बोले बलिया : एक दिन में दो ड्यूटी, कोरोना काल का अब तक नहीं मिला डीए
Balia News - फार्मासिस्टों ने अपनी समस्याओं को उठाते हुए बताया कि उन्हें एक दिन में दो बार ड्यूटी करनी पड़ती है, लेकिन इसके लिए कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं मिलता। एनपीएस कटौती का पासबुक छह साल बाद भी नहीं मिला है और...
कहने को फार्मासिस्ट चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के ‘स्लाइड रिंच हैं लेकिन उनकी अपनी ही पेच उलझी है। जिम्मेदारों की अनदेखी उन्हें सालती है। पद का मानक अंग्रेजों के जमाने का है जबकि आबादी कई गुना बढ़ चुकी है। इससे काम का दबाव रहता है। एक दिन में दो ड्यूटी के एवज में अतिरिक्त भुगतान नहीं मिलता। एनपीएस कटौती का पासबुक छह वर्ष बाद भी नहीं मिला है। कोरोना काल के डीए भुगतान को अबतक टकटकी लगाए हैं। टीम आधारित प्रोत्साहन राशि नहीं मलती। वरिष्ठता सूची 10 वर्षों से लंबित है। जनपदीय ड्रग वेयर हाउस पर ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में फार्मासिस्टों ने अपनी बातें रखीं। डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष मलय कुमार पांडेय ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में चिकित्सक को छोड़ सभी कार्य फार्मासिस्ट के निर्देश पर ही करने का प्रावधान है, लेकिन इसका अनुपालन कहीं नहीं होता। जिला अस्पताल में फार्मासिस्टों की तैनाती में अंग्रेजों के जमाने का मानक चला आ रहा है। जबकि आबादी कई गुना बढ़ चुकी है और उसका लोड अस्पताल पर रहता है। सृजित पदों की संख्या बढ़ाने की कभी कवायद नहीं हुई। बताया कि जिला अस्पताल के दवा वितरण केंद्र पर एक फार्मासिस्ट की ड्यूटी लगती है। उस पर रोजाना करीब दो हजार लोगों को दवा बांटने की जिम्मेदारी होती है। नियम है कि फार्मासिस्ट चिकित्सक की लिखी पर्ची पढ़ने के बाद दवा निकालेगा, मरीज या परिजन को डोज बताएगा और आहार के बारे में जानकारी देगा। इसका पालन नहीं हो पाता। फार्मासिस्ट के जिम्मे दवाओं को ऑनलाइन खारिज करने की भी जिम्मेदारी है। आपातकालीन कक्ष में भी एक फार्मासिस्ट की ही तैनाती होती है। वह औसत प्रतिदिन 300 मरीजों को दवा देने आदि कार्य करते हैं। काउंटर पर आए दिन हो-हल्ला मचता है लेकिन सुरक्षा का इंतजाम नहीं रहता।
एसोसिएशन के मंत्री अशोक कुमार सिंह ने कहा कि जिला अस्पताल में तैनात फार्मासिस्टों को एक दिन में दो बार ड्यूटी करनी होती है। इसके एवज में उन्हें अतिरिक्त भुगतान नहीं मिलता। नाइट ड्यूटी के बाद अगले दिन एक ड्यूटी का रेस्ट मिलता है। 18 घंटे ड्यूटी देने वाला फार्मासिस्ट यदि मौका पाकर खाने चला गया और संयोग से उसी दौरान कोई अधिकारी पहुंचा तो दंड भी भोगना पड़ता है।
गैर फार्मासिस्ट से सर्जिकल स्टोर का कार्य
विनोद सिंह ने बताया कि फार्मासिस्टों की तैनाती में भी मनमानी की जाती है। जिला महिला चिकित्सालय में पर्याप्त फार्मासिस्ट हैं, फिर भी सर्जिकल स्टोर का कार्य गैर फार्मासिस्ट से लिया जाता है। वहीं, किसी भी सीएचसी-पीएचसी पर फार्मासिस्टों के सहयोग के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नामित नहीं हैं। इससे चिकित्सकीय कार्य भी प्रभावित होते हैं।
