Farmers in Mauaima Suffer as Tomato Prices Plummet Leading to Crop Decay बोले प्रयागराज : खेतों में सड़ रहा टमाटर, रो रहे किसान , Gangapar Hindi News - Hindustan
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बोले प्रयागराज : खेतों में सड़ रहा टमाटर, रो रहे किसान

Gangapar News - मऊआइमा के किसान खून-पसीने से तैयार की गई टमाटर की फसल की कीमतों में भारी गिरावट से बेहाल हैं। मंडी में टमाटर के दाम सिर्फ 50-60 रुपये प्रति कैरेट हो गए हैं, जबकि उत्पादन लागत इससे कहीं अधिक है। किसान...

Newswrap हिन्दुस्तान, गंगापारThu, 1 May 2025 03:10 PM
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बोले प्रयागराज : खेतों में सड़ रहा टमाटर, रो रहे किसान

मऊआइमा के किसान बेहाल खून-पसीने से तैयार की गई टमाटर की फसल आज खेतों में सड़ रही है। वह किसान जो दिन-रात तपती धूप और भीषण गर्मी में मेहनत कर फसल को तैयार करता है, आज अपने खेत की ओर देखने से भी कतरा रहा है। क्योंकि जब मेहनत की कीमत न मिले, तो उम्मीद भी दम तोड़ देती है। इस समय प्रयागराज के मऊआइमा, बहरिया, सोरांव सहित आसपास के क्षेत्रों में प्रति गांव औसतन 25 बीघे भूमि पर टमाटर की खेती की गई है। एक बीघे में लगभग 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है। इसमें बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई और मजदूरी सब शामिल है।

