बोले कानपुर : जर्जर भवन में करते हैं रिहर्सल, मंचन के लिए नसीब नहीं हॉल
Kanpur News - कानपुर में रंगमंच की स्थिति बेहद खराब है। ऐतिहासिक हॉल जर्जर हो गए हैं और कलाकारों को उचित स्थान नहीं मिल रहा है। नगर निगम ने सुधार का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ा। रंगमंच की पहचान...
कभी थिएटर का गढ़ रहा कानपुर अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्षशील है। आजादी के पहले फूलबाग स्थित केईएम हॉल में ब्रिटिश अफसर अंग्रेजी नाटकों के मंचन किया करते थे, आज यह हॉल सरकारी कार्यालय में बदल चुका है। वहीं अनुकृति जैसी 37 वर्ष पुरानी संस्था के कलाकार जिस भवन में अभिनय अभ्यास करते हैं, वह जर्जर स्थिति में है। यहां कुछ को तो बैठने तक को जगह नहीं मिलती। रंगमंच कलाकार कहते हैं कि प्रशासन से हमें मदद मिलनी चाहिए, ताकि हम अच्छे से रिहर्सल कर सकें। रंगमंच की दुनिया में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। देश भर में उतार चढ़ाव की तस्वीर देखते हुए वर्ष 1943 में मुंबई में इसका गठन हुआ। इसके तार तब से ही कानपुर से जुड़े रहे। इप्टा से ही जुड़े सदस्यों ने 1986 में शहर में अनुकृति का गठन किया जो आज तक शहर में रंगमंच की लौ जलाए है। ज्यादातर कलाकार इसी से जुड़े हैं जो शहर के एक जर्जर ऐतिहासिक भवन में एकत्रित होते हैं और रोज किसी न किसी नाटक के मंचन का अभ्यास करते हैं। यहां कुछ को बैठने के लिए जगह मिल पाती है तो कुछ खड़े रहते हैं। संकट के समय ऊबड़ खाबड़ जमीन पर एक फर्श बिछा दिया जाता है, जहां लोग रिहर्सल करते और थकने पर यहीं बैठ जाते हैं। रंगमंच के वरिष्ठ कलाकार इप्टा का प्रतिनिधित्व कर चुके अनुकृति के संस्थापक डॉ. ओमेंद्र कुमार बताते हैं कि जब रंगमंच की स्थिति ऐसी हो तो इससे शहर में रंगमंच की बुनियादी समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह हॉल ग्वालटोली में कानपुर मजदूर सभा का भवन है।
सशक्त आवाज न होने से ढहा थिएटर का ढांचा : रंगमंच से जुड़े कलाकार बताते हैं कि कानपुर में कभी थिएटर का मजबूत ढांचा था। धीरे-धीरे ध्यान न दिए जाने और सशक्त आवाज न होने से यह ढहता चला गया। नगर निगम से कई बार आग्रह किया गया। जिस जर्जर भवन में आज रिहर्सल किया जा रहा है, उसके लिए नगर निगम से आग्रह किया गया था। तत्कालीन नगर आयुक्त ने इसे स्वीकार किया और जीर्णोंद्धार के लिए एक प्रस्ताव भी तैयार किया, पर यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका। परिणाम स्वरूप जर्जर भवन में हर मौसम में प्रतिकूल परिस्थितियों में यहां रिहर्सल को जारी रखा जाता है। ऐसे में वह ही कलाकार साथ रह पाते हैं जो कला के प्रति बेहद समर्पित हैं और इसमें रुचि लेते हैं। यदि रिहर्सल स्थल में सुधार हो जाए तो रंगमंच में गति आ सकती है।
कभी यहां मंचन होते थे, आज बदहाल हो गए हॉल : एएनडी कॉलेज के पीछे एक हॉल है। इसे नगर निगम हॉल के रूप में जाना जाता है। वर्षों यहां नाटकों का मंचन होता रहा है। इसके लिए नाममात्र शुल्क ही पड़ता था। अक्सर ऐसा भी हुआ है जब इसके लिए नगर निगम ने कोई धन नहीं लिया। इसे रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता रहा है। आज यह जर्जर हालत में वर्षों से बंद पड़ा है। इसका कोई उपयोग नहीं होता है। हर्ष नगर स्थित इस हॉल में करीब 100 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। कुर्सियां लगी हैं लेकिन टूट चुकी हैं। बैठते ही कोई नीचे गिर सकता है। यह हालत इसलिए हो गई क्योंकि नगर निगम इस पर ध्यान नहीं देता है। यदि नगर निगम इसे दुरुस्त करा कर रंग मंच के जिम्मेदारों को सौंप दे तो रंगमंच को ऑक्सीजन मिल जाएगी। इस हॉल में इतना स्थान है कि नाटकों का मंचन देखने के शौकीन हर सप्ताह, हर दिन इसका आनंद ले सकते हैं। इसी तरह केईएम हॉल जिसे सरकारी कार्यालय के रूप में उपयोग किया जा रहा है, उसे भी रंगमंच के लिए सौंपा जा सकता है। यह हॉल ऐतिहासिक है जहां आजादी से पहले भी नाटकों का मंचन होता रहा है। पर आज यह अच्छी स्थिति में नहीं है कि यहां मंचन हो सके।
आर्थिक संकट से जूझ रहे हम : कलाकारों का कहना है कि शहर में कई बड़े ऑडिटोरियम हैं। इसमें चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (सीएसए) का कैलाश भवन सभागार, एचबीटीयू का शताब्दी हॉल, लाजपत भवन, मर्चेंट चैंबर हॉल, शास्त्री भवन हॉल आदि में नाटकों का मंचन हो सकता है लेकिन यहां मंचन के लिए मोटी रकम चाहिए। कानपुर में नाटकों के मंचन में टिकट की परंपरा नहीं रही है। ऐसे में आर्थिक संकट बना रहता है।
मंचन करने वाले संगठन मोटी रकम नहीं जुटा पाते। कभी कानपुर में एएनडी कॉलेज के पीछे के हॉल में मंचन हुआ करते थे जिसके लिए टोकन मनी ली जाती थी। यह नगर निगम का हॉल था। कारण तो नहीं पता लेकिन अब मंचन के लिए इसे नहीं दिया जाता है। केईएम हॉल में नाटकों का मंचन आजादी से पहले से होता आया है, अब यहां कोई सरकारी कार्यालय खोल दिया गया है। ऐसे में कम कीमत पर या निशुल्क प्रेक्षागार मंचन के लिए नहीं मिल पाते हैं।
सुझाव
1.स्कूलों व कॉलेजों में रंगमंच को व्यक्तित्व विकास का हिस्सा बनाया जाए
2.एएनडी कॉलेज के पीछे बना नगर निगम हॉल फिर से रंगमंच के लिए लौटाएं
3.नगर निगम विशेष हॉल परिसर बनाए जहां कलाकारों को रिहर्सल व ठहरने की पूरी व्यवस्था हो
4.शहर की पहचान रहे बड़े कलाकारों की प्रमिताएं स्मृति के तौर पर लगवाई जाएं
5.रंगमंच के कलाकारों को सरकारी व गैर सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाए
समस्याएं
1.विश्वविद्यालय अथवा स्कूलों में नाटकों के प्रोफेशनल कोर्स नहीं हैं, कलाकारों का अभाव
2.मंचन के लिए महंगे हॉल तो हैं लेकिन सस्ते हॉल की व्यवस्था नहीं है, भटकना पड़ता है
3.ग्वालटोली स्थित ऐतिहासिक कानपुर मजदूर सभा कार्यालय जहां रिहर्सल करते हैं वह जर्जर हो चुका है
4.रेलवे में कोरोना काल से पहले कलाकारों को 75% यात्रा में कंसेशन मिलता था, अब बंद है
5.शहर में कलाकारों के बाहर से आने पर ठहरने की नि:शुल्क अथवा सस्ती व्यवस्था नहीं है।
बोले कलाकार
शहर में सुविधाओं से युक्त कोई रिहर्सल स्थल नहीं है। जहां रिहर्सल करते हैं वह स्थान बेहद जर्जर है।
डॉ. ओमेंद्र कुमार
मंचन के लिए सस्ते ऑडिटोरियम चाहिए। यहां हजारों खर्च करने की क्षमता न हो तब तक मंचन संभव नहीं है। दीपक सोलोमन
हमारे यहां टिकट लेकर नाटक देखने की बात दर्शकों की आदत में नहीं है। फ्री कल्चर हावी है। इस पर अंकुश लगे। प्रभात सिंह
हमारे शहर के उद्योगपति यदि इस क्षेत्र में थोड़ी रुचि ले लें तो नाटकों के मंचन की संख्या बढ़ सकती है। सम्राट यादव
यदि देश के अन्य शहरों में थिएटर को लेकर संकट नहीं है तो कानपुर में क्यों। हमारी बात लोग सुनने को तैयार नहीं। आयुष यादव
हर वर्ग के नाम से आवासीय कॉलोनियां हैं लेकिन रंगमंच कलाकारों के नाम से नहीं है। जबकि नगर ने कई कलाकार हैं। वरुण गुप्ता
पहले लोग कहते थे कि मेरा हॉल खाली रहता है आप चाहें तो रिहर्सल कर सकते हैं। अब मोटा किराया मांगते हैं। आकाश शर्मा
कई शहरों में व्यवस्था है कि कलाकार कहीं मंचन करे तो उनका ठहरना निशुल्क हो जाता है। यहां ऐसा नहीं है। महेश जायसवाल
बोले जिम्मेदार
रंगमंच किसी भी शहर की पहचान होता है। अगर रंगमंच कलाकारों को कुछ समस्याएं हैं तो वे सीधे मुझसे संपर्क कर सकते हैं। उनकी हर समस्या का समाधान कराया जाएगा। सरकारी योजनाओं और नियमों में रहते हुए जो मदद की जा सकती है, होगी। रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए जनप्रतिनिधियों व सामाजिक संगठनों से भी मदद कराने का प्रयास किया जाएगा।
जितेंद्र प्रताप सिंह, जिलाधिकारी
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