अमेरिका के ऐलान से नाटो की बढ़ी टेंशन, पर रूस होगा खुश; यूक्रेन को भी करारा झटका
- रूस के हमले के ठीक बाद से ही यूक्रेन लगातार मांग करता रहा है कि उसे नाटो की सदस्यता दी जाए। अमेरिकी मंत्री ने कहा कि नाटो ऐसी किसी भी शक्ति का काम नहीं करेगा, जो यूक्रेन में शांति स्थापित करे। ऐसा कोई ऑपरेशन चला तो फिर उसकी कीमत यूरोप के लोग चुकाएंगे। कोई अमेरिकी सैनिक इसमें हिस्सा नहीं लेगा।
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अमेरिका में सत्ता बदलने के साथ ही दुनिया के भी बहुत से समीकरण बदलते दिख रहे हैं। अब नाटो में भी हलचल की स्थिति है। इसकी वजह बना है अमेरिकी रक्षा मंत्री पेटे हेगसठ का एक बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका की प्राथमिकता यूरोप की रक्षा करना नहीं है। नाटो में यूरोप के ही ज्यादातर वे देश शामिल हैं, जिन्हें अमेरिका का सहयोगी माना जाता है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने नाटो देशों की चिंता को बढ़ा दिया है। ट्रंप के मंत्री ने बुधवार को यूक्रेन के 50 समर्थकों से मुलाकात के दौरान साफ किया कि हमारी प्राथमिकता में यूरोप की सुरक्षा करना नहीं है। इसकी बजाय हमारी जरूरत यह है कि हम अमेरिका की सुरक्षा पर ध्यान दें। उन्होंने कहा, 'अमेरिका अपनी ही सीमाओं पर खतरे का सामना कर रहा है। इसलिए हम अपनी सीमाओं की रक्षा करने पर फोकस कर रहे हैं।'
यही नहीं उन्होंने यूक्रेन को भी साफ संदेश दिया कि अब वह उस पूरी जमीन को वापस नहीं ले सकेगा, जिस पर रूस ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को नाटो में एंट्री नहीं दी जाएगी। नाटो में शामिल सभी सदस्य देशों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देश उठाते हैं। इसका अर्थ है कि यदि नाटो के किसी मेंबर पर अन्य शक्ति हमला करती है तो संगठन में शामिल सभी मुल्क उसका जवाब देते हैं। यही वजह है कि रूस के हमले के ठीक बाद से ही यूक्रेन लगातार मांग करता रहा है कि उसे नाटो की सदस्यता दी जाए। अमेरिकी मंत्री ने कहा कि नाटो ऐसी किसी भी शक्ति का काम नहीं करेगा, जो यूक्रेन में शांति स्थापित करे। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कोई ऑपरेशन चला तो फिर उसकी कीमत यूरोप के लोग चुकाएंगे। कोई अमेरिकी सैनिक इसमें हिस्सा नहीं लेगा।
ट्रंप के रक्षा मंत्री के बयान पर फ्रांसीसी रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोरनू ने कहा कि नाटो के सामने सच्चाई आई है। उन्होंने कहा कि बीते कुछ सालों में यह इतिहास का सबसे मजबूत अलायंस रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या अगले 10 से 15 सालों में यह संगठन ऐसा ही रहेगा या फिर नहीं। नाटो की स्थापना 1949 में हुई थी। इसमें शुरुआत में 12 देश जुड़े थे और फिर विस्तार हो गया। शीत युद्ध के दौरान रूस से यूरोप के खतरे ने इस संगठन को विस्तार दिया। इस संगठन के डीएनए में ही रूस से निपटने की पहल रही है। 75 साल पुराना यह संगठन लगातार विस्तार कर रहा है। हाल ही में स्वीडन ने इसकी मेंबरशिप ली है और कुल सदस्यों की संख्या 32 तक पहुंच गई है।
स्वीडन ने भी रूस के ही डर से एंट्री ली है। इस बीच अमेरिका के बयान ने टेंशन बढ़ा दी है। पिछले दिनों डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा था कि आखिर यूरोप की सुरक्षा का खर्च अमेरिका कब तक उठाता रहेगा। उनका कहना था कि नाटो देशों को अपना रक्षा बजट बढ़ाना चाहिए। हालांकि अमेरिकी रक्षा मंत्री ने यह जरूर कहा कि हम नाटो में बने रहेंगे। संगठन को छोड़ने का हमारा कोई इरादा नहीं है। दरअसल अमेरिका नाटो का सबसे अहम देश है और वह बड़ा खर्च भी उठाता है। इसीलिए संगठन का एजेंडा भी अमेरिका ही तय करता है।
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