कटौती छह वर्ष से, पासबुक का पता नहीं
अशोक कुमार सिंह ने बताया कि वेतन से कटौती को एनपीएस लागू हुए छह वर्ष बीत चुके हैं लेकिन कितनी कटौती हुई, इसकी जानकारी उन्हें नहीं होती। क्योंकि अब तक पासबुक नहीं मिला। जबकि विशेष परिस्थति में भुगतान तभी होगा, जब पासबुक प्रस्तुत किया जाएगा। यही नहीं, एनपीएस नंबर मिलने में भी छह माह से एक वर्ष तक का समय लग जाता है। कई कर्मचारियों की चार-पांच वर्ष से एनपीएस कटौती नहीं हो रही है। उन्हें सेवानिवृत होने के बाद काफी नुकसान होगा। यह भी नियम है कि यूपीएस के लाभ के लिए लगातार एनपीएस कटौती होना चाहिए। जबकि स्थानांतरित होकर आए कर्मचारियों की कटौती ब्रेक हो जाती है, जिसे मेंटेंन नहीं किया जाता।
चिकित्सक के प्रभार पर मिलते हैं 75 रुपये
शैलेश शर्मा ने बताया कि जिन अस्पतालों में चिकित्सक नहीं होते, वहां फार्मासिस्ट को प्रभार दिया जाता है। इसके बदले हमें बतौर भत्ता मात्र 75 रुपये मिलता है। यह नियम वर्ष 1986 से लागू है। इसमें संशोधन की कभी पहल नहीं हुई। यही नहीं अधिकांश मामलों में मौखिक आदेश दिया जाता है। लिखित आदेश देने से अधिकारी बचते हैं। लिहाजा फार्मासिस्ट के लिए कार्य करना जोखिम भरा होता है।
आवास की समस्या है जटिल
सर्वेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि ज्यादातर अस्पतालों में फार्मासिस्टों के लिए आवास सुविधा नहीं है। जहां आवास हैं, वे इस कदर जर्जर हैं कि उनमें रहना जान को खतरे में डालने जैसा है। तैनाती स्थलों में जर्जर आवास के नाम पर उन्हें आवास भत्ता नहीं मिलता। आवास उपलब्ध न होने की दशा में ग्रामीण क्षेत्रों में 1340 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2020 रुपये मासिक ही मिलते हैं। इस धनराशि में ग्रामीण क्षेत्रों में भी आवास मिलना कठिन होता है।
कोरोना वारियर का तमगा, डीए अब तक नहीं
प्रदीप पाठक ने बताया कि कोरोना काल में फार्मासिस्टों ने एल-वन तथा एल-टू अस्पतालों में दिन-रात चिकित्सकीय कार्य किया। हमें कोरोना वारियर्स की उपाधि से नवाजा गया लेकिन प्रोत्साहन राशि की कौन कहे, रुके हुए डीए का भी भुगतान अब तक नहीं हो सका है। इसके लिए कई बार आवाज उठाई गई। जिम्मेदारों तक हमारी आवाज नहीं पहुंच पा रही है।
वरिष्ठता सूची 10 वर्षों से लंबित
शैलेन्द्र पाण्डेय ने बताया कि सरकार ने अस्पतालों पर अच्छा चिकित्सकीय कार्य करने पर टीबीआई (टीम बेस्ड इन्सेंटिव) का प्रावधान किया है, लेकिन इसका भुगतान नहीं होता है। फार्मासिस्टों की वरिष्ठता सूची वर्ष 2015 से लंबित है। इसके चलते आने वाले दिनों में कई तरह की दिक्कते होंगी।
दवा वितरण को कर्मचारी कम, वाहन भी पुराने
