Desperate Laborers Gather at Santa Basanta for Work Amidst Uncertainty बोले मैनपुरी: सुबह से रोजगार की तलाश शाम तक नहीं मिलता काम, Mainpuri Hindi News - Hindustan
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बोले मैनपुरी: सुबह से रोजगार की तलाश शाम तक नहीं मिलता काम

Mainpuri News - मैनपुरी। शहर का संता बसंता। सुबह होते ही मजदूरों की भीड़ से गुलजार हो जाता है।

Newswrap हिन्दुस्तान, मैनपुरीWed, 30 April 2025 11:27 PM
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बोले मैनपुरी: सुबह से रोजगार की तलाश शाम तक नहीं मिलता काम

शहर का संता बसंता। सुबह होते ही मजदूरों की भीड़ से गुलजार हो जाता है। हाथों में टिफिन और साइकिल लेकर जमा होने वाले इन मजदूरों को यहां आते ही उम्मीद पैदा हो जाती है कि अगले कुछ मिनटों में कोई उन्हें काम देने आएगा। जैसे-जैसे सूरज के तेवर तीखे होते हैं वैसे-वैसे इनकी उम्मीद निराशा की ओर बढ़ने लगती है। सुबह 9 बजते ही यहां की भीड़ खामोश होने लगती है, किसी को काम मिल जाता है तो कोई काम न मिलने से निराश होकर घर लौट जाता है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद में लोगों को खुशी देने वाले इन मजदूरों ने कहा कि काम की कोई गारंटी नहीं है बस उम्मीद के सहारे जीना मजबूरी बन गई है।

अगर सरकार कुछ मदद करे तो उनकी भी जिंदगी में खुशियां भी आए। काम की उम्मीद लेकर हर रोज संता बसंता चौराहे पर जमा होने वाले इन मजदूरों की एक जैसी कहानी है। इनके घरों में हर रोज काम मिलने पर चूल्हा जलने की परंपरा है। जिस रोज काम नहीं मिलता उस रोज दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो जाता है। संता बसंता चौराहे पर ही मजदूर मिलेंगे ऐसी बात तय है। यही वजह है कि यहां काम की तलाश में हर रोज 300 से 400 मजदूर सुबह से 7 बजे से जमा होने लगते हैं और 10 बजते-बजते काम मिलने पर काम करने और काम न मिलने पर निराश होकर वापस घर रवाना हो जाते हैं।   मजदूर श्यामकिशोर, दाताराम, महेश, रामप्रकाश का कहना है कि सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिए मजदूरों की जिंदगी बदलने की बात तो होती है मगर 70 फीसदी मजदूर आज भी काम न मिलने पर दो वक्त की रोटी के संकट से गुजरता है। उनका कहना है कि मैनपुरी शहर ही नहीं बल्कि जनपद के विभिन्न हिस्सों में दैनिक मजदूरी की तलाश में 15 से 20 हजार मजदूर भटकते हैं। भट्ठा मजदूर, मंडी के पल्लेदार, भवन निर्माण मजदूरों को काम की समस्या रहती है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो शहर से कस्बों में और कस्बों से ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाले सीजनल कामों से मजदूरी तलाशते हैं। शहर-कस्बा के मजदूरों को दिया जाए नियमित मानदेय: इन दिनों खेतों में आलू खोदाई का सीजन चल रहा है तो गांव के मजदूरों को मजदूरी तो मिल जाती है लेकिन सर्वाधिक समस्या अन्य क्षेत्रों का काम करने वाले मजदूरों के सामने रहती है। मजदूरों का साफ कहना है कि जिस तरह मनरेगा में ग्रामीण मजदूर जोड़े गए हैं उसी तर्ज पर कस्बा, निकाय और शहर के मजदूरों को भी नियमित मानदेय से जोड़कर उनके घरों का चूल्हा भी नियमित जलाने की व्यवस्था की जाए। बोले मजदूर मजदूर मजदूरी करके सिर्फ अपना और परिवार का पेट भर सकता है। बीमारी और बेटी की शादी आदि के लिए उसके पास इंतजाम नहीं रहता है। बेटी की शादी के लिए 2 लाख रुपये की व्यवस्था हो। प्रत्येक मजदूर का आयुष्मान कार्ड बनाया जाए। -सुरेंद्र पिछले कुछ वर्षों से योजना का लाभ लेना हो या फिर श्रम विभाग में पंजीकरण हो प्रत्येक काम के लिए कई-कई दिन चक्कर लगाने पड़ते हैं। कहीं मोबाइल आधार से लिंक नहीं है तो कहीं मोबाइल नहीं लगा है ऐसी समस्या बताकर टरका दिया जाता है। -सत्यवीर श्रम विभाग की ओर से मजदूरों के कल्याण के लिए योजनाएं तो चलती हैं पर योजनाओं का लाभ उनके पास तक नहीं पहुंच पाता। बड़े-बड़े ठेकेदार अपने कर्मचारियों का रजिस्ट्रेशन कराते हैं और उन्हीं की अधिकारी भी सुनते हैं। -बीनू श्रम विभाग में पंजीकरण के लिए गांव-गांव कैंप लगाए जाएं। जिससे वास्तविक मजदूर को लाभ मिल सके। प्रधान और ठेकेदार अपने चहेतों को लाभ दिलाने के लिए पंजीकरण कराते हैं। जिससे वास्तविक मजदूर वंचित रह जाता है। -अतुल मनरेगा योजना तो ठीक है लेकिन दिहाड़ी बहुत कम है। कम से कम 400 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी हो। जिससे काम गांव में ही मिल जाए। शहर में चौराहे पर खड़े होने से उन्हें तकलीफ होती है, काम नहीं मिलने पर मायूस होकर लौटना पड़ता है। -हिमांशु संता बसंता चौराहा मजदूरों के मिलने का ठिकाना है। लेकिन इस ठिकाने पर मजदूरों के बैठने की व्यवस्था किसी भी सरकार ने नहीं की। स्थानीय नेता उनके लिए एक कक्ष का निर्माण कराएं ताकि वहां वह बैठ सकें। -सनोज श्रम विभाग की योजनाओं की मुझे जानकारी नहीं है। कई बार कार्यालय गया लेकिन पंजीकरण नहीं हो सका। कर्मचारी मनरेगा कार्ड या फिर किसी ठेकेदार, फर्म के नीचे काम करने का पत्र मांगते हैं। मजदूर के पास ये सब नहीं है। -संजय कुमार जिले में काम की समस्या है। निर्माण कार्य करने को तो काम मिल जाता है। लेकिन अन्य काम यहां नहीं मिलता। बड़ी फैक्ट्री यहां लगें तो मजदूरों को काम मिल जाए। कभी-कभी निर्माण का काम न मिलने पर वापस लौटना पड़ता है। -धरम सिंह

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