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बोले कानपुर : नेपाल ही नहीं हम इस माटी के भी लाल, हमारी पहचान पर क्यों उठ रहे सवाल

Kanpur News - कानपुर में नेपाली समुदाय को पहचान और नागरिकता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। प्रशासन उनकी संख्या को शून्य मानता है, जबकि उनकी संख्या 87,500 होने का दावा है। समुदाय को पासपोर्ट, आरक्षण, और सामाजिक...

Newswrap हिन्दुस्तान, कानपुरFri, 28 Feb 2025 02:45 AM
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बोले कानपुर : नेपाल ही नहीं हम इस माटी के भी लाल, हमारी पहचान पर क्यों उठ रहे सवाल

देश का कानून कहता है कि जिसने इस माटी में जन्म लिया वह देश का नागरिक होगा। लेकिन यह कानून हमारे नेपाली समुदाय के मामले में सटीक नहीं बैठता है। नाम और चेहरे के आधार पर उनके बच्चों के पासपोर्ट सालों से लंबित हैं। कानपुर शहर की बात करें तो 87 हजार से ज्यादा लोग यहां बसर करते हैं लेकिन जिला प्रशासन उनकी संख्या नगण्य मानता है। हमारे लिए सबसे बड़ा संकट अपनी पहचान का है। हम क्या करें...कहां जाएं? यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है। मेरी चौथी पीढ़ी कानपुर में रह रही है। हममें से ज्यादातर यहीं पैदा हुए और हमारे बच्चे भी। इसके बावजूद हम पहचान को तरस रहे हैं। हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। संविधान का पालन हमारे मामले में क्यों नहीं होता समझ से परे है। यह बताते हुए भारतीय गोरखा परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल थापा के चेहरे पर शिकन आ गई। बोले, नेपाली समुदाय को पहचान दिलाने के लिए उनसे पहले लोग लड़ते रहे। अब वह इस लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं। सफलता कब मिले, बता नहीं सकते लेकिन हार नहीं मानेंगे। बोले, पिता नेपाल से सीधे भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। जिसके बाद उनका परिवार भारत में रहने लगा। ऐसे में देश के प्रत्येक नागरिक को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर उनका भी हक बनता है।

देश के लिए बलिदान हुए शहीद भी पहचान को तरस रहे : भारतीय गोरखा परिसंघ की जिलाध्यक्ष उमा थापा ने कहा कि हम ही नहीं, देश के लिए बलिदान करने वाले हमारे शहीद भी अपनी पहचान को तरस रहे हैं। बोलीं, आजाद हिन्द फौज में सेवा देने वाले रिटायर्ड कैप्टन राम सिंह ठकुरी ने राष्ट्रगान जन गण मन की धुन बनाई थी। ‘कदम कदम बढ़ाए जा जैसे कई राष्ट्रभक्ति गीत लिखे लेकिन उनकी कहीं कोई प्रतिमा नहीं है।

हमारी संख्या शून्य बताकर अपमान कर रहा प्रशासन : लोक बहादुर सिंह को भी इसी बात कर रंज है। वह बोले, 1950 में भारत नेपाल के बीच हुई संधि के तहत हम यहां रह रहे हैं। ऐसे में जिला प्रशासन हमारी संख्या को शून्य बताकर हमारे अस्तित्व को नकारकर हमारा अपमान कर रहा है। वह भी तब जब सरकार ने हमारी भाषा का राजभाषा का दर्जा देकर भारतीय मुद्रा में स्थान दिया है।

जागेश्वर धाम सोसायटी में घुटनों तक भरता पानी : योगा कोच मोहित थापा का दर्द बरसात में क्षेत्र में पानी भरने का है। वह बोले, आजाद नगर श्री जागेश्वर धाम सोसाइटी कटरी ख्योरा के क्षेत्र में बरसात के समय घुटनों तक पानी भर जाता है। इसे लेकर अक्सर शिकायतें की गईं लेकिन सुनवाई नहीं होती। नेपाली मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुनील भुषाल का भी दर्द बरसात में पानी भरने, सड़क ठीक न होने और मंदिर के आसपास कूड़े का ढेर होने को लेकर दिखाई दिया।

बिजली के खंभों, पार्क और सीवर की समस्या : पहचान, आरक्षण जैसी समस्याओं से जूझ रहे नेपाली समाज की सामाजिक समस्याएं भी हैं। समुदाय के लोग कैलाश विहार के साथ ही गोविंदपुरी, चकेरी के बीबीपुर, इन्दिरा नगर, जाजमऊ, पनकी, दादानगर, परेड, आईआईटी नानकार, लालबंगला समेत विभिन्न जगहों पर रहते हैं। इन जगहों पर पार्क, सीवर, बिजली के खंभों जैसी आम समस्याएं से यह लोग जूझ रहे हैं।

इन्दिरा नगर की गुप्ता सोसायटी में रहने वाली लीला शर्मा कहती हैं कि यहां 32 परिवार नेपाली समाज के हैं। यहां खंभे नहीं हैं। ऐसे में बिजली की लाइन दूसरे के मकानों की ग्रिल अथवा पेड़ आदि पर बांधकर लाना पड़ता है। विवाद तो होता ही है, यह सुरक्षा के लिए भी घातक है। वह बताती हैं कि यहां नालियां भरी रहती हैं, सीवर का पानी सड़क पर बहता है। जयंती गुरंग बताते हैं कि आवास विकास तीन में उनके घर के सामने स्थित पार्क खराब पड़ा है। बैठने की लिए बनी सीमेंटेड सीटें टूटी पड़ी हैं और यहां पर गंदगी का अंबार है।

