बोले काशी : तूने छीने हरे-भरे दरख्त, देख ये शहर कितना उदास
Varanasi News - वाराणसी में हरियाली की कमी के मुद्दे पर चर्चा हुई। पर्यावरण प्रेमियों ने पौधरोपण और उनकी देखभाल की आवश्यकता पर जोर दिया। जी-20 सम्मेलन के दौरान लगाए गए पौधों की हालात चिंताजनक है। विकास के साथ-साथ...
वाराणसी। छायादार-फलदार पेड़ों वाले बाग-बगीचों ने शिवनगरी को बनाया था ‘आनंदकानन। समय के साथ बाग-बगीचे लुप्त हुए। कमबख्त ‘विकास ने सड़कों को भी वीरान कर दिया। नथुनों से फेफड़ों तक धूलकणों की लेयर देख ‘ग्रीन काशी का आह्वान बुलंद हुआ। बीते एक दशक में लाखों पौधे लगे, उनमें कुछ ही हरेभरे दरख्त बन पाए। दो साल पहले जी-20 देशों के सम्मेलन के दौरान शहर में हरियाली दिखी थी। पर्यावरण हितैषियों के मुताबिक शहर को उसी हरियाली की दरकार है। वह मुकम्मल देखभाल से संभव है। फिर ग्रीन काशी भी नामुमकिन नहीं। वाराणसी शहर सिर्फ फोरलेन और सिक्स लेन से विकसित होता तो योजनाकारों ने पार्कों की परिकल्पना नहीं की होती। बनारस शहर में छोटे-बड़े लगभग 300 पार्क हैं। इनमें गिनती के 10 पार्क भी नहीं हैं जिन्हें नगर निगम या वीडीए मॉडल बता सके। जबकि हर साल डुगडुगी बजाकर पौधरोपण की मुहिम चलती है। जिला राइफल क्लब में कभी एक आला अफसर ने चुटकी ली थी कि हाल के वर्षों में जितने पौधे लगे हैं, वे जिंदा रहते तो उनकी लकड़ियों से आज स्वर्ग तक सीढ़ी बन गई होती। कुछ ऐसी ही चिंता से घिरे शहर के पर्यावरण हितैषियों ने ‘हिन्दुस्तान से अपनी बातें साझा कीं, उपयोगी सुझाव भी दिए। चर्चा में सहभागी लोगों की चिंता के दायरे में पेड़-पौधों के साथ परिंदे भी हैं। वे इस बहस से आगे की सोचते हैं कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण के साथ इंसान की सेहत को कितनी और किस रूप में हानि हो रही है। डॉ. राजेश श्रीवास्तव, नवनीत पांडेय, समीर कुमार ने याद दिलाया कि वर्ष 2023 में 17-20 अगस्त तक शहर में जी-20 देशों के सम्मेलन के लिए हरियाली पर भी खूब काम हुआ था। कई क्षेत्रों में इतने पौधे लगे थे कि लोग उन्हें देख बोल पड़ते थे-‘लग ही नहीं रहा कि हम बनारस में हैं। सम्मेलन के कुछ दिनों बाद बड़े-बड़े गमलों में लगे पौधे कहां गए, इसकी किसी को जानकारी नहीं है। शहर फिर उदास हो गया। डॉ. राजेश ने कहा कि प्रधानमंत्री के शहर आगमन पर ही वह उदासी कुछ छंटती दिखती है।
...तभी बने हरियाली प्लान
प्रीति श्रीवास्तव, राजन श्रीवास्तव ने ध्यान दिलाया कि शहर के चारों ओर हाईवे, फोर या सिक्स लेन एक दिन में नहीं बने हैं। प्लानिंग से लेकर उनके तैयार होने के बीच लंबी अवधि थी। उसी अवधि में हजारों फलदार और छायादार पेड़ों की कटाई भी हुई। उन्होंने कहा कि हाईवे की प्लानिंग के समय ही हरियाली की भी प्लानिंग क्यों नहीं बनाई जाती? निवेदिता इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य डॉ. आनंदप्रभा सिंह ने जोड़ा- ‘रोड की तरह किसी एजेंसी को पौधरोपण कराने और न्यूनतम पांच वर्षों तक उन पौधों की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। तभी कटाई की भरपाई संभव है। इन पर्यावरण हितैषियों ने कहा कि लोकल स्तर पर जनसहभागिता बढ़ाने का भी अभियान जरूरी है।
बड़े पेड़ों की हो शिफ्टिंग
पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय नीलम राय और नीलू त्रिपाठी ने कहा कि जो पेड़ कई वर्षों के छाया दे रहे हैं, उन्हें काटने के बजाय शिफ्ट करने पर विचार होना चाहिए। शिफ्टिंग का काम थोड़ा महंगा जरूर हो सकता है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से यह बहुत महत्वपूर्ण है। रोहनिया में सड़क चौड़ीकरण के लिए कटे पेड़ों का जिक्र करते हुए नीलम सिन्हा ने कहा कि 30-30 साल पुराने पेड़ गायब हो गए। अब जो पौधे लगेंगे, वे कम से कम 8-10 साल में तैयार होंगे। इन 8-10 वर्षों की अवधि में पेड़ों की कमी से वायु प्रदूषण और तापमान में बढ़ोतरी होगी। जल प्रदूषण भी होगा। अंतिम असर आम लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा।
बीते वर्षों का हो हिसाब
समीर कुमार, नवनीत पांडेय ने कहा कि शासन की ओर से हर साल पौधरोपण का लक्ष्य मिलता है। लक्ष्य देने से पहले यह देखना चाहिए कि पिछले वर्षों में लगाए गए कितने पौधे बचे हैं। इसकी जांच होने से वास्तविक स्थिति पता चलेगी। तब सभी विभाग अपनी जिम्मेदारी समझेंगे और पौधों का संरक्षण होगा। तभी पौधरोपण का उद्देश्य साकार होगा। उन्होंने कहा कि हर साल सरकार के पैसे बर्बाद होते हैं। लोगों को इसका लाभ भी नहीं मिल रहा है। डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने जोर दिया कि पौधे लगाने के साथ उन्हें बचाने पर भी ध्यान देना जरूरी है। इसमें सरकारी विभागों के साथ आम लोगों की भी समान जिम्मेदारी है। डॉ. आनंदप्रभा ने कहा कि कई बार लगने के एक हफ्ते बाद ही पौधे सूख जाते हैं। उन्हें लगाने का कोई मतलब नहीं होता है।
हरित पट्टी पर हो सख्ती
डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि महायोजना हो या दूसरी कोई प्लानिंग, हरित पट्टी या ग्रीन बेल्ट का उल्लेख जरूर मिलता है मगर यह धरातल पर कम दिखता है या एकदम नहीं। कॉलोनियों का ले आउट पास होने की एक अनिवार्य शर्त है ग्रीन बेल्ट मगर वीडीए कितनी कड़ाई और ईमानदारी से उसे लागू करवाता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि कुछ वर्षों पहले वरुणा किनारे भी ग्रीन बेल्ट विकसित करने पर जोर दिया जा रहा था, आज वह ढूंढ़े नहीं मिलेगा। नीलम राय, नीलिमा सिन्हा ने कहा कि इंसान के साथ ही जानवरों को भी जीवित रहने के लिए शुद्ध वातावरण जरूरी है। ऐसे में कॉलोनी, मकान, बिल्डिंग बनाते समय ग्रीन बेल्ट पर सख्ती होनी चाहिए।
हैंडपंपों से हो वर्षा जल संरक्षण
व्यग्र फाउंडेशन के संस्थापक नवनीत पांडेय ने बताया कि शहर के 100 वार्डों में लगभग 20 हैंडपंप रेड जोन एरिया में हैं। उनका कोई इस्तेमाल नहीं है। उन हैंडपंपों का इस्तेमाल वर्षा जल संरक्षण के लिए हो सकता है। हैंडपंप का ऊपरी हिस्सा निकाल कर उसे ऐसी जगह लगाया जाए जहां जल संरक्षण आसानी से संभव हो। यह प्रयोग के तौर भी किया जा सकता है।
फ्लोरा एक्टिविटी के लिए हो जागरूकता
