बोले बलिया : बढ़े मानदेय और हों अतिरिक्त विभागीय खर्च के इंतजाम
Balia News - मनरेगा के रोजगार सेवक पिछले 17 वर्षों से 10 हजार मासिक मानदेय पर काम कर रहे हैं, लेकिन नियमित भुगतान नहीं होता। वे 24 हजार मासिक मानदेय की मांग कर रहे हैं ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। कई रोजगार...
मनरेगा को धरातल पर उतारने की अहम ‘सीढ़ी रोजगार सेवक पिछले 17 वर्षों से 10 हजार मासिक मानदेय पर काम कर रहे हैं। इसमें भी ईपीएफ कटौती के बाद कुल 7788 रुपये हाथ में आते हैं। उसका भी नियमित भुगतान नहीं होता। ऑनलाइन हाजिरी आदि काम अपने मोबाइल और अपनी जेब से करना होता है। मृत रोजगार सेवकों के आश्रितों को नौकरी देने की मांग वर्षों से लम्बित है। वे चाहते हैं कि कम से कम 24 हजार मासिक मानदेय मिले, ताकि अपने परिवार का भरण-पोषण ठीक से कर सकें। कम्पनी बाग (चंद्रशेखर उद्यान) में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में रोजगार सेवकों ने अपनी बातें रखीं। उप्र रोजगार सेवक संघ के जिलाध्यक्ष जमाल अख्तर ने बताया कि वर्ष 2007-08 में मनरेगा योजना को धरातल पर उतारने के लिए रोजगार सेवकों की नियुक्ति शुरू हुई। वर्ष 2008-09 तक इसे मूर्त रूप दिया गया। जिले की सभी ग्राम पंचायतों में दो हजार रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर हमारी तैनाती हुई। वर्तमान में 640 रोजगार सेवक कार्यरत हैं जबकि ग्राम पंचायतों की संख्या 940 हैं। ईपीएफ कटौती के बाद महीने के 7788 रुपये हाथ में आते हैं। इतने मानदेय में परिवार का खर्च और बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम मुश्किल होता है। बताया कि ईपीएफ कटौती केवल रोजगार सेवक के मानदेय से की जाती है। 12 फीसदी नियोक्ता अंश तथा 13 फीसदी राज्य सरकार का अंश इसमें जमा नहीं होता है। इसके चलते हमें इस कटौती का लाभ नहीं मिल रहा। राज्य कर्मचारी का दर्जा देने की मांग वर्षों से है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।
आशुतोष पाठक ने कहा कि बढ़ती महंगाई के हिसाब से मानदेय कम तो है ही, उसका भुगतान भी नियमित नहीं होता। इस कारण रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए उधार ही सहारा है। रोजगार सेवक गंवई राजनीति के भी शिकार होते हैं। चुनावी रंजिश के चलते ग्राम प्रधान हमें हटाने की जुगत भी करते हैं। मनरेगा में मजदूