बोले हजारीबाग: लेबर कार्ड जल्द बनवा दें और काम भी दिलवाएं
हजारीबाग के श्रमिक, जो असंगठित और अकुशल हैं, अपनी समस्याओं को लेकर चिंतित हैं। वे रोज़ काम की तलाश में निकलते हैं लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पा रहे हैं। उनका कहना है कि पंजीकरण के लिए आवश्यक...

हजारीबाग। जिले की अर्थव्यवस्था का असली आधार वे श्रमिक हैं, जो हर सुबह कोर्रा चौक, कल्लू चौक और पंचमंदिर चौक पर काम की तलाश में जुटते हैं। ये असंगठित और अकुशल श्रमिक हजारीबाग की अनदेखी रीढ़ हैं, जिनके बिना निर्माण, खेती और अन्य सेवाएं ठप पड़ जाएं। इनको किसी तरह की योजना का लाभ सही से नहीं मिलता है। श्रमिकों ने हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित कार्यक्रम बोले हजारीबाग के माध्यम से अपनी पीड़ा रखते हुए लेबर कार्ड बनवाने और रोजगार भी दिलवाने की गुहार स्थानीय शासन-प्रशासन से लगायी है। एक उम्मीद की पोटली बांध कर मजदूर सुबह निकलते है कि रोजी मिलेगी तो एक दिन सुकून की दो रोटी खा सकेगा।
जिसके लिए वह हर दिन कुआं खोदता है। जीवन की भागदौड़ के बीच खुद को पीछे छुटता देखता है। वादों और आश्वासन की लंबी डोर में ख़ुद को फंसा पाता है। हजारीबाग भी इसका अपवाद नहीं है। मजदूरों के पास न लेबर कार्ड है, न ही वे रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हैं। इनकी सबसे बड़ी समस्या है कि सरकारी योजनाओं और पोर्टलों पर खुद को पंजीकृत करना इनके लिए लगभग असंभव कार्य है। कोर्रा चौक के मजदूर बताते हैं कि रजिस्ट्रेशन के लिए इतने दस्तावेज मांगे जाते हैं कि उन्हें इकट्ठा करने में दो-तीन दिन की दिहाड़ी चली जाती है। जब वोटर कार्ड और आधार कार्ड गांव में या घर आकर बनाए जा सकते हैं, तो लेबर कार्ड क्यों नहीं? श्रम विभाग के अधिकारी अगर कोर्रा चौक पर एक सप्ताह तक रोजाना सिर्फ एक घंटे के लिए कैंप लगाएं, तो मजदूरों का पंजीकरण बिना दफ्तर दौड़ और बिना दिहाड़ी गंवाए हो सकता है। बैंक खाता खोलने के लिए भी इसी तरह बैंक कर्मियों को शिविर लगाना चाहिए। जब तक मजदूरों के खाते नहीं खुलते, तब तक वे किसी भी डिजिटल पोर्टल पर पंजीकृत नहीं हो सकते। चूंकि अधिकतर मजदूर अशिक्षित या मुश्किल से मैट्रिक पास हैं, इसलिए वे डिजिटल साक्षरता के लिहाज से पूरी तरह अंजान हैं। ऐसे में सरकार उनसे उम्मीद करती है कि वे खुद से पोर्टल पर जाकर पंजीकरण करें। मजदूरों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में उनके सुख-दुख की परवाह करती है, तो उसने आज तक किसी अधिकारी को श्रमिक चौक पर क्यों नहीं भेजा? जिन मजदूरों को बड़ी कंपनियों में काम मिलता है, उन्हें उनके ठेकेदार ही सरकारी योजनाओं से जोड़ देते हैं। असली दिक्कत उन असंगठित मजदूरों की है, जिन्हें सबसे अधिक सरकारी सहयोग की जरूरत है, पर वे सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं। अगर श्रम विभाग की मदद से इन मजदूरों का पंजीकरण हो जाए, तो वे उनहों सुविधाओं के पात्र बन सकते है। मजदूरों की बेटी की शादी में आर्थिक सहायता,महिला मजदूरों को मातृत्व लाभ, गंभीर बीमारियों के लिए चिकित्सा सहायत,मृत्यु पर अंतिम संस्कार सहायता, बच्चों की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति और अन्य शैक्षणिक सहयोग, दुर्भाग्यवश, ये सारी योजनाएं उन्हीं लोगों को मिलती हैं, जिन्हें इनकी सबसे कम जरूरत होती है, और जो वास्तव में जरूरतमंद हैं, वे वंचित रह जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि श्रम विभाग पंचायत स्तर पर कैंप लगाकर श्रमिकों का पंजीकरण