मलय कुमार पांडेय ने बताया कि ड्रग वेयर हाउस पर जनपद के सभी अस्पतालों पर दवाएं भेजने की जिम्मेदारी है। लेकिन वहां चतुर्थ श्रेणी के मात्र दो कर्मचारी को तैनात किया गया है। इसके चलते कार्य प्रभावित होता है। सीएमओ की ओर से चिकित्सालयों तक दवाएं पहुंचाने के लिए उपलब्ध कराए गए वाहन भी काफी पुराने हो चुके हैं। इससे कार्य अवरुद्ध होता है। जिला महिला चिकित्सालय की ओर से छोटे वाहन दिए जाते हैं, जिनसे दवाएं ले जाने में फार्मासिस्ट कई दिनों तक उलझे रहते हैं।
अप्रशिक्षित से दवा बंटवाना एक्ट का उल्लंघन
विनोद कुमार सिंह ने बताया कि फार्मेसी एक्ट के तहत बिना फार्मासिस्ट के दवा वितरण नहीं किया जा सकता है। जबकि वर्तमान में अप्रशिक्षित आशा बहू, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, सीएचओ से ग्रामीण स्तर पर दवा वितरण कराया जा रहा है। प्रदेश के लाखों प्रशिक्षित फार्मासिस्ट बेरोजगार होकर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इन अप्रशिक्षित लोगों के स्थान पर प्रशिक्षित बेरोजगार फार्मासिस्टों को तैनात कर उनसे दवा वितरण कराना चाहिए। इससे जान माल का खतरा भी नहीं रहेगा।
फार्मासिस्ट की जगह बड़े बाबू करते खरीदारी
बसंत पांडेय और देवनाथ वर्मा ने कहा कि बिना फार्मासिस्ट के प्रस्ताव के दवा या अन्य किसी सामान की खरीदारी नहीं की जा सकती है लेकिन बिना हमारे प्रस्ताव के ही बड़े बाबू सामानों की खरीदारी करते हैं। यह गलत है। सवाल किया कि, आखिर उन्हें क्या पता है कि कौन सी दवा और कौन सा सामान कितना खरीदना है। जो सामान नहीं चाहिए, उसे भी मंगा दिया जाता है। जिसकी जरूरत होती है, उसे नहीं मंगाया जाता। इससे बकझक भी हो जाती है।
कई पीएचसी में बिजली कनेक्शन नहीं
सतीशचंद्र वर्मा ने बताया कि जिले के ज्यादातर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बिजली कनेक्शन नहीं है। इसके चलते दवा के रख-रखाव में काफी परेशानी होती है। बिजली के अभाव में दवाएं कारगर नहीं रह पाती हैं। उसके लिए मरीज उलाहना देते हैं। सुई-दवा का तापमान मेंटेन रखने के लिए बिजली का बिजली कनेक्शन नितांत आवश्यक है।
त्योहारों में भी छुट्टी नहीं
प्रदीप कुमार पाठक ने कहा कि हर विभाग में अधिकारियों-कर्मचारियों को त्योहारों की छुट्टियां मिलती हैं लेकिन हम फार्मासिस्टों को कोई सार्वजनिक अवकाश नहीं मिलता। सार्वजनिक अवकाश के दिन भी दोपहर 12 बजे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। इसके चलते हम त्योहार नहीं मना पाते। कहा कि अवकाश के अभाव में फार्मासिस्टों का सामाजिक, आर्थिक व पारिवारिक नुकसान होता है। इसके एवज में न तो कोई अलग भुगतान मिलता है और न ही प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
केंद्र से 10 गुना अधिक ड्यूटी करते हैं हम
अशोक कुमार सिंह ने बताया कि राज्य सरकार फार्मासिस्ट को केंद्र के समान वेतन तो देती है लेकिन कार्य में केंद्र का मानक नहीं होता। यहां फार्मासिस्टों को एक से अधिक कार्य करने पड़ते हैं। पहले फार्मासिस्टों को एक माह का अतिरिक्त यानी 13 माह का वेतन मिलता था। अब वह बंद हो चुका है। इसी बात को राजेश ने आगे बढ़ाया। बोले, ओपीडी में दवा वितरण, आनलाइन दवा खारिज, इमरजेंसी, रैबीज इंजेक्शन, पोस्टमार्टम आदि जिम्मेदारियां दी जाती हैं। राष्ट्रीय कार्यक्रम की भी जिम्मेदारी है। जबकि केंद्र के फार्मासिस्ट दो बजे ड्यूटी कर घर चले जाते हैं। हम एक दिन में दो बार ड्यूटी देते हैं। हमसे भी केंद्र की तरह ड्यूटी ली जानी चाहिए।
