Hindi Newsदेश न्यूज़SC says Preliminary Inquiry Not Mandatory Before Registering FIR against Public Servant in Prevention of Corruption act

FIR से पहले जांच जरूरी नहीं, SC के आदेश से कैसे सरकारी सेवकों को बड़ा झटका

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने (FIR) के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 24 Feb 2025 02:43 PM
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FIR से पहले जांच जरूरी नहीं, SC के आदेश से कैसे सरकारी सेवकों को बड़ा झटका

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा है कि किसी भी सरकारी सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आने वाले किसी भी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले उसके खिलाफ शुरुआती जांच कराना जरूरी नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले किसी भी आरोपी के पास प्रारंभिक जांच का दावा करने का कोई कानूनी अधिकार भी नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन सभी कर्मचारियों के लिए एक बड़ा झटका है, जो भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच का बहाना बनाकर अपने खिलाफ कार्रवाई से बच रहे थे।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने (FIR) के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है। हालांकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आने वाले मामलों सहित कुछ श्रेणियों के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय है, लेकिन यह न तो आरोपी का कानूनी अधिकार है और न ही आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए कोई जरूरी शर्त है।”

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि जब किसी सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तब FIR से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं होती है, लेकिन मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर जांच एजेंसी के लिए यह पता लगाना जरूरी है कि सरकारी सेवक द्वारा किया गया अपराध संज्ञेय है या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा, “प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता को सत्यापित करना नहीं है, बल्कि केवल यह पता लगाना है कि क्या उक्त सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है या नहीं। इस तरह की जांच का दायरा स्वाभाविक रूप से संकीर्ण और सीमित है, ताकि अनावश्यक उत्पीड़न को रोका जा सके और साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि संज्ञेय अपराध के वास्तविक आरोपों को मनमाने ढंग से दबाया न जाए। इस प्रकार, यह निर्धारण कि प्रारंभिक जांच आवश्यक है या नहीं, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होगा।”

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जस्टिस दत्ता और जस्टिस मेहता की पीठ आय से अधिक संपत्ति के मामले में एक लोक सेवक के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ कर्नाटक सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी। कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत विशेष रूप से धारा 13(1)(बी) और धारा 12 के साथ धारा 13(2) के तहत अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। हाई कोर्ट ने उस FIR को रद्द कर दिया था, इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह विचार किया कि क्या किसी सरकारी सेवक के खिलाफ FIR दर्ज होने से पहले जांच जरूरी है या नहीं? आरोपी अधिकारी ने इसी आधार पर FIR को चुनौती दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐसे लोक सवेकों को झटका लगा है।

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