प्रदेश के बॉयलर की क्षमता का केवल 40 प्रतिशत ही उपयोग होता
Lucknow News - लखनऊ में देश का पहला राष्ट्रीय औद्योगिक बॉयलर हरितीकरण सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में ग्रीनिंग इंडस्ट्रियल स्टीम की रिपोर्ट जारी की गई। मुख्य अतिथि अनिल राजभर ने यूपी में फैक्ट्री पंजीकरण की...

लखनऊ, कार्यालय संवाददाता लखनऊ में देश का पहला राष्ट्रीय औद्योगिक बॉयलर हरितीकरण सम्मेलन आयोजित किया गया। होटल सेन्ट्रम में पर्यावरण थिंक टैंक आईफोरेस्ट ने केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत औद्योगिक आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन विभाग और यूपी श्रम विभाग के साथ मिलकर सम्मेलन किया। सम्मेलन में राष्ट्रीय रिपोर्ट ग्रीनिंग इंडस्ट्रियल स्टीम: लो-कार्बन एंड क्लीन एयर रोडमैप फॉर प्रोसेस बॉयलर और एक राज्य-विशिष्ट रिपोर्ट ग्रीनिंग इंडस्ट्रियल प्रोसेस बॉयलर: लो कार्बन एंड क्लीन एयर पाथवेज फॉर उत्तर प्रदेश जारी की गई। सम्मेलन में मुख्य अतिथि श्रम एवं रोजगार मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि पिछले एक साल से यूपी में फैक्ट्री पंजीकरण की संख्या सबसे अधिक रही है।
भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार, दोनों ही राष्ट्रीय विकास के एजेंडे और पर्यावरणीय प्रभाव की ज़रूरतों के बीच संतुलन बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। मुख्य अतिथि मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार मनोज कुमार सिंह यह रिपोर्ट न केवल प्रदूषण को कम करने बल्कि अर्थव्यवस्था को स्वच्छ तरीके से विकसित करने का रोडमैप दिखाती है। लक्षित नीतियों, तकनीकी बदलाव और सरकार-उद्योग सहयोग के सही मिश्रण के साथ, उत्तर प्रदेश ऊर्जा दक्षता, सुरक्षा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाते हुए उत्सर्जन में कमी ला सकता है। इस क्षेत्र में बायोमास की संभावना को देखते हुए, हम ग्रामीण इलाकों में रोजगार पैदा कर सकते हैं और किसानों की आमदनी बढ़ा सकते हैं। सम्मेलन में सचिव केन्द्रीय बॉयलर बोर्ड संदीपकुमार सदानंद कुंभार, आईफोरेस्ट के सीईओ डॉ. चंद्र भूषण ने रिपोर्ट को गहराई से समझाया। -क्या कहती है राष्ट्रीय और राज्य रिपोर्ट 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा साझा किए गए डेटा के आधार पर इन दो रिपोर्ट्स में बॉयलर के वर्तमान परिदृश्य, संबंधित ऊर्जा और उत्सर्जन प्रोफाइल को विस्तार से बताया गया है, जो हरित परिवर्तन के लिए एक मजबूत तर्क प्रस्तुत करता है। भारत में, खाद्य प्रसंस्करण, रसायन और वस्त्र जैसे प्रमुख उद्योग प्रक्रिया बॉयलर द्वारा उत्पन्न भाप पर चलते हैं। अध्ययन से पता चलता है कि भारत के प्रक्रिया बॉयलर प्रतिवर्ष 1.26 बिलियन टन भाप उत्पन्न करते हैं। जिससे 182 मिलियन टन सीओ₂ उत्सर्जन होता है - जो कुल औद्योगिक जीएचजी उत्सर्जन का एक चौथाई से अधिक है। प्रक्रिया बॉयलर से पार्टिकुलेट मैटर और एसओ₂ उत्सर्जन भारत के पूरे ऑटोमोबाइल क्षेत्र से अधिक है। मुख्यतः उत्सर्जन मानकों के ढीले होने के कारण। हालांकि, अध्ययन में पाया गया कि नई तकनीकें जैसे इलेक्ट्रिक बॉयलर, स्वच्छ बायोमास बॉयलर और हाइड्रोजन बॉयलर, पारंपरिक गैस, तेल और कोयला आधारित बॉयलर की तुलना में धीरे-धीरे लागत-प्रतिस्पर्धी हो रही हैं। अध्ययन में उत्तर प्रदेश के 2,798 बॉयलर स्टॉक - जो देश में तीसरा सबसे बड़ा है का भी गहन विश्लेषण किया गया। उत्तर प्रदेश के 15 फीसदी से अधिक बॉयलर 25 साल से पुराने हैं, और उनकी क्षमता का केवल 40 प्रतिशत ही उपयोग होता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि प्रक्रिया बॉयलर कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से हटकर बायोमास की ओर बढ़ रहे हैं। बायोमास-आधारित बॉयलर की संभावना को देखते हुए, रिपोर्ट में कम प्रदूषण वाले भविष्य के लिए स्वच्छ बायोमास तकनीकों को बढ़ावा देने और नियामक एवं संस्थागत ढांचे को मजबूत करने की अनुसंशा की गई है।
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