सुंदरकांड का पाठ करने से अनेक लाभ होते हैं : आगमानंद
धोरैया (बांका) में आयोजित श्री श्री 108 हनुमंत प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ एवं श्री हनुमान कथा कार्यक्रम में परमहंस स्वामी आगमानंद महाराज की मौजूदगी में तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान हो रहा है। कार्यक्रम में...

धोरैया (बांका), निज प्रतिनिधि प्रखंड अंतर्गत सैनचक पंचायत के चालनी डेनावारा गांव में आयोजित श्री श्री 108 हनुमंत प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ एवं श्री हनुमान कथा कार्यक्रम को लेकर अध्यात्म की गंगा बह रही है। यहां परमहंस स्वामी आगमानंद महाराज के सानिध्य में तीन दिवसीय श्री श्री 108 हनुमत प्राण-प्रतिष्ठा यज्ञ एवं श्री हनुमान कथा 30 अप्रैल तक चलेगा। बुधवार को मंदिर में देवी-देवताओं की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होगी। बुधवार को सुबह आठ बजे से दीक्षा का कार्यक्रम होगा। स्वामी आगमानंद महाराज अपने नए शिष्यों को आध्यात्मिक दीक्षा और गुरु मंत्र देंगे। मानस कोकिला श्रीमती कृष्णा मिश्रा का भी प्रवचन होगा। कार्यक्रम का आयोजन ग्रामीण सदानंद सिंह और रूबी सिंह के सुपुत्र रतन कुमार सिंह उर्फ गुड्डू सिंह के द्वारा किया गया है। कार्यक्रम के दूसरे दिन महाराज ने कहा कि सुंदरकांड का पाठ करने से अनेक लाभ होते हैं। व्यक्ति को हनुमान जी के साथ-साथ भगवान राम का आशीर्वाद मिलता है। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। सुंदरकांड पढ़ने या सुनने से आत्मविश्वास बढ़ाता है, मन से डर दूर करता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती है। उन्होंने श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकांड की एक चौपाई सुनाते हुए कहा- कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम पाहीं। जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात, तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के विशालकाय हो गए। भगवान राम के कार्य के लिए हनुमान का अवतार हुआ था, जो उन्होंने सिद्ध करके दिखाया। स्वामी आगमानंद ने कहा कि प्रतिदिन भगवान हनुमान से आप यह बिनती करें- कहेहु दंडवत प्रभु सैं तुम्हहि कहउँ कर जोरि। बार-बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि। उनके कहिए- हे हनुमान आप मेरी याद भगवान राम को दिलाते रहिएगा।
यज्ञ मंडप की परिक्रमा की
पंडित अनिरूद्ध शास्त्री सहित दर्जनों विद्वान पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्री श्री 108 हनुमत प्राण-प्रतिष्ठा यज्ञ में हवन की गई। काफी संख्या में लोगों ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा की। वहां स्थापित देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का पूजन किया गया।
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