मिल रहा 15 हजार क्यूसेक, दे रहे 55 हजार क्यूसेक; बांग्लादेश को गंगा से पानी देने पर बिहार को आपत्ति
- बिहार की ओर से कहा गया है कि वर्ष 2026 में होने वाले समझौते पर पुनर्विचार के समय इस बात का ध्यान रखा जाए। केन्द्र ने बिहार की मांग पर विचार का आश्वासन दिया है।
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बिहार ने बांग्लादेश को पानी देने पर आपत्ति की है। बिहार का तर्क है कि इस मामले में उन सभी राज्यों की हिस्सेदारी तय होनी चाहिए जहां से गंगा बहती है। पानी देने की कसौटी बिहार के हित में नहीं है। कहा गया है कि बांग्लादेश को गंगा नदी से मिल रहे पानी के ज्यादातर हिस्से की आपूर्ति बिहार को करनी पड़ती है। इसी से राज्य में जल संकट की स्थिति है। जबकि इस नदी से जुड़े अन्य राज्यों का गंगाजल आपूर्ति से कोई संबंध नहीं रह गया है।
कहा गया है कि बिहार अपनी जरूरतों के अनुरूप भी गंगाजल का उपयोग नहीं कर पा रहा है। उसे ऐसे किसी कार्य के लिए केन्द्र की अनुमति लेनी पड़ती है। बिहार के जल संसाधन विभाग ने इस संबंध में केन्द्र सरकार के साथ हुई बैठक में विस्तार से अपना पक्ष रखा है। विभाग ने कहा है कि वर्ष 2026 में होने वाले समझौते पर पुनर्विचार के समय इस बात का ध्यान रखा जाए। केन्द्र ने बिहार की मांग पर विचार का आश्वासन दिया है।
गंगा कितना पानी
बिहार में प्रवेश बक्सर के चौसा में - 400 क्यूमेक (14-15 हजार क्यूसेक)
बिहार से बाहर भागलपुर के पीरपैंती- 1100 क्यूमेक ( 52-55 हजार क्यूसेक)
गंगा में किन नदियों का पानी मिलता है बिहार में
बिहार में जिन नदियों से गंगा में पानी मिलता है उनमें सोन, पुनपुन, गंडक, घाघरा, बूढ़ी गंडक, कोसी, बागमती, महानंदा नदियां शामिल हैं। बिहार को गंगा नदी से जितना पानी मिलता है उससे अधिक निकल जाता है।
क्या कहते हैं मंत्री
हमलोग आरंभ से 1996 के समझौते की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। हमारा मानना है कि इस समझौते को अंतिम रूप देने के पहले हमारी राय नहीं ली गयी। समझौते में बिहार की उपेक्षा की गयी। विरोध का बड़ा कारण फरक्का बराज भी है। -विजय चौधरी, जल संसाधन मंत्री
क्यों उठी बात
भारत-बांग्लादेश गंगाजल संधि की 30 वर्षों के बाद समीक्षा होनी है। यह 2026 में पूरी होगी। इस साल समीक्षा के बिन्दुओं पर चर्चा शुरू हो गयी है। जल्द दोनों देशों में तकनीकी वार्ता प्रारंभ होने वाली है।
अगले वर्ष होना है नवीनीकरण
भारत-बांग्लादेश गंगा जल संधि का अगले साल नवीनीकरण होना है। वर्ष 1996 में भारत के प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच गंगा जल बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था। इसके तहत दोनों देशों के बीच गंगा जल का बंटवारा किया गया था।
बिहार की चिंताओं के निराकरण के बाद ही बांग्लादेश को गंगाजल देने के समझौते का नवीकरण हो
जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि हमलोग आरंभ से 1996 के इस समझौते की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। हमारा मानना है कि इस समझौते को अंतिम रूप देने के पहले हमारी राय नहीं ली गयी। समझौते में बिहार की उपेक्षा की गयी। ऐसा तब था जबकि भारत-बांग्लादेश के सीमाक्षेत्र में गंगा का मिलन बिहार के माध्यम से होता है।
विरोध का बड़ा कारण फरक्का बराज
विरोध का बड़ा कारण फरक्का बराज भी है। इसके कारण संपूर्ण बिहार में गाद की समस्या बढ़ती जा रही है। गंगा गाद से भर रही है। यूं कहें कि एक तरह से गंगा मर रही है। इससे बाढ़ की स्थिति भी विकराल हो रही है। चूंकि, इस समझौते की समीक्षा का समय आ गया है, लिहाजा हम चाहते हैं कि बिहार की जरूरतों, गाद समस्या और गंगा के प्रवाह समेत इसके जलीय जीव-जंतुओं पर जो प्रभाव पड़ा है और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ा है, इन सबका अध्ययन किया जाए। बिहार और बिहार के लोगों की चिंताओं का निराकरण कर ही समझौते का नवीकरण हो। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद अपनी इन चिंताओं से प्रधानमंत्री और केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय को समय-समय पर अवगत कराते रहे हैं।
इसलिए परेशानी
बिहार का कहना है कि बांग्लादेश को गंगा जल की अधिकांश मात्रा बिहार देता है। जबकि, गंगा नदी के किनारे वाले राज्य अपने यहां बेधड़क उसके पानी का उपयोग कर रहे हैं। वहां बिजली परियोजनाएं बनी हैं, बराज बने हैं। यही नहीं सिंचाई के लिए भी गंगाजल का उपयोग कर रहे हैं। जबकि, बिहार को हर कार्य के लिए केन्द्र से अनुमति लेनी पड़ती है। बिहार का तर्क है कि बांग्लादेश जाने वाले गंगा जल का कोटा बिहार के साथ-साथ यूपी, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के लिए भी समान रूप से तय हो। ऐसे में बिहार अपनी जरूरतों के अनुसार गंगाजल का उपयोग कर सकेगा। गंगा नदी को लेकर बिहार में कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। लेकिन, मंजूरी के चक्कर में उसमें काफी वक्त बर्बाद भी होता है।