कराए। इसके साथ ही, अकुशल मजदूरों को कौशल प्रशिक्षण देकर उन्हें कुशल बनाया जाए। इससे उनकी रोज़गार प्राप्ति की संभावना बढ़ेगी, बेरोजगारी घटेगी और भारत की प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर दोनों में सुधार होगा। भारत की आर्थिक तरक्की तभी संभव है जब देश के असंगठित श्रमिकों को सशक्त, प्रशिक्षित और संरक्षित किया जाए। यही सच्चे मायने में श्रमिकों को सम्मान देने का तरीका होगा। हजारीबाग में श्रम विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी निर्माण स्थलों के साथ-साथ निजी भवन निर्माण स्थलों पर भी नियमित रूप से भ्रमण कर मजदूरों से उनके पंजीकरण की स्थिति की जानकारी ली जाए। ऐसे सभी मजदूर जो अभी तक पंजीकृत नहीं हैं, उनके लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे किसी भी सरकारी निविदा के अंतर्गत कार्य प्रारंभ करने से पूर्व पंजीकृत हों। साथ ही, निर्माण स्थलों पर ही मौके पर पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए, ताकि श्रमिकों को तत्काल लाभ मिल सके। चौक पर हो श्रम विभाग का अपना चलंत कार्यालय यदि श्रम विभाग सच में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और मजदूरों के हितों के प्रति कटिबद्ध है, तो उन्हें कोर्रा, कल्लू चौक और पंचमंदिर चौक पर कुछ सप्ताह के लिए चलंत दफ्तर की व्यवस्था करनी चाहिए। एक चार पहिया वाहन में चार कर्मचारियों की मदद से एक सप्ताह में मजदूरों का पंजीकरण पूरा किया जा सकता है। सुबह आठ से दस बजे के बीच इन तीनों चौकों पर अधिकतर मजदूर एकत्र होते हैं। चलंत दफ्तर इन दो घंटों में श्रमिकों को विभागीय जानकारी, पंजीकरण और सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में जोड़ सकता है। इसका लाभ सभी को मिल सकता है। प्रशिक्षण और उन्नयन के लिए कार्यशाला पर जोर अकुशल मजदूरों के कारण हजारीबाग के मजदूरों को न नियमित काम मिलता है, न ही उचित मेहनताना। आजकल हर व्यक्ति किसी भी काम को प्रशिक्षित और कुशल श्रमिक से करवाना चाहता है। श्रम विभाग को राजमिस्त्री, बिजली मिस्त्री, नलसाज, रंग-रोगन, टाइल्ट-फर्श, फर्नीचर, ढाबा-होटल आदि सभी श्रमिकों के लिए अलग-अलग कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। इन प्रशिक्षणों के समापन पर प्रमाणपत्र दिए जाएं ताकि भविष्य में इन श्रमिकों को रोजगार प्राप्त करने में सहायता हो। इसके अतिरिक्त, हजारीबाग में 'श्रमिक मित्र' के चयन में व्यापक अनियमितताएँ पाई गई हैं, जिनकी समुचित जाँच की आवश्यकता है। मजदूरों के लिए चले कार्यक्रम झारखंड में आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में मुख्य रूप से भूमि से जुड़े मुद्दे ही चर्चा का विषय रहते हैं। मजदूर दिवस के अवसर पर सरकार को महीने में तीन दिन श्रमिकों से जुड़े मुद्दों पर आधारित आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए। पंचायत स्तर पर आयोजित होने से मजदूरों को अपनी समस्याओं का समाधान पाना आसान होगा। सरकारी योजनाओं की चौखट तक पहुँचने से पहले ही कागजों के बोझ और दफ्तरों की चक्करबाज़ी में ये मजदूर हार मान लेते हैं। इन मजदूरों की पहचान न तो सरकारी योजनाओं में है, न ही नीति-निर्माताओं की प्राथमिकता में। न लेबर कार्ड है, न बैंक खाता। मजदूरों के लिए बने ट्रेड यूनियन हजारीबाग में कोयला मजदूरों के लिए कई ट्रेड यूनियन और नेता हैं, परंतु असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए कोई ट्रेड यूनियन नहीं है। इसके कारण इन मजदूरों का शोषण होता है। काम के बाद महीनों तक उनके मेहनताना का