में दबंगों के हाथों सौंप दिया गया है, जो गंगा के बड़े हिस्से को जाल से घेर लेते हैं। ऐसे में हम स्थानीय मछुआरे मछली पकड़ नहीं पाते हैं।

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि, हमारे गांव के मछुआरे राज्य मछुआरा बोर्ड के मेंबर कोड से वंचित हैं। ऐसे में, किसी भी आपदा या संकट के समय हमें सरकारी सहायता नहीं मिल पाती है। उनका कहना था कि, मुंगेर के अन्य क्षेत्रों के मछुआरों के पास मेंबर कार्ड एवं कोड है, लेकिन यहां के मछुआरों को अब तक यह मेंबर कार्ड एवं कोड नहीं मिला है। यही नहीं, हमारे लिए स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब रात के अंधेरे में असामाजिक तत्व जबरन हम मछुआरों से मछली लूट लेते हैं या हमें धमकाते हैं। लेकिन, हमें कोई प्रशासनिक सुरक्षा हासिल नहीं होती है।

उन्होंने कहा कि, बंगाल के तर्ज पर यहां भी एक शेड का निर्माण होना चाहिए, जहां हम अपने महंगे जालों को बारिश और धूप से सुरक्षित रख सकें और आराम से जालों का निर्माण कर सकें। इसके साथ ही प्रशासन हम मछुआरों को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करे, ताकि हम मछुआरे बिना डर के अपने पारंपरिक कार्य को जारी रख सकें। हमें भी राज्य मछुआरा बोर्ड का मेंबर कार्ड एवं कोड मिले, ताकि विपरीत परिस्थिति में हम सरकारी सहायता प्राप्त कर सकें। हमें अनुदानित दर पर डीजल के साथ-साथ जाल बनाने के सामान भी सरकार उपलब्ध कराये। इसके अलावा पूर्व की भांति फिर से हमें जल कर से मुक्त किया जाए और हमारा निबंधन हो।

निष्कर्ष:

हेमजापुर पंचायत के तिरासी टोला के मछुआरे आज भी मूलभूत अधिकारों, सरकारी योजनाओं और सुरक्षा से वंचित हैं। यह समुदाय अपने परिश्रम से जल को जीवन बना रहा है, लेकिन सरकारी नीति और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण ये लगातार हाशिए पर जा रहे हैं। ऐसे में,अब समय है कि, सरकार इनकी मांगों पर ध्यान दे और इन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठाए।

इंफोग्राफिक:

1. हेमजापुर पंचायत के तिरासी टोला मेंं मछुआरों के लगभग 500 परिवार रहते हैं जिनकी आबादी लगभग 2000 है।

2. यहां लगभग 700 मतदाता हैं।

3. आज इस गांव में लगभग 200 मछुआरे ही अपने पारंपरिक कार्य से जुड़े हुए हैं और मात्र 18 मछुआरे ही निबंधित हैं।

समस्याएं:

1. हेमजापुर पंचायत के तिरासी टोला में 500 मछुआरों में से केवल 18 ही निबंधित हैं, बांकी बिना सरकारी पहचान के काम कर रहे हैं।

2. डीजल, जाल एवं नाव महंगे हो गए हैं, लेकिन इन मछुआरों को सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती है।

3. गंगा के हिस्से दबंगों को सौंप दिए गए हैं, जो मछुआरों को काम नहीं करने देते।

4. असामाजिक तत्व रात में मछुआरों से मछली लूट लेते हैं या धमकाते हैं। इन्हें कोई सुरक्षा हासिल नहीं है।

5. बारिश या धूप से जाल बचाने के लिए कोई शेड या संरचना उपलब्ध नहीं है, जिससे इन्हें नुकसान होता है।

सुझाव:

1. पंचायत या प्रखंड स्तर पर विशेष शिविर लगाकर सभी मछुआरों क समूह निबंधन कर राज्य मछुआरा बोर्ड से जोड़ा जाए।

2. सरकार मछुआरों को अनुदानित दर पर डीजल तथा नाव एवं जाल निर्माण सामग्री उपलब्ध कराए।

3. पूर्व की तरह गंगा नदी के हिस्सों को स्थानीय मछुआरों के लिए मुफ्त या प्राथमिकता आधार पर आरक्षित किया जाए।

4. स्थानीय पुलिस चौकी के द्वारा नदी में पुलिस गश्ती की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि असामाजिक गतिविधियों पर नियंत्रण हो।

5. बंगाल की तर्ज पर एक स्थायी शेड का निर्माण कराया जाए जहां मछुआरे अपने उपकरण सुरक्षित रख सकें और कार्य कर सकें।

हमारी भी सुनें:

जिलेभर में मछुआरों के लिए तालाब और मत्स्य से जुड़ी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है, ताकि लाभ मिल सके।

