शिक्षा के संसार को रोशन कर रहे गुदड़ी के लाल शिक्षक प्रेम प्रकाश
प्रेम प्रकाश का जन्म मुंगेर जिले के एक छोटे से मुहल्ले बड़ी आशिकपुर में हुआ। उनके पिता, आल्वट बेपटीस्ट, एशिया के सबसे बड़े रेलवे कारखाने में कार्यरत थे। यह वह समय था जब बिहार में रेलवे क्षेत्र में कोई खास विकास नहीं था, लेकिन प्रेम प्रकाश के पिता की नौकरी ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी।

बिहार, एक ऐसा राज्य जो अपनी संस्कृति, इतिहास और शैक्षिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, में जब भी प्रेरणा और संघर्ष की कहानियां सुनाई जाती हैं, तो उन कहानियों में एक नाम हमेशा आदर से लिया जाता है,वो नाम है प्रेम प्रकाश । मुंगेर जिले के छोटे से गांव बड़ी आशिकपुर में 15 जून 1957 को जन्मे प्रेम प्रकाश की जीवन यात्रा एक प्रेरणा है। एक छोटे से गांव के लड़के से लेकर बिहार के शिक्षा क्षेत्र में प्रमुख हस्ती बनने तक, उनका जीवन समर्पण और मेहनत की अद्वितीय मिसाल है।
प्रेम प्रकाश का जन्म मुंगेर जिले के एक छोटे से मुहल्ले बड़ी आशिकपुर में हुआ। उनके पिता, आल्वट बेपटीस्ट, एशिया के सबसे बड़े रेलवे कारखाने में कार्यरत थे। यह वह समय था जब बिहार में रेलवे क्षेत्र में कोई खास विकास नहीं था, लेकिन प्रेम प्रकाश के पिता की नौकरी ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी। उनकी माता, क्लारा बेपटीस्ट, एक धार्मिक और संस्कारी महिला थीं, जिन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के महत्व से अवगत कराया।
शिक्षा - दीक्षा
प्रेम प्रकाश की प्रारंभिक शिक्षा जमालपुर के सेंट जोसेफ मिडल स्कूल से हुई, जो रेलवे कारखाने के नजदीक था। उस समय यह विद्यालय रेलवे के फर्स्ट क्लास और सेकेंड क्लास अपरेंटिस के लिए एक प्रमुख केंद्र था, जहां से देश के सबसे बड़े अधिकारी शिक्षा प्राप्त करते थे। इस माहौल में प्रेम प्रकाश को न केवल शिक्षा के महत्व का एहसास हुआ बल्कि खेल, नाट्य, और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भी भाग लेने का अवसर मिला।
इसके बाद, प्रेम प्रकाश ने बेतिया के क्राइस्ट राजा हाई स्कूल में अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। यहां उन्होंने फुटबॉल और हॉकी जैसे खेलों में अपनी प्रतिभा को राज्य स्तर तक बढ़ाया। खेलकूद में उनके योगदान को विद्यालय ने सराहा और उन्हें विभिन्न ट्राफियां और मेडल से सम्मानित किया। इस समय ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनने का अवसर दिया।
बेतिया के महारानी जानकी कुंवर सिंह कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद, प्रेम प्रकाश ने भागलपुर विश्वविद्यालय से बी.एस.सी और तिलकामांझी विश्वविद्यालय से एम.ए.सी की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्हें हमेशा अपने माता-पिता का समर्थन मिला, जिन्होंने कठिनाइयों के बावजूद उनकी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और उनका हौसला बढ़ाया।
शिक्षक बनने की राह: जीवन का नया मोड़
प्रेम प्रकाश का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान 1979 से शुरू हुआ, जब उन्होंने नोर्डेम स्कूल में विज्ञान शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू किया। यह वह समय था जब शिक्षा के क्षेत्र में जटिलताएं और कमियां थीं, लेकिन प्रेम प्रकाश ने इस स्थिति का सामना किया और खुद को एक प्रभावशाली शिक्षक के रूप में स्थापित किया। उनका मानना है कि शिक्षा न केवल बच्चों के जीवन को सुधारने का एक माध्यम है, बल्कि यह सशक्त समाज के लिए भी एक मजबूत नींव बनाती है।
इसी दौरान, उनकी पत्नी रूबी ने भी शिक्षिका के रूप में सहरसा के सरकारी विद्यालय में कार्य करना शुरू किया था। उनके जीवन के यह दशक संघर्षों और कड़ी मेहनत का था, लेकिन यह समय उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में खुद को और बेहतर बनाने का अवसर दे रहा था। प्रेम प्रकाश ने 1982-83 में सहरसा के बी.एड कॉलेज से बी.एड की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कुछ होम ट्यूशन दी और साथ ही मनोहर स्कूल के शिक्षकों के साथ मिलकर कोचिंग क्लास शुरू की।
उनकी मेहनत और शिक्षण विधि ने जल्द ही सफलता पाई। इस कोचिंग का विस्तार हुआ और उन्होंने खुद को सहरसा के सबसे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक के रूप में स्थापित किया।
सहरसा में शिक्षा का नया युग: सहरसा इंग्लिश स्कूल की स्थापना
प्रेम प्रकाश की कड़ी मेहनत और शिक्षा के प्रति उनके समर्पण ने 1986 में सहरसा में एक नए अध्याय की शुरुआत की। उन्होंने अपने बलबूते पर सहरसा इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। यह निर्णय न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि पूरे सहरसा जिले के लिए एक बडी शैक्षिक क्रांति का रूप लेने वाला था।