सुझाव :
फार्मासिस्ट को एक दिन में दो ड्यूटी से राहत मिले। अतिरिक्त ड्यूटी के बदले अतिरिक्त भुगतान की व्यवस्था हो।
जिला अस्पताल में दवा वितरण कार्य के लिए कम से कम दो फार्मासिस्ट की तैनाती की जानी चाहिए। इससे वर्कलोड कम होगा।
एनपीएस कटौती के पासबुक की तत्काल व्यवस्था की जाए। उसे फार्मासिस्टों को उपलब्ध भी कराया जाए।
फार्मासिस्टों के कोरोना काल के लंबित डीए का भुगतान जल्द हो। बेवजह भुगतान लम्बित न किया जाय।
समय-समय पर टीम आधारित प्रोत्साहन राशि के भुगतान की प्रक्रिया हो। इससे फार्मासिस्टों को भी लाभ मिलेगा।
शिकायतें :
फार्मासिस्ट को एक दिन में दो ड्यूटी के एवज में कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं मिलता।
जिला चिकित्सालय में एक फार्मासिस्ट पर वर्कलोड बहुत अधिक होता है।
एनपीएस कटौती का पासबुक छह वर्ष बाद भी नहीं मिला। इससे कटौती का हिसाब नहीं मिल पाता।
कोरोना काल के डीए का भुगतान अब तक लंबित है। इस संबंध में विभाग गंभीर नहीं है।
टीम आधारित प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होता। इससे फार्मासिस्टों को लाभ नहीं मिल पाता।
सुनें हमारी आवाज
जिला अस्पताल के दवा वितरण केंद्र पर एक फार्मासिस्ट को करीब दो हजार लोगों को दवा देनी पड़ती है।
-राजेश कुमार
दवा देते वक्त मरीज को डोज-आहार की जानकारी देनी होती है। वर्कलोड के चलते यह नहीं हो पाता।
-प्रदीप पाठक
एक फार्मासिस्ट को एक दिन में दो बार ड्यूटी करनी पड़ती है मगर ना अवकाश और न ही कोई अतिरिक्त भुगतान मिलता है।
-विनोद सिंह
18 घंटे ड्यूटी में यदि फार्मासिस्ट लघुशंका करने चला गया और तभी कोई अधिकारी आ गया तो कार्रवाई हो जाती है।
-शैलेंद्र पांडेय
जिला अस्पताल की इमरजेंसी में एक फार्मासिस्ट रोज करीब दो सौ मरीज अटेंड करता है। मानक के अनुसार तैनाती की जाय।
-सतीशचंद्र वर्मा
महिला अस्पताल में फार्मासिस्ट होने पर भी सर्जिकल स्टोर का काम बड़े बाबू से लिया जाता है, जो कानूनन गलत है।
-अशोक सिंह
फार्मासिस्टों को सार्वजनिक अवकाश नहीं मिलता। इससे उनका हर तरह का नुकसान होता है।
-मलय पांडेय
चिकित्सक के अनुपस्थित रहने पर फार्मासिस्ट ड्यूटी करता है। एवज में महज 75 रुपये प्रभार भत्ता मिलता है।
-सर्वेश श्रीवास्तव
राज्य के फार्मासिस्टों को 10 गुना अधिक काम करना पड़ता है। केंद्र के अनुसार ड्यूटी लगे या अतिरिक्त भुगतान हो।
-शैलेश शर्मा
ज्यादातर पीएचसी पर न शौचालय है, न पानी की व्यवस्था। इससे महिलाओं को काफी दिक्कत होती है।
-शिल्पी
फार्मेसी एक्ट के विपरीत अप्रशिक्षित आशा बहू, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, सीएचओ से दवा वितरण कराया जा रहा है।
-बसंत पांडेय
ऑनलाइन गोपनीय प्रवृष्टि नहीं भेजा गया है। इससे फार्मासिस्टों की पदोन्नित नहीं हो पा रही है।
-देवनाथ वर्मा
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