बोले बिजनौर : मूढ़ा उद्योग को चाहिए सुविधाओं की बुनाई
Bijnor News - मंडावर के दयालवाला और कोहरपुर गांव का मूढ़ा उद्योग संसाधनों की कमी के कारण संकट में है। करीब 400 परिवार इस उद्योग से जुड़े हैं, लेकिन उन्हें उचित दाम और अनुदान नहीं मिल पा रहा है। कारीगरों का कहना है...

लोगों के घरों की शान कहलाने वाला मंडावर के दयालवाला व कोहरपुर का मूढ़ा उद्योग संसाधन के अभाव में सिसक रहा है। बिजनौर को आसपास के प्रदेशों में अलग पहचान दिलाने वाले मूढ़ा उद्योग से जुड़े लोग अपने पुरखों की परंपरा को संभाले हुए हैं। इनका कहना है कि संसाधन व प्रशिक्षण मिले तो जिले का मूढ़ा उद्योग देश भर में अपनी अलग पहचान बना सकता है। मेहनत के बावजूद मूढ़ा कारीगरों को वाजिब दाम नहीं मिल पाते। दोनों गांवों के करीब 400 परिवार मूढ़ा उद्योग से जुड़े हुए हैं। इन परिवारों के करीब 1500 लोग मूढ़ा बनाने के काम में लगे हुए हैं।
मूढ़ा कारीगरों का कहना है कि उन्हें उद्योग बढ़ाने के लिए बैंकों से लोन तक नहीं मिल पाता। आयुष्मान कार्ड जैसी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। मूढ़ा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सरकड़ा (सर्वा) पर वन विभाग को टैक्स भी देना पड़ता है। मूढ़ा उद्योग से जुड़े कारीगरों का कहना है कि जिला प्रशासन उनके मूढ़ा उद्योग को विदुर ब्रांड के नाम पर अनुदान संसाधन दिलाए तो उनके दिन भी बहुर सकते है। जिले के मंडावर थाना क्षेत्र का दयालवाला व कोहरपुर गांव प्राचीन मूढ़ा उद्योग को आज भी जिंदा रखे हुए है। दोनों गांवों की 60 प्रतिशत आबादी कांस और सर्वे से तैयार होने वाले मूढ़ों, कुर्सियों, मेजों और सोफा सेट को बनाकर अपने परिवार की गुजर-बसर करता है। इन गांवों में निर्मित विभिन्न डिजायनों के मूढ़े देश के कई राज्यों में जाते है। स्थानीय क्षेत्र में भी इस उत्पाद की जबरदस्त मांग है। हालांकि मूढ़ा उद्योग के काम में महंगाई व संसाधन के अभाव में गिरावट भी आई है। दोनों गांवों के करीब 400 परिवार कई पीढ़ियों से मूढ़ा बुनने के काम को करते आ रहे हैं। इस गांव में काफी बड़े स्तर पर सर्वें व बान की रस्सी से मूढ़ा और उससे मिलते जुलते उत्पाद तैयार किए जाते हैं। आधुनिकता के दौर में भी कांस और सर्वे से निर्मित कुर्सी, मूढ़ा, सोफा सेट और मेज का अपना ही महत्व है। बाजार में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए मूढ़ा उद्योग भी काफी समय से लाइलोन की रस्सी से निर्मित रंग-बिरंगे खूबसूरत मूढ़े बना रहा है। मूढ़ा बनाने के काम में बच्चे से लेकर बूढ़े तक परिवार के सभी सदस्य अपनी भूमिका निभाते हैं। अलग-अलग जाति व धर्म के सैकड़ों परिवार इस काम से अपने परिवार की गुजर-बसर कर रहे हैं। पूरा परिवार सुबह से शाम तक मूढ़ा बनाने के काम शिद्दत से लगा रहता है। कई प्रदेशों में जाता है दयालवाला का मूढ़ा ग्राम प्रधान लाल सिंह, राकेश कुमार, वेशपाल ने बताया कि स्थानीय बाजार के अलावा दूसरे राज्यों में उनके बनाए मूढ़ों की काफी मांग है। दयालवाला में बनाए गए मूढ़े हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर व दिल्ली आदि प्रदेशों में खूब पसंद किए जाते हैं। डिमांड के मुताबिक दूसरे प्रदेशों को मूढ़े भेजे जाते है। नहीं मिलता है उचित मेहनताना कई दशकों से मूढ़ा बुनते आ रहे नरेश कुमार, जीतराम सिंह ने बताया कि मूढ़ा बनाने में काफी मेहनत लगती है। मूढ़ा बनाने में कांस और सर्वे (सरकडे) का इस्तेमाल किया जाता है। इस काम में पूरा परिवार लगता है। रस्सी बांटने और सुखाने का काम परिवार के बच्चे और महिलाएं करते हैं। मेहनत के बावजूद उनको मेहनत का पूरा मेहताना नहीं मिलता है। मूढ़ा तैयार करने में लगता है पूरा दिन कारीगर सागर, अरुण कुमार व ब्रहमपाल ने बताया कि एक व्यक्ति को एक कुर्सी मूढ़ा तैयार करने में पूरा दिन लग जाता है। सोफा तैयार करने में चार से पांच दिन लगते हैं। वहीं एक दिन में दो मूढ़े और एक मेज तैयार होती है। कांस की रस्सी और सर्वे से बनी कुर्सी को बनाने में करीब 400 रुपये की लागत आती है। मूढ़े में 150 रुपये, सोफे में 700 रुपये और मेज में 400 रुपये की लागत आती है। जबकि कुर्सी 700 रुपये, मेज 700 रुपये, मूढ़ा 300 रुपये में बिकता है। नहीं