एआई का सही उपयोग सतत विकास में सहायक : डॉ. शंभू
दरभंगा में एमएलएसएम कॉलेज में आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस और सतत विकास पर सेमिनार का आयोजन किया गया। प्रधानाचार्य डॉ. यादव ने विज्ञान में अनुसंधान के महत्व और इसके जोखिमों पर चर्चा की। मुख्य वक्ता प्रो....
दरभंगा। एमएलएसएम कॉलेज में आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आइक्यूएसी) व विनयम शोध संस्थान, धनबाद, झारखंड के सहयोग से आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस व सतत विकास विषय पर दो दिवसीय सेमिनार का मंगलवार को शुभारंभ हुआ। सेमिनार की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डॉ. शंभू कुमार यादव ने की। विषय प्रवेश कराते हुए प्रधानाचार्य डॉ. यादव ने कहा कि विज्ञान में जो भी अनुसंधान और आविष्कार हुआ, निश्चित रूप से भौतिकतावादी युग में वो मानव की जरूरतों को पूरा कर रहा है, लेकिन उसी का एक दूसरा पहलू जोखिम भी है। अगर हम उसका सही इस्तेमाल करते हैं तो वो फायदा पहुंचाता है और उसका गलत इस्तेमाल जोखिम भरा होता है। जिस न्यूक्लियर को पावर सेक्टर के लिये लाया गया था, वो पावर सेक्टर से ज्यादा परमाणु बम बनाने में प्रयोग किया जाने लगा। एआई के प्रयोग को बारीकी से जानकर प्रयोग करना ही सतत विकास में सहायक होगा, अन्यथा उसका दुष्प्रभाव खतरनाक हो सकता है।
मुख्य वक्ता लनामिवि के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समय की मांग हो सकती है, लेकिन इंटेलिजेंस का तोड़ नहीं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ओवरडोज आपके इंटेलिजेंसिया को प्रभावित व सीमित कर सकती है। इसका सही व सीमित प्रयोग न केवल भारत के सतत विकास में सहायक हो सकता है। जानकी देवी वीमेंस कॉलेज, पटना की अर्थशास्त्र विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. मंजरी नाथ ने एआई को सतत विकास से जोड़कर बताया कि कैसे आज हम एआई का प्रयोग कृषि, मिट्टी जांच, मौसम पूर्वानुमान, तापमान, प्रदूषण नियंत्रण, शोध आदि के क्षेत्रों में प्रयोग कर सटीक व आसानी से जानकारी प्राप्त करने का माध्यम बन रहा है।
कॉलेज के बर्सर डॉ. अनिल कुमार चौधरी ने कहा कि एआई शोध का नवीनतम उदाहरण है, जो फिलहाल शैशवावस्था में है। इसका समाज के सतत विकास पर सकारात्मक व नकारात्मक का आकलन कुछ वर्षों बाद ही पता चलेगा। विनियम शोध संस्थान की निदेशक डॉ. उमा गुप्ता ने कहा कि वर्तमान युग डाटा का है। एआई के इस युग में जो सबसे बड़ी चुनौती है डाटा की गोपनीयता को बरकरार रखना। ये चिंता के साथ-साथ विमर्श का विषय है कि आने वाले समय में लोगों के निजी डाटा का गोपनीयता बनी रहे। एआई को इसका भी ख्याल रखना होगा। तभी लोग इससे ज्यादा से ज्यादा जुड़ पाएंगे।
तकनीकी सत्र में 50 से अधिक शिक्षक, शोधार्थी, छात्र-छात्राओं ने अपना पेपर प्रस्तुत किया। संचालन हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सतीश कुमार सिंह व धन्यवाद ज्ञापन बर्सर डॉ. चौधरी ने किया। अतिथियों को मिथिला की परंपरा के अनुसार सम्मानित किया गया। स्वागत गान संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. चंद्रनाथ मिश्र के संयोजन में प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में आइक्यूएसी समन्वयक डॉ. मनोज कुमार वर्मा, डॉ. सुबोध चंद्र यादव सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक, शोधार्थी व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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