भुगतान नहीं किया जाता। बड़े ठेकेदारों के सामने ये मजदूर विवश हो जाते हैं। ऐसे में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए एक ट्रेड यूनियन की आवश्यकता है। वर्तमान में हजारीबाग में लगभग एक लाख पंजीकृत श्रमिक श्रम विभाग के पोर्टल पर दर्ज हैं। इन सभी को सरकारी योजनाओं और सुविधाओं के लाभुक के रूप में देखा जाएगा। मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलती है। जिले में एक लाख से अधिक मजदूर पंजीकृत हैं। श्रम विभाग की ओर से इस बार कोई शिविर नहीं लगाने की कोई योजना नहीं है। मजदरों के रजिस्ट्रेशन के लिए 100 रुपया सालाना शुल्क लिया जाता है। कोशिश रहती है कि योजनाओं की जानकारी समय पर दी जाए। -अनिल कुमार रंजन, लेबर कमिश्नर, हजारीबाग असंगठित मजदूरों की योजनाओं को लागू करने की जिम्मेवारी श्रम विभाग की है। इसके लिए कोई अभियान नहीं चलाया जाता है सारा लाभ बिचौलिया लेकर चला जाता है। श्रम विभाग और श्रमिकों के बीच की कड़ी माने जाने वाले श्रमिक मित्र के चयन में भी पारदर्शिता नहीं बरती जाती है। -गणेश सीटू, जिला उपाध्यक्ष सेंटर ऑफ इंडियन एंड यूनियन हम लोग गांव से रोज सुबह 9 बजे तक हजारीबाग किसी तरह काम पर पहुंचते हैं। अगर लेबर कार्ड बनवाने ऑफिस जाएंगे, तो उस दिन काम नहीं कर पाएंगे। -भुवनेश्वर राम श्रमिक कानूनों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। आज तक न कोई नेता और न ही कोई अधिकारी हमारे पास आया कि हमें बताए कि हमारे क्या अधिकार हैं। -इन्द्रनाथ नेता वोट मांगने के लिए घर-घर और गांव-गांव आ जाते हैं। चुनाव कराने वाले कर्मचारी भी आ सकते हैं। लेकिन जब बात लेबर की हो तो कोई घर नहीं आता। -मोहम्मद ताहीर लेबर ऑफिस में इतने कागज मांगते हैं और इतने चक्कर कटवाते हैं कि परेशान होकर जाना ही छोड़ दिए। साधारण कार्ड बनवाने के लिए भी महीनों लग जाते हैं। -जीतू राम हम मजदूर मजबूरी में लद्दाख, गुजरात जैसे दूर के इलाकों में काम करने चले जाते हैं, लेकिन सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने में समय बर्बाद नहीं करना चाहते। -भागीरथ साव हम लोग अनपढ़ और गरीब हैं, किसी तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। कोई भी हमारे दुःख को समझने या दूर करने की कोशिश नहीं करता। चुनाव में नेता लोग हमें याद करते हैं। -खीरू राम रैली के लिए नेता जब गांव में गाड़ी भेज सकते हैं, नाश्ता और खाना दे सकते हैं, तो मजदूरों के कागजात बनवाने के लिए भी ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करते? -कमाल यहां हर वर्ग का इंसान अपनी जरूरत लेकर आता है। हम मानते हैं कि कोर्रा चौक जैसे स्थानों से ही आम लोगों का दुख कम हो सकता है। यहां से आवाज उठती है। -कुर्बान ग्रामसभा में कभी मजदूरों के मुद्दे नहीं उठते। न ही अधिकारों पर कोई चर्चा होती है। हमेशा विकास की बातें होती हैं, पर मजदूरों के जीवन में कोई सुधार नहीं आता। -अनिल साव ग्रामसभा शाम के बाद होती, तो काम से लौटकर अपनी बात कह पाते। मजदूरों के लिए खास ग्रामसभा साल में एक बार जरूर होनी चाहिए, अपनी परेशानियां रख सकें। -राजा खान ठेकेदार हमारा पैसा महीनों तक रोक कर रखता है। जब मांगते हैं, तो बहाना बनाता है कि बाद में देंगे। कोई हमारा हक दिलवाने वाला नहीं है। हम मजबूरी में चुप रह जाते हैं। -राजू सरकार के लिए मजदूरों की कोई अहमियत नहीं है। आज तक हमारी दशा में कोई सुधार नहीं हुआ है। पढ़े-लिखे लोग बस दिलासा देते हैं, मदद नहीं करते है। -महेश महतो
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।