मिलता अनुदान व बैंकों से ऋण टिंकू कुमार, श्रीकांत, मोहित कुमार ने बताया कि उनको कोई सुविधा नहीं मिलती है। जिला प्रशासन उनके उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शासन से अनुदान दिलवाए। बैंक भी उनकों ऋण देने में आनाकानी करते है। उन्हें आसानी से ऋण उपलब्ध कराया जाए तो कारोबार को लाभ पहुंचेगा। वन विभाग न ले सरकंडे (सर्वे) पर टैक्स अंकित कुमार, सागर व अरूण कुमार ने बताया कि उनको मूढ़ा व कुर्सी बनाने में सबसे अहम सरकंडा है। जिस पर वन विभाग उनसे टैक्स वसूलता है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वन विभाग को सरकंडे पर टैक्स में छूट मिल जाए तो काफी लाभ मिलेगा। हमारी भी सुनो बात मूढ़ा बनाने के लिएि सरकड़ा नजीबाबाद के वनों से लाना पड़ता है। इस पर वन विभाग द्वारा टैक्स लिया जाता है। टैक्स से मूढ़ा बनाने वालों को राहत मिलनी चाहिए। - टिंकू कुमार। महंगाई के दौर में मूढ़ा बनाने में काफी लागत आती है लेकिन लागत को देखते हुए मूढ़ा सही दामों पर बिकना चाहिए। - श्रीकांत। मूढ़ा कारोबारियों के लिए सरकार योजना चलाए और योजना का लाभ मिले। सरकार को मूढ़ा कारोबारियों को योजना संचालित कर अनुदान देना चाहिए।-मोहित कुमार मूढ़ा बनाने वाले लोग मूढ़ा बनाने में पारंगत है। सरकार को विशेष अभियान चलाकर कई प्रकाकर के मूढे़ और कुर्सियां बनाने का प्रशिक्षण उपलब्ध कराना चाहिए। - अंकित कुमार काफी लोगों के राशन कार्ड नहीं है। राशन कार्ड न होने से राशन नहीं मिल पाता है। हम सब वंचित लोगों को प्राथमिकता के आधार पर राशन कार्ड बनने चाहिए। - सागर दिन भर मेहनत करने के बाद अपना परिवार चलाते हैं। हम लोगों के आयुष्मान कार्ड नहीं है। प्रशासन हमारे आयुष्मान कार्ड बनवाए। - अरूण कुमार काफी लोग ऐसे हैं जिनके प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत आवास नहीं है। गरीब लोगों को योजना के तहत आवास मिलने चाहिए। - ब्रहमपाल 400 परिवार मूढ़ा बनाकर अपनी जीविका चला रहे हैं। इस काम में इतनी ज्यादा मुनाफा नहीं है कि अच्छे से गुजर बसर हो जाए। प्रशासन गांव में निशुल्क स्वास्थ्य शिविर लगवाकर बीमारों की बीमारियों की जांच कराकर निशुल्क दवाई उपलब्ध कराए। - जीतराम सिंह ---- मूढ़ा बनाने में एक दिन लगता है। मेहनत को देखते हुए मूढे़ के दाम नहीं मिल पाते हैं। बाजार में मूढ़ा के दाम अच्छे मिलने चाहिए। - दीपक कुमार मूढ़ा बनाने वाले परिवारों के लोगों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। योजनाओं का लाभ मिलने से जीवन आसान हो जाएगा। - नरेश कुमार गंगा पार से मूढ़ा बनाने के लिए सरकड़ा और सरवे आदि लाने पड़ते हैं। मूढ़े बनाने का काम करने वालों को आसानी से मूढ़ा बनाने का सामान उपलब्ध होना चाहिए। - विपिन कुमार गांव के लोग शानदार मूढ़ा बनाते हैं। मूढ़ा बनाने के लिए इधर उधर चक्कर काटने पड़ते हैं। प्रशासन को हम लोगों को मूढे़ का बाजार उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि बाजार में मूढ़ा आसानी से बिक जाए। - लाल सिंह ग्राम प्रधान। सरकार और अफसर मूढ़ा कारोबार को बढ़ावा दें। जिला ही नहीं दूसरे जिलों और राज्यों से भी मूढ़े की डिमांड आनी चाहिए, ताकि लोगों को रोजगार मिल सकें। - वेशपाल। मूढ़ों के लिए बाजार उपलब्ध होना चाहिए। मूढ़ों की डिमांड अधिक आनी चाहिए। इससे गांव के युवाओं को भी रोजगार मिलेगा। सरकार इस कारोबार पर ध्यान दें। - राकेश सुझाव 1. नई तकनीक से मूढ़ा बनाने का प्रशिक्षण दिया जाए। 2. सरकड़ा, कांस और सरवे पर टैक्स न लिया जाए। 3. मूढ़ा उद्योग को बढ़ावा दिया जाए ताकि युवाओं को रोजगार मिल सकें। 4. मूढ़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बाजार उपलब्ध होना चाहिए। 5. मूढ़ा बनवाने के लिए दूसरे राज्यों से भी भरपूर डिमांड आनी चाहिए। शिकायतें 1. सरकड़ा, कांस और सरवे के नाम पर लिया जाता है टैक्स। 2. आज के दौर में मूढ़ा बनाने का नहीं दिया जाता कोई प्रशिक्षण। 3. मूढ़ा बेचने के लिए नहीं मिलता एक निश्चित बाजार, इधर उधर बेचने को मजबूर ग्रामीण। 4. राशन कार्ड से लेकर आयुष्मान कार्ड तक नहीं बने हैं। 5. लागत और मेहनत को देखते हुए मूढे़ के नहीं मिलते अच्छे दाम ।
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