किसान यह लागत इसलिए लगाता है क्योंकि उसे उम्मीद होती है कि मंडी में टमाटर अच्छे भाव में बिकेगा। लेकिन इस बार की हकीकत बहुत ही कड़वी है। मुंडेरा मंडी में पिछले एक महीने से टमाटर की कीमत प्रति कैरेट 50 से 60 रुपये ही चल रही है। जबकि एक कैरेट में करीब 26 से 28 किलो टमाटर आता है और दाम केवल 25 किलो का ही मिल रहा है। वहीं प्रति कैरेट लाने-ले जाने का खर्च 60 से 65 रुपये तक बैठता है। इसमें 30 रुपये भाड़ा, 20 रुपये तोड़ने और भरने की मजदूरी, पांच रुपये पल्लेदारी और पांच प्रतिशत तक कमीशन शामिल हैं। ऐसे में जब बिक्री का मूल्य ही लागत से कम हो, तो किसान क्या करे?। हालत ये है कि किसानों ने टमाटर की तैयार फसल को खेतों से तोड़ना ही बंद कर दिया है। उन्हें डर है कि कहीं इसे तोड़कर मंडी ले गए तो और नुकसान न हो जाए। भीषण गर्मी में सिंचाई भी नहीं कर पा रहे क्योंकि फसल से कोई लाभ नहीं दिख रहा। परिणामस्वरूप खेतों में ही टमाटर सूख और सड़ रहा है। सिर्फ एक गांव की बात करें तो शिवसागर पटेल ने एक बीघा, राम सुन्दर पटेल ने छह बीघा, लाल बहादुर पटेल तीन बीघा, रामप्रसाद ने दो बीघा, अशोक पटेल ने एक बीघा, रामबहादुर बचऊ ने एक बीघा, नईम उद्दीन एक बीघा, रामचंद्र पटेल एक बीघा, लालचंद पटेल एक बीघा तथा राकेश पटेल ने लगभग एक बीघा टमाटर लगाया है जो खेतों में सूख रहा है। यह कोई पहली बार नहीं है। हर वर्ष किसान इस तरह की मार झेलते हैं। कभी दाम अचानक बढ़ जाते हैं तो थोड़ी राहत मिलती है, और इसी लालच में किसान अगली बार फिर खेती करता है। लेकिन जब मंडी में भाव टूटते हैं, तो उसकी सारी उम्मीद, मेहनत और पूंजी धराशायी हो जाती है। इस समय भी किसान राहत की उम्मीद कर रहा है। फसलें खराब होने और रेट डाऊन होने के चलते मंडी में न जाने से प्रति कैरेट रेट सौ से दो सौ रुपये प्रति कैरेट तक बढ़े हैं। लेकिन जैसे ही खेतों का माल मंडी में पहुंचना शुरू होगा दाम फिर गिर सकते हैं। क्षेत्र का किसान आज आलू, दलहन तिलहन और अन्य फसली खेती में सबसे अधिक मेहनत करने वाला और सबसे अधिक जोखिम उठाने पर मजबूर हो चुका है, लेकिन उसे उसकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। कृषि को घाटे का सौदा बनता देख नई पीढ़ी इससे दूर भाग रही है। इसके बाद भी लंबे समय से खेती कर रहे किसान ने सीजन में फायदे की उम्मीद से घाटे के बाद दोबारा मेहनत पर जुट जाते हैं। बोले जिम्मेदार किसान केवल भोजन नहीं उगाता, वह देश की आत्मा है। अगर उसकी मेहनत की कोई कद्र नहीं होगी, तो खेती से जुड़ा भविष्य भी संकट में आ जाएगा। यह समय है जब सरकार, समाज और बाजार को मिलकर किसान की पीड़ा को समझना होगा और ठोस कदम उठाने होंगे। वरना हर साल टमाटर की तरह उम्मीदें भी खेतों में ही सड़ती रहेंगी। अफसोस की बात है कि खाने की मेज पर किसी न किसी रूप में रहने वाले टमाटर को उगाने वाला किसान इस बेचारगी में जी रहा है। -इम्तियाज समी, ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि मऊआइमा विधानसभा के जिस गांव में जाती हूं वहां टमाटर की फसल सूखती देख मन दुखी होता है। मंडी में दो रुपये किलो टमाटर बिकना किसानों के लिए दुखदाई है। सरकार द्वारा क्षेत्र में किसानों के लिए सब्जी के शीतगृह बनवाए जाएं। टमाटर का उपयोग सॉस, चटनी और अचार के लिए भी किया जा सकता है। कृषि मंत्री को किसानों की इस समस्या से अवगत कराया जाएगा। सरकार को इस ओर ध्यान देकर एक बड़े तबके से जुड़ी इस महत्वपूर्ण समस्या पर विचार करने और किसानों को राहत देने की जरूरत है। -गीता शास्त्री, विधायक सोरांव ----------- हमारी भी सुनें टमाटर जैसी नकदी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए। ताकि किसानों को कम से कम उसकी लागत तो मिल सके। फसल उत्पादन के बाद घर की जमा-पूंजी का डूब जाना अत्यंत निराशाजनक है। -शिवसागर पटेल, चकश्याम स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट्स गांवों में टमाटर प्यूरी, सॉस, चटनी जैसे उत्पाद बनाने के लिए प्रसंस्करण इकाइयाँ शुरू की जानी चाहिए ताकि फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सके। और किसानों को फसल का मूल्य मिलने का विश्वास बना रहे और वह खेतों में मेहनत करने से न हिचकिचाएं। -राकेश कुमार पटेल, किसान महीने भर के समय में दाम ऊपर-नीचे होते रहते हैं कोल्ड स्टोरेज की सुविधा हो तो टमाटर को कुछ दिनों तक सुरक्षित रखा जा सके, इसके लिए हर प्रमुख क्षेत्र में टमाटर जैसी फसलों के लिए भी कोल्ड स्टोरेज की सुविधा होनी चाहिए। -राणा प्रताप पटेल, किसान टमाटर की खेती करने के बाद आशंका बनी रहती है, कभी दाम और कुछ मुनाफा मिल जाता है लेकिन अक्सर सीजन पर टमाटर के दाम मिट्टी हो जाते हैं। जबकि फसल खत्म होने के महीने भर बाद ही दाम आसमान छूने लगते हैं। यह स्थिति किसानों को परेशान करती है। -जगदंबा प्रसाद पटेल, किसान गहरपुर मलकिया हम लोग भी साल भर महंगा टमाटर खरीदते या बिकता देखते हैं। खुद भी 20 से 50 रुपए किलो तक खरीदते हैं लेकिन जब हमारी फसल निकलती है तो रेट बेतहाशा गिर जाता है। प्रति वर्ष यही हाल है। सरकार इस पर ध्यान दे। -अशोक कुमार पटेल, किसान चकश्याम मंडी उतार-चढ़ाव आ जाए। कभी कुछ कम मिले कभी थोड़ा ज्यादा तो सहा जा सकता है। लेकिन ये क्या बात हुई कि तैयार फसल को मंडी तक ले जाने का खर्च भी टमाटर बेचकर न निकले। यह स्थिति किसानों को हतोत्साहित और कमजोर कर देती है। इसीलिए किसान दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा है। -रामपूजन पटेल, किसान

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