नीलम राय, नीलिमा सिन्हा ने फ्लोरा एक्टिविटी की ओर ध्यान दिलाया। ईको सिस्टम में संतुलन के लिए उपयोगी उपायों में इन दिनों व्यापक रूप से फ्लोरा एक्टविटी पर जोर दिया जा रहा है। इसमें पौधों पर क्यूआर कोड लगाए जाते हैं। उस कोड में क्षेत्र विशेष के पौधों का वर्गीकरण प्रजातियों और उनके गुणधर्म की जानकारी होती है। उनका नामकरण भी उसी आधार पर होता है। यह एक्टिविटी स्कूलों में बहुत चलती है ताकि छात्र पर्यावरण के प्रति जागरूक बनें। नीलू त्रिपाठी ने कहा कि वह गतिविधि आमजन के बीच भी चले तो वे पेड़-पौधों का महत्व समझेंगे। इसमें पर्यावरण क्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं, व्यक्तियों को भी सहभागी बनाया जा सकता है।
मिला देते हैं सूखा-गीला कूड़ा
डॉ. आनंद प्रभा सिंह और प्रीति श्रीवास्तव ने कहा कि एक तरफ गीला और सूखा कचरा अलग-अलग रखने के लिए जागरूक किया जा रहा है। लोगों में जागरूकता आई भी है। वे घरों से गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग देते हैं मगर नगर निगम की कूड़ा गाड़ी में दोनों को मिला दिया जाता है। उन्होंने सवाल किया कि फिर इस कवायद का फायदा क्या है? बताया कि वाहन के साथ वाले कर्मचारी टोकने पर भी मनमानी करते हैं।
सख्ती से लागू हो ईपीआर सिस्टम
सरिता राय, रश्मि सिंह ने सवाल उठाया कि मानक के विपरीत बनने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है तो वह मार्केट में कहां से आ रही है? जाहिर है, ऐसी प्लास्टिक के उत्पादन पर प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि जो प्लास्टिक प्रतिबंधित नहीं है, उसके निस्तारण का भी समुचित प्रबंधन नहीं दिखता। डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) को सख्ती से लागू करना चाहिए। ईपीआर में उत्पादकों को उनके उत्पादों के जीवन चक्र के अंत में (उपभोक्ता के उपयोग के बाद) कचरा प्रबंधन की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है। यह कई देशों में कड़ाई से लागू है।
पते की बात
रोड की तरह किसी एजेंसी को पौधरोपण के बाद न्यूनतम पांच वर्षों तक उनके देखभाल की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
- डॉ. आनंद प्रभा सिंह
ग्रीन बेल्ट का प्रावधान सभी तरह के निर्माणकर्ताओं के लिए बाध्यकारी होना चाहिए। इसके उल्लंघन पर कठोर दंड लगे।
- डॉ. राजेश श्रीवास्तव
हर साल पौधरोपण से पहले ये देखना चाहिए कि पिछले वर्षों में लगे कितने पौधे बचे हैं। इससे वास्तविक स्थिति पता चलेगी।
- समीर कुमार
विकास के किसी भी प्लान में पर्यावरण को विशेष जगह देनी चाहिए। पुराने छायादार पेड़ों को काटने के बजाय शिफ्ट करना चाहिए।
- राजन श्रीवास्तव
खराब पड़े हैंडपंपों की बोरिंग का उपयोग वर्षा जल के संरक्षण में हो सकता है। शहर में ऐसे 20 से अधिक हैंडपंप हैं।
नवनीत पांडेय
फ्लोरा एक्टिविटी के जरिए आमजन को पेड़-पौधों के प्रति जागरूक करना होगा। यह गतिविधि अभियान का रूप ले सकती है।
- अंशु शुक्ला
सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्णतया बैन क्यों नहीं लगाया जाता? जिला प्रशासन को कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।
- नीलिमा सिन्हा
पौधों के बड़े होने पर वहां लगे ट्रीगार्ड हटा लेने चाहिए। कई जगह ट्रीगार्ड ही पौधों के विकास में बाधक बने हुए हैं।
- नीलू त्रिपाठी
एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) को सख्ती से लागू हो ताकि प्लास्टिक उत्पादक अपनी जिम्मेदारी समझें।
- नीलम राय
जीव जंतुओं के भी संरक्षण का प्रयास होना चाहिए। कुछ पक्षी विलुप्त हो रहे हैं। वे पर्यावरण के लिए जरूरी हैं।