उनके विद्यालय की स्थापना का उद्देश्य केवल शिक्षा देना नहीं था, बल्कि छात्रों को समग्र रूप से विकसित करना था। प्रेम प्रकाश का मानना था कि एक अच्छा शिक्षक वही होता है जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास में भी योगदान दे। उन्होंने विद्यालय में ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हों।
सहरसा इंग्लिश स्कूल की स्थापना के बाद, प्रेम प्रकाश और उनके सहयोगियों ने शिक्षा के नए आयाम स्थापित किए।
2012 में विद्यालय को सी.बी.एस.सी. से मान्यता प्राप्त हुई, जो विद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। इसके बाद 2022 में विद्यालय को 10+2 तक की मान्यता भी मिल गई। इस दौरान, विद्यालय ने आधुनिकतम शिक्षा पद्धतियों का पालन करते हुए बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का प्रयास किया।

शिक्षा के साथ-साथ समग्र विकास की दिशा में सराहनीय कार्य
प्रेम प्रकाश ने विद्यालय में न केवल अकादमिक शिक्षा को महत्व दिया, बल्कि खेलकूद, नृत्य, संगीत, योगा, कराटे और मार्शल आर्ट जैसी गतिविधियों को भी प्रमुखता दी। उनका उद्देश्य यह था कि हर छात्र न केवल कक्षा में अच्छा प्रदर्शन करे, बल्कि उसे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत बनाया जाए।
इसके अलावा, विद्यालय में छात्रों के लिए बसों की सुविधा, सुरक्षा और अन्य सुविधाएं भी प्रदान की गईं। यह सुनिश्चित किया गया कि छात्र बिना किसी परेशानी के अपनी पढ़ाई पूरी करें और उनका समग्र विकास हो सके।
संघर्षों के साए से सफलता की बुलंदी तक एक सशक्त नेतृत्व
प्रेम प्रकाश की जीवन यात्रा किसी भी दृष्टिकोण से सामान्य नहीं रही। उनके रास्ते में कई मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने शिक्षा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया और उसी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निरंतर निभाया। उनकी मेहनत, संघर्ष और संघर्ष के साथ सफलता की कहानी न केवल उनके लिए प्रेरणा है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक उदाहरण बन चुकी है।
प्रेम प्रकाश ने साबित किया कि शिक्षा के प्रति समर्पण और ईमानदारी से काम करने से कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। उनका यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा। उनके द्वारा स्थापित सहरसा इंग्लिश स्कूल ने शिक्षा के क्षेत्र में जो बदलाव लाया है, वह एक मिसाल बन चुका है।
प्रेम प्रकाश की जीवन यात्रा यह साबित करती है कि जब व्यक्ति के अंदर समर्पण, संघर्ष और निरंतर प्रयासों की भावना होती है, तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उनके द्वारा किए गए योगदानों ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाया, बल्कि समाज के अन्य पहलुओं में भी सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रेम प्रकाश न केवल एक शिक्षक हैं, बल्कि समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी, उनके विचार और उनकी जीवन यात्रा भी एक उदाहरण है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकता है। उनके विद्यालय ने हजारों बच्चों को शिक्षा का सर्वोत्तम अवसर दिया है और आने वाले समय में उनका योगदान भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद रखा जाएगा।
सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल: प्रेम प्रकाश के समर्पण की कहानी
सहरसा के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के सुझाव पर प्रेम प्रकाश जी ने विद्यालय स्थापना का निर्णय लिया। उस समय वे नोट्रेडेम स्कूल, जमालपुर, मुंगेर में विज्ञान शिक्षक के रूप में कार्यरत थे, हालांकि उनके पास बी.एड. की डिग्री नहीं थी। अधूरी योग्यता का एहसास होते ही उन्होंने 1982-83 में सहरसा बी.एड. कॉलेज में नामांकन कराया।
जब शहर में अंग्रेजी माध्यम स्कूल की आवश्यकता महसूस की जाने लगी, तो प्रेम प्रकाश जी ने भी इस पहल को गंभीरता से लिया। प्रोफेसर मो. वजीर, डॉ. यू.सी. मिश्रा, महावीर प्रसाद सिंह, बिजनेसमैन उमेश दहलान और संजय तुलसियान जैसे प्रतिष्ठित लोगों की प्रेरणा और सहयोग से उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाया। बी.एड. की पढ़ाई के दौरान, प्रसिद्ध मनोविज्ञान शिक्षक सिद्धेश्वर नारायण मल्लिक से उन्हें विशेष मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिला।

