बच्चों की ये 5 जिद कभी ना मानें पैरेंट्स, वरना खतरे में पड़ सकता है उनका भविष्य
बच्चों की कुछ फरमाइशें पूरी करना तो ठीक है लेकिन हर बार अगर आप बच्चे की जिद मान लेते हैं, तो ये कहीं से भी सही नहीं। आइए जानते हैं बच्चों की कुछ ऐसी ही जिद, जिन्हें पैरेंट्स को कभी भी नहीं मानना चाहिए, भले ही वो कितना भी गुस्सा करें या रोएं।

बच्चे छोटे हों या बड़े, अपने पैरेंट्स से अक्सर किसी ना किसी चीज की जिद करते ही रहते हैं। बस बचपन में उनकी ये जिदें जरा ज्यादा होती हैं और बड़ी बेतुकी भी। अब बच्चों की कुछ फरमाइशें पूरी करना तो ठीक है लेकिन हर बार अगर आप बच्चे की जिद मान लेते हैं, तो ये कहीं से भी सही नहीं। जब बच्चा अपनी बेतुकी बात भी जिद कर के आप से मनवा लेता है, तो उसे फिर इसी की आदत लग जाती है। बच्चे को लगने लगता है कि वो बिना एफर्ट के सब कुछ पा सकता है, जो आगे चलकर उसकी पर्सनेलिटी, डिसिप्लिन और इमोशनल कंट्रोल को इफेक्ट करता है। आइए जानते हैं बच्चों की कुछ ऐसी ही जिद, जिन्हें पैरेंट्स को कभी भी नहीं मानना चाहिए, भले ही वो कितना भी गुस्सा करें या रोएं।
जब 'अभी के अभी चाहिए' वाली जिद करे बच्चा
कुछ बच्चे इतने जिद्दी होते हैं कि उन्हें सब कुछ तुरंत ही चाहिए होता है। उनका कहना होता है कि अभी के अभी मुझे वो चीज ला कर दो। पैरेंट्स के लाख समझाने पर भी वो नहीं मानते और रोना-धोना, चिल्लाना शुरू कर देते हैं। पैरेंट्स इस समय उनकी जिद पूरी कर के उनके इस बिहेवियर को बढ़ावा देते हैं। जबकि बच्चा जब भी पहली बार ऐसी जिद करे तभी पैरेंट्स को सतर्क हो जाना चाहिए। इससे बच्चे में इंपल्सिव बिहेवियर डेवलप होता है, जो आगे भविष्य में बहुत बड़ी प्रॉब्लम बन सकता है।
जब खाने को ले कर जिद करे बच्चा
खाने को ले कर बच्चे अक्सर नखरे करते रहते हैं। लेकिन कहीं ना कहीं उनके इस बिहेवियर को बढ़ावा पैरेंट्स ही देते हैं। जब बच्चा खाने को ले कर जिद करता है, अपना मनपसंद खाना मांगता है; तो पैरेंट्स झट उसके आगे उसकी फेवरिट डिश सर्व कर देते हैं। लेकिन क्या हर बार ऐसा करना ठीक है? इस तरह तो आप खुद बच्चे को बढ़ावा देते हैं कि जब भी कुछ हेल्दी खाना आपके आगे आए, तो जिद करना शुरू कर दो और बाहर का कुछ अनहेल्दी खा लो। इससे बच्चे की हेल्थ और ग्रोथ पर जो नेगेटिव असर पड़ता है, वो बताने की भी जरूरत नहीं।
लगातार फोन या टीवी देखते रहने की जिद
आजकल के बच्चों का मन फोन या टीवी देखने से भरता ही नहीं। आज के पैरेंट्स की तो सबसे बड़ी चुनौती यही बन गया है कि कैसे वो बच्चों को स्क्रीन से दूर रखें। लेकिन कई बार पैरेंट्स बच्चों की जिद के आगे उसका नुकसान तक नहीं देखते। बच्चा खाना खाते हुए फोन मांगता है तो दे देते हैं, सोने से पहले या उठने के तुरंत बाद बच्चों के हाथ में फोन थमा देते हैं। इससे बच्चे की कंसंट्रेशन पावर, नींद और फिजिकल एक्टिविटी पर नेगेटिव असर पड़ता है।
पब्लिक प्लेस में चुप कराने के लिए उनकी बात मान लेना
छोटे बच्चे अक्सर ऐसा करते हैं कि उन्हें जब कोई चीज पसंद आ जाती है, तो वहीं दुकान या मॉल में रोना-धोना शुरू कर देते हैं। ऐसे में पैरेंट्स पब्लिक एंबेरेसमेंट से बचने के लिए बच्चों की जिद मान लेते हैं; चाहे वो बेतुकी ही क्यों ना हो। जबकि ऐसा कर के आप बच्चे को सेम बिहेवियर के लिए बढ़ावा देते हैं। एक बार जब बच्चे को लगने लगता है कि लोगों के आगे इमोशनल ड्रामा कर के वो आपसे अपनी हर बात मनवा सकता है, तो आगे फिर वो ऐसा ही करने लगते हैं। आगे चलकर ये आदत इमोशनल मैनिपुलेशन का रूप ले सकती है।
दूसरों जैसा सामान लेने की जिद करना
बच्चा अगर हर बार आपसे दूसरों के जैसे खिलौने या कपड़े लेने की जिद करता है, तो हर बार आपको उसकी ये फरमाइशें पूरी करने की जरूरत नहीं। ऐसा करने से बच्चों में अनहेल्दी कंपैरिजन और कॉम्पिटिशन की भावना पैदा होने लगती है। दूसरों को देखकर जलन और इनसिक्योरिटी की भावना भी बच्चों में डेवलप हो सकती है। बच्चों को दूसरों की चीजों की रिस्पेक्ट करना सिखाएं और बताएं कि जरूरी नहीं कि जो दूसरों के पास हो वो तुरंत आपको भी मिल जाए।
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