बिहार के दो बच्चों को मिला राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, शेखपुरा के सौरव ने बचाई थी तीन जान
शेखपुरा के छात्र सौरव कुमार ने अपनी जान दांव पर लगाकर तीन लड़कियों को डूबने से बचाया था। वहीं, नालंदा की गोल्डी कुमारी ने एक्सीडेंट में हाथ गंवाने के बाद भी देश को शॉर्ट पुट में मेडल दिलाया। दोनों को राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय बाल पुरस्कार दिया है।
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बिहार के दो होनहार बच्चों को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गुरुवार को नई दिल्ली में देश भर के 17 बच्चों के साथ नालंदा के हरनौत की गोल्डी कुमारी और शेखपुरा के सौरव कुमार को भी यह पुरस्कार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों मिला। इन दोनों ने अपनी साहस और वीरता का परिचय देकर असाधारण उपलब्धि हासिल की। दिव्यांग छात्रा गोल्डी कुमारी ने जहां खेल में अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया, वहीं सौरव ने तीन लड़कियों की जान बचाकर अदम्य साहस का परिचय दिया।
राष्ट्रपति भवन में देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कुल 17 बच्चों को सात अलग-अलग श्रेणियों- कला और संस्कृति, बहादुरी, इनोवेशन, शैक्षणिक, पर्यावरण, सामाजिक सेवा और खेल के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पुरस्कार दिया गया। गोल्डी को खेल और सौरव को बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया गया। इन बच्चों को पदक, प्रशस्ति पत्र और नगद राशि मिली है। दिल्ली के भारत मंडपम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन होनहार बच्चों से संवाद किया और उन्हें अपना ऑटोग्राफ भी दिया।
सौरव ने जान हथेली पर रख तीन बच्चियों को डूबने से बचाया था
शेखपुरा के किशनपुर मध्य विद्यालय के 10 वर्षीय छात्र सौरव कुमार ने अपनी जान हथेली पर रखकर नदी में डूब रही तीन बच्चियों की जान बचाई थी। 8 अगस्त 2024 को शेखोपुरसराय प्रखंड के बेलाव पंचायत के किशनपुर गांव के तालाब में तीन बच्चियों को डूबता देख सौरव ने छलांग लगा दी। तीनों को वह सकुशल लेकर किनारे आ गया। राज्य ही नहीं बल्कि देश भर में उसकी इस बहादुरी की चर्चा हुई।
एक्सीडेंट में हाथ खोया लेकिन जज्बा नहीं टूटा, गोल्डी ने भारत को दिलाया गोल्ड
नालंदा जिले में हरनौत के सरथा संत पॉल इंग्लिश स्कूल की दसवीं की छात्रा गोल्डी ने भारत को शॉर्टपुट खेल में गोल्ड मेडल दिलाया। थाइलैंड में हुए वर्ल्ड एबिलिटी स्पोर्ट्स यूथ गेम्स में उन्होंने अपनी दिव्यांगता को ताकत बनाते हुए यह इतिहास रचा। बचपन में गोल्डी ने एक सड़क दुर्घटना में अपना बायां हाथ खो दिया था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी कमजोरी को हावी नहीं होने दिया और भारत का झंडा थाइलैंड में ऊंचा किया।