- रश्मि सिंह
सुझाव
1- सड़कों की चौड़ीकरण प्लानिंग के समय ही ग्रीनरी के संबंध में भी योजना बने, उसका प्रभावी क्रियान्वयन हो। साथ ही पुराने छायादार पेड़ों की उचित जगह शिफ्टिंग की जाए।
2- सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग पर पूर्णतया रोक लगे। जो लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं, उन पर कार्रवाई हो। उसके उत्पादकों पर भी कठोर दंड लगे।
3- नगर निगम कूड़ा उठवाने वाली एजेंसी को सख्ती से ताकीद करे कि घरों से निकलने वाला गीला और सूखा कचरा कूड़ा गाड़ियों में एक में न मिलाया जाए।
4- कॉलोनियों, हाईवे पर और नदी किनारे हरित पट्टी का नियम सख्ती से लागू हो। नक्शे में इसके लिए स्वीकृत जगह का उपयोग पौधे लगाने में ही किया जाए।
5-प्रशासन और वन विभाग जी-20 देशों के सम्मेलन की तरह ही शहर के प्रमुख मार्गों पर हरियाली का प्रबंध करे। स्थानीय लोगों को जवाबदेह बनाए।
शिकायतें
1- सड़कों के चौड़ीकरण के लिए 30-30 साल पुराने पौधे काट दिए गए हैं। कई इलाकों में अब पेड़ नहीं बचे हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ लोगों की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं।
2- प्रतिबंध के बाद भी सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा है। इसके उत्पादकों पर कार्रवाई नहीं हो रही है।
3- एक तरफ गीला और सूखा कचरा अलग-अलग रखने के लिए जागरूक किया जा रहा है। दूसरी ओर नगर निगम की कूड़ा गाड़ी कचरे को एक ही में मिला देती है।
4- कॉलोनियों और हाईवे पर हरित पट्टी बनाने के नियम को सख्ती से नहीं लागू किया जा रहा है। नक्शे में भले हरित पट्टी के लिए जगह तय हो लेकिन इस जगह पर पौधे नहीं लगाए जा रहे हैं।
5- जी-20 देशों के सम्मेलन के दौरान शहर में जिस प्रकार हरियाली दिखी, वह कुछ दिनों बाद ही गायब हो गई। तब लगे पेड़ों कहां गए, इसकी भी जानकारी नहीं है।
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इन बातों से भी बचेगा पर्यावरण
1- घरों में लगे आरओ की पाइप से निकलने वाले पानी का उपयोग अन्य काम में करें। उसे बेकार न जाने दें। बाल्टी में पानी लेकर करें वाहनों की सफाई। शॉवर का इस्तेमाल न करें।
2- हरियाली के लिए छतों पर पौधे लगाएं। रूफटॉप गार्डेन से न सिर्फ ताजा सब्जियां मिलेंगी बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।
3- बाजार से सामान लाने के लिए अपने साथ झोला लेकर जाएं। प्लास्टिक का प्रयोग न करें, दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें। प्लास्टिक के सामानों के प्रयोग से बचें।
4- घर में सब्जियों की कतरन आदि को कूड़े में फेंकने से बचें। उनसे खाद बनाई जा सकती है जो किचेन गार्डेन को हराभरा रखेगी।
5- जैसे अपने घरों को स्वच्छ रखते हैं, वैसे ही अपने शहर के प्रति जिम्मेदार बनें। घाट, सड़कों पर कूड़ा न फेंकें। कोई ऐसा करते हुए दिखे तो उसे जागरूक करें।
6- एसी, फ्रिज का इस्तेमाल कम से कम करें। ठंडे पानी के लिए घड़े का प्रयोग करें। जब घर पर पेड़, पौधे लगे होंगे तो एसी की अधिक जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे बिजली की खपत कम होगी।
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