विद्यालय के लिए स्थान की समस्या को मोहम्मद इसरायल साहब ने सुलझाया। इस्लामिया चौक पर स्थित उनके अधूरे मकान को विद्यालय संचालन हेतु नि:शुल्क उपलब्ध करवा दिया गया। इस बड़े सहयोग से प्रेम प्रकाश जी का उत्साह बढ़ा और 3 दिसम्बर 1986 को सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल की स्थापना कर दी गई।
स्थानीय लोगों के समर्थन और प्रेम के चलते विद्यालय ने तेजी से प्रगति की। कुछ ही समय में विद्यार्थियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल सहरसा का पहला लोकप्रिय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय बन गया।
बी.एड. की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रेम प्रकाश जी ने अपने घर लौटने का विचार किया था, परंतु सहरसा के लोगों का अपार प्रेम उन्हें यहीं रोक ले गया। विद्यालय को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से मान्यता प्राप्त करने में समय लगा, परंतु अथक प्रयासों के बाद वर्ष 2012 में विद्यालय को दसवीं कक्षा तक सीबीएसई मान्यता प्राप्त हुई। इसके बाद भी उन्होंने 10+2 स्तर तक की मान्यता के लिए निरंतर प्रयास जारी रखे और वर्ष 2020 में सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल को 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की अनुमति मिल गई।
आज इस विद्यालय के छात्र भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल के पूर्व छात्र डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस, सिविल सेवाओं और अन्य उच्च पदों पर कार्यरत हैं, जिससे विद्यालय और सहरसा का नाम रोशन हो रहा है।
प्रेम प्रकाश जी को गर्व है कि सहरसा की धरती ने उन्हें इतना प्यार और समर्थन दिया। वे स्वयं को एक विकसित समाज के निर्माण में सहभागी महसूस करते हैं। आज विद्यालय का अपना सुंदर भवन है, विशाल खेल मैदान है, और विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। स्कूल आने-जाने के लिए बस सेवा भी प्रदान की जाती है। साथ ही, अनुभवी और विद्वान शिक्षकगण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं।
खेलकूद, प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा बोर्ड परीक्षाओं में विद्यार्थियों की उल्लेखनीय उपलब्धियों की खबरें आए दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होती हैं। इन सफलताओं को देखकर प्रेम प्रकाश जी हर्षित होते हैं और मानते हैं कि यह उनके वर्षों के निरंतर परिश्रम का फल है।
वे इस सफलता का श्रेय अपनी पत्नी रूबी क्रिश्चियन के सहयोग को भी देते हैं, जिन्होंने हर कदम पर उन्हें पूर्ण समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान किया। प्रेम प्रकाश जी के समर्पण, मेहनत और दूरदर्शिता ने सहरसा को सेंट जेवियर्स पब्लिक स्कूल के रूप में एक अनमोल उपहार दिया है।
Quotation
मैंने अपने जीवन में कई मोड़ देखे हैं अभाव भी, संघर्ष भी और सफलता भी। मुंगेर की छोटी-सी बस्ती 'बड़ी आशिकपुर' में जन्म लेकर, जमालपुर के सेंट जोसेफ मिडल स्कूल से शिक्षा की शुरुआत की। मेरे माता-पिता, विशेषकर मेरे पिता श्री आल्वट बेपटीस्ट और माता श्रीमती क्लारा बेपटीस्ट ने जो त्याग मेरे लिए किया, वो शब्दों में नहीं समा सकता। उनके आशीर्वाद और संघर्षों की बदौलत ही मैं आज इस मुकाम तक पहुंच पाया हूं। मेरे जीवन का हर पड़ाव – बेतिया के क्राइस्ट राजा स्कूल में बिताया गया छात्र जीवन, भागलपुर विश्वविद्यालय और तिलकामांझी से प्राप्त उच्च शिक्षा, हर अनुभव ने मुझे गढ़ा है। अध्यापन के क्षेत्र में मेरी शुरुआत नोर्डेम स्कूल से हुई, और फिर धीरे-धीरे एक शिक्षक से प्राचार्य और अंततः संस्थापक बनने का सफर तय किया। सहरसा इंग्लिश स्कूल केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि मेरे सपनों की वो ज़मीन है, जहां मैंने शिक्षा को सेवा का माध्यम बनाया। मेरी पत्नी रूबी, जो स्वयं एक शिक्षिका हैं, जीवन की हर चुनौती में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं। मेरे छात्रों की सफलता, उनके चेहरे की मुस्कान और उनके माता-पिता की उम्मीदें यही मेरी सबसे बड़ी पूंजी हैं। मैंने हमेशा यही माना है कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ डिग्री पाना नहीं, बल्कि एक अच्छा इंसान बनना है। यही सोचकर मैंने हर विद्यार्थी को उसका सर्वोत्तम देने के लिए प्रेरित किया है। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो संतोष होता है कि जीवन के हर संघर्ष ने मुझे और मजबूत बनाया। मेरा सपना है कि हर बच्चा शिक्षा के ज़रिए अपने जीवन को रोशन करे क्योंकि यही वो चिराग है जो एक नहीं, सैकड़ों जिंदगियां रोशन कर सकता है।
- प्रेम प्रकाश
( अस्वीकरण : इस लेख में किए गए दावों की सत्यता की पूरी जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति / संस्थान की है )
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