एक शख्स पर कई लाख रुपये का खर्च, प्रवासियों को सैन्य विमान से क्यों भेज रहे ट्रंप; दुनियाभर में बवाल
- अमेरिका में आमतौर पर अवैध प्रवासियों को देश से बाहर भेजने के लिए कॉमर्शियल चार्टर विमानों (ICE फ्लाइट्स) का इस्तेमाल किया जाता है, जो दिखने में सामान्य कमर्शियल फ्लाइट की तरह ही लगते हैं।
4 फरवरी की सुबह, टेक्सास के सैन एंटोनियो से एक अमेरिकी सैन्य विमान सी-17 ने भारतीय मूल के 205 अवैध प्रवासियों को लेकर उड़ान भरी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को अपने चुनावी एजेंडे का अहम हिस्सा बनाया था और अब उनके प्रशासन ने इसे तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। अब अवैध प्रवासियों को सैन्य विमानों में जंजीरों से बांधकर देश निकाला देने की तस्वीरें दुनिया देख रही है। ट्रंप की यह नीति न सिर्फ विवादास्पद है, बल्कि आर्थिक रूप से भारी पड़ने वाली है। फिर भी, अमेरिका इसे अंजाम क्यों दे रहा है?
मिलिट्री प्लेन से डिपोर्टेशन क्यों हो रहा है?
अमेरिका में आमतौर पर अवैध प्रवासियों को देश से बाहर भेजने के लिए कॉमर्शियल चार्टर विमानों (ICE फ्लाइट्स) का इस्तेमाल किया जाता है, जो दिखने में सामान्य कमर्शियल फ्लाइट की तरह ही लगते हैं। लेकिन हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने सैन्य विमानों के जरिए डिपोर्टेशन शुरू किया है। यह तरीका न केवल असामान्य है बल्कि बहुत महंगा भी पड़ता है।
हाल ही में कोलंबिया ने एक अमेरिकी मिलिट्री विमान को अपने यहां उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने कहा था कि वे केवल सिविलियन विमानों से प्रवासियों को वापस लेने के लिए तैयार हैं। फिर भी ट्रंप प्रशासन सैन्य विमानों के जरिये डिपोर्टेशन को अंजाम दे रहा है।
एक सैन्य डिपोर्टेशन फ्लाइट की लागत कितनी?
अमेरिका में अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए आमतौर पर ICE (यूएस कस्टम्स एंड इमिग्रेशन एनफोर्समेंट) चार्टर उड़ानों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी लागत अपेक्षाकृत कम होती है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में ग्वाटेमाला भेजे गए एक मिलिट्री डिपोर्टेशन फ्लाइट की लागत प्रति व्यक्ति $4,675 (करीब 4 लाख रुपये) आई। जबकि अगर वही व्यक्ति अमेरिकी एयरलाइंस की फर्स्ट क्लास टिकट से यात्रा करता, तो यह लागत महज $853 (करीब 74 हजार रुपये) होती। ICE चार्टर फ्लाइट की लागत 17,000 डॉलर (करीब 14 लाख 80 हजार रुपये) प्रति घंटा होती है और एक सामान्य पांच घंटे की उड़ान में यह 135 लोगों पर प्रति व्यक्ति 630 डॉलर (54 हजार रुपये) तक पड़ती है।
C-17 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट विमान की ऑपरेटिंग लागत $28,500 (24 लाख रुपये) प्रति घंटे बताई गई है। भारत के लिए डिपोर्टेशन उड़ान अब तक की सबसे लंबी सैन्य उड़ान मानी जा रही है। इससे पहले ऐसे विमान ग्वाटेमाला, पेरू, होंडुरास और इक्वाडोर भेजे गए थे।
ट्रंप प्रशासन मिलिट्री फ्लाइट का उपयोग क्यों कर रहा है?
इस डिपोर्टेशन प्रक्रिया में सैन्य विमानों का उपयोग सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रतीकात्मकता भी दर्शाता है। डोनाल्ड ट्रंप लगातार अवैध प्रवासियों को "अपराधी" और "विदेशी घुसपैठिए" कहते रहे हैं। ट्रंप ने इसे अमेरिका पर "आक्रमण" करार दिया है। ट्रंप चाहते हैं कि यह संदेश स्पष्ट रूप से जाए कि अमेरिका अवैध प्रवासियों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
हथकड़ी लगाकर निर्वासन
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में कई ऐसी कई तस्वीरें की हैं, जिनमें अवैध प्रवासियों को हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां पहनाकर सैन्य विमानों में चढ़ाया जा रहा है। सैन्य विमानों में जंजीरों से बंधे प्रवासियों की तस्वीरें इसी नैरेटिव को मजबूत करने का जरिया हैं। 24 जनवरी को व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी करोलीन लेविट ने ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, "डिपोर्टेशन फ्लाइट्स शुरू हो गई हैं। ट्रंप का संदेश स्पष्ट है: अमेरिका में घुसोगे तो सजा मिलेगी।"
ट्रंप की रणनीति सिर्फ प्रवासियों को निकालने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यह प्रक्रिया बेहद तेज़ हो। दिसंबर में उन्होंने कहा था, "मैं नहीं चाहता कि ये लोग अगले 20 साल तक कैंप में बैठे रहें। मैं चाहता हूं कि वे तुरंत बाहर जाएं और उनके देश उन्हें वापस लें।"
लैटिन अमेरिकी देशों की प्रतिक्रिया
अमेरिका द्वारा सैन्य विमानों का उपयोग डिपोर्टेशन के लिए किए जाने पर कई लैटिन अमेरिकी देशों ने नाराजगी जताई है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, अमेरिका की सैन्य उपस्थिति लैटिन अमेरिकी देशों के लिए एक संवेदनशील विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई लैटिन अमेरिकी देशों के वामपंथी नेता—जैसे कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो और ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा—इस तरह के सैन्य अभियानों को संप्रभुता पर खतरा मानते हैं। मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम ने कहा, "वे अपनी सीमाओं के भीतर जो चाहें कर सकते हैं। लेकिन जब बात मैक्सिको की हो, तो हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करेंगे और समन्वय स्थापित करने के लिए संवाद करेंगे।"
भारत की स्थिति और भविष्य की संभावनाएं
अब सवाल उठता है कि भारत सरकार इस डिपोर्टेशन पर कैसी प्रतिक्रिया देगी? भारत सरकार के लिए यह मामला कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह 205 भारतीय नागरिकों से जुड़ा हुआ है। संभावना जताई जा रही है कि अगर ट्रंप प्रशासन अवैध प्रवासियों पर इसी तरह सख्ती दिखाता रहा, तो भविष्य में और भी भारतीयों को अमेरिका से वापस भेजा जा सकता है।
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