मंदिर के रखरखाव में प्रशासन करे मदद : नेपाली मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुनील भुषाल बताते हैं के जनपद में उनके समाज के दो मंदिर हैं। पहला मंदिर कल्याणपुर आवास विकास-1 कैलाश विहार में आकार पशुपति नाथ मंदिर है क्योंकि यह काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर के आकार का है। दूसरा मंदिर चकेरी के बीबीपुर में दुर्गा मंदिर है। मंदिरों के आसपास आवागमन, साफ सफाई और बरसात में पानी भरने की समस्या आम है। इन समस्याओं से नेपाली समाज ही जूझता है और आपस में पैसा एकत्रित करके कार्य करवाता है। कई बार क्षेत्रीय पार्षद और जनप्रतिनिधि की मदद मिलती है लेकिन वह नाकाफी होती है। ऐसे में वह चाहते हैं के मंदिर के सुंदरीकरण और रखरखाव में जिला प्रशासन और नगर निगम मदद करे। नेपाली समाज मंदिरों में तीज महोत्सव और दशहरा कार्यक्रम धूमधाम से मनाता है।

प्रशासन के आंकड़ों में शून्य पर दावा है 87,500 का : कानपुर में रह रहे नेपाली समाज के लोगों को सबसे बड़ा दर्द है कि जिला प्रशासन के आंकड़ों में उनकी संख्या शून्य है। नेपाली समाज के लोगों को दावा है कि कानपुर में उनकी संख्या करीब 87,500 है, बावजूद इसके जिला प्रशासन शून्य क्यों मानता है, उनकी समझ से परे है। भारतीय गोरखा परिसंघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल थापा कहते हैं कि ऐसा नहीं कि उनके पत्राचार पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। 17 दिसंबर 2024 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग उत्तर प्रदेश के सचिव की ओर से प्रदेश के 11 जनपदों के डीएम को पत्र भेजकर चार बिंदुओं पर सूचना मांगी गई थी। जिन जनपदों को पत्र भेजा गया था, उनमें कानपुर के साथ ही बरेली, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, बहराइच आदि शामिल थे।

सुझाव

1. जिला प्रशासन अपने स्तर से जांच कराकर नेपाली समाज के लोगों की गिनती कराए

2. गिनती कराने के साथ आरक्षित वर्ग को चिन्हित कराया जाए

3. महापुरुषों की मूर्तियां लगाने के लिए नगर निगम स्थान मुहैया कराए

4. स्कूलों में नेपाली भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति का शासनादेश जारी हो

5. नगर निगम और प्रशासन मदद करे तो हमारे मंदिरों का सुंदरीकरण हो सकता है।

समस्याएं

1. जिले में 87 हजार के आसपास संख्या होने का दावा लेकिन प्रशासन की नजर में शून्य

2. आरक्षण न मिलने से शिक्षा, नौकरी में प्राथमिकता नहीं मिलती है

3. देश के लिए अपना सर्वस्व देने वाले नेपाली समाज के महापुरुषों को कोई नहीं जानता

4. नेपाली भाषा को मान्यता है लेकिन नेपाली शिक्षक एक भी नहीं हैं

5. शहर में हैं दो मंदिर, रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं

बोले समाज के लोग

समाज को जनगणना में शामिल नहीं किया है। हमें भी मुख्य धारा में लाने की जिम्मेदारी सरकार की ही है।

कृष्णा सिंह क्षेत्री

नेपाली भाषा को राज्य की भाषा में शामिल करना चाहिए। पढ़ाई में नेपाली भाषा भी विषय होना चाहिए।

शांति सिंह क्षेत्री

यूपी में भी अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए, ताकि हमें भी पढ़ाई व नौकरी में आरक्षण मिले।

दुर्गेश थापा, भारतीय गोरखा परिसंघ

शहर में नेपाली समाज का एक मंदिर है। जिला प्रशासन को यहां की सफाई की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

अनिल थापा, भारतीय गोरखा परिसंघ

सरकार को समाज के लिए गोरखा भवन बनवाना चाहिए। अगर सरकार भवन नहीं बनवा सकती है तो हमें रियायती दर पर जमीन दे ताकि हम स्वयं ही भवन का निर्माण करवा लेगे।

उमा थापा, जिलाध्यक्ष भारतीय गोरखा परिसंघ

जिले में करीब 80 हजार से ज्यादा नेपाली भाषी लोग रहते हैं। कोई भी राजनीतिक दल हमारे मुद्दों को नहीं उठाता है। चुनाव के दौरान जरूर कुछ लोग हमारी मांगों को रखने की बात करते हैं।

भगवती भुसाल

प्रदेश में लगभग 10 लाख नेपाली भाषी हैं। लखनऊ और कानपुर से सीधे नेपाल के लिए फ्लाइट होनी चाहिए।

चुन्नी राना

समाज के लोग सेना और अन्य विभागों से जुड़कर देश की सेवा कर रहे हैं। फिर भी सरकार हमारा ध्यान नहीं रखती है।

जयंती गुरूंग

लोग हमें दूसरे देश का नागरिक मानते हैं जबकि हम भारतीय हैं। हमें भी सामाजिक तौर पर बराबरी का दर्जा मिले।

तुलसा गुरूंग

सबसे ज्यादा पासपोर्ट बनवाने में दिक्कत होती है। प्रशासनिक अधिकारी भी हमें विदेशी नागरिक मानते हैं।

सुनील भुसाल

बोले जिम्मेदार

भारत-नेपाल की सांस्कृतिक विरासत काफी प्राचीन है। हमारे शहर में रह रहे नेपाली समुदाय के लोगों की जो भी दिक्कतें हैं, उनका प्राथमिकता पर निस्तारण कराया जाएगा। उनसे जुड़ी सभी समस्याओं को चिह्नित कर नियमानुसार हल कराया जाएगा।

जितेंद्र प्रताप सिंह, जिलाधिकारी

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