-रोशन कुमार

मछुआरों को कम से कम 3 महीने तक आर्थिक मदद मिलनी चाहिए, क्योंकि सरकार 3 महीने मछली निकालने पर पाबंदी लगा देती है।

-सरवन

मछली पकड़ने में निजी जमीन के समीप बहने वाली नदी में किसानों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, झंझट होता रहता है।

-विजय सहनी

नदियों में मछली मारने के लिए दवा के प्रयोग पर अंकुश लगना चाहिए, यह खतरनाक है। इससे ग्राहक पर भी बुरा असर पड़ता है।

-अंकित कुमार

विलुप्त हो रही मछली की प्रजातियों को संरक्षण की जरूरत है, इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रयास होने चाहिए।

-रामवृक्ष

हम लोगों को जल स्रोत का उचित उपयोग किया जाए, तो जिले में बेहतर मछली उत्पादन की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।

-प्रवीण

सहनी जातियों को आरक्षण मिलना चाहिए और सस्ते दरों पर ऋण भी मुहैया करानी चाहिए। इससे आजीविका का संकट दूर होगा।

-धौरीक सहनी

इन लोगों को मत्स्य विभाग की तरफ से किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दी जाती है, जबकि एक जाल और एक डेंगी बनाने में इनको डेढ़ लाख का खर्च आता है।

-लक्ष्मी सहनी

हेमजापुर पंचायत के तिरासी गांव के मछुआरे को पंजीकृत किया जाए, ताकि अपनी हक की लड़ाई लड़ सकें।

-राहुल सहनी

मत्स्य पालन में रुचि रखने वाले मछुआरों को मत्स्य विभाग द्वारा प्रशिक्षण दिया जाए और रोजगार के लिए समुचित अवसर दिए जाएं।

-नारायण सहनी

बंगाल में जिस तरह मछली का क्रॉस पालन होता है, उसी प्रकार बिहार सरकार को भी करना चाहिए। इससे उत्पादन बढ़ेगा।

-अजय

बंगाल के तर्ज पर बिहार में मछली पालन को बढ़ावा मिलना चाहिए। मत्स्य विभाग हमें इसके लिए प्रोत्साहित करे।

-रागो सहनी

यह लोग जाल बनाकर अपना जीवन यापन करते हैं। एक जाल और डेंगी बनाने में लगभग डेढ़ लाख रुपए खर्च आता है। प्रति किलो जाल 2000 रुपए खरीद पड़ता है।

-जागो सहनी

जाल बनाने के लिए मछुआरे को शेड बनाकर देना चाहिए, जिससे आसानी से ये लोग जाल निर्माण कर अपना जीवन यापन कर सकें।

-बमबम सहनी

लालू यादव के समय में जलकर को फ्री कर दिया गया था, लेकिन वर्तमान सरकार मछुआरों पर मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगा रही है।

-आत्मदेव

दबंगों के द्वारा मछुआरों को गंगा दियारा क्षेत्र में परेशान किया जाता है, जबकि सुबह-शाम मेहनत करते हैं और जब मछली पकड़कर बेचने के लिए लाते हैं, तो बदमाशों के द्वारा मछली को लूट लिया जाता है।

-राजीव सहनी

बोले जनप्रतिनिधि:

मछुआरे लोग वर्षों से राजनेताओं की उपेक्षा के शिकार हैं। ना ही कभी कोई मत्स्य विभाग का अधिकारी इनसे मिलने आया और ना ही इनका हालचाल जानने आया। मछुआरे भाई बोलते हैं, केवल चुनाव के समय में राजनेता लोग आते हैं – अबकी बार यह कर देंगे, अबकी बार वह कर देंगे – झूठा दिलासा देकर आज तक हम लोगों को केवल ठगा गया है।

-ऋतुराज बसंत, एक्टिविस्ट

बोले जिम्मेदार:

गंगा फ्री फिशिंग जोन है। यहां से जल कर नहीं लिया जाता है। यदि यहां कोई निबंधित मछुआरों को फिशिंग करने से मन करता है तो यह गैरकानूनी है। ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। अभी नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड के नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन हो रहा है। यह रजिस्ट्रेशन फ्री हो रहा है। जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है वे कार्यालय आकर मिलें। अथवा उस गांव के कुछ लोग कार्यालय में मुझसे मिलें। मैं उनके गांव में ही रजिस्ट्रेशन के लिए भीएलई भेज दूंगा। रजिस्ट्रेशन के बाद मछुआरों का बीमा भी किया जाएगा। जहां तक शेड निर्माण करने एवं अनुदान की बात है तो यह एक नीतिगत मामला है जिस पर सरकार ही कोई निर्णय ले सकती है।

-मनीष रस्तोगी, जिला मत्स्य पदाधिकारी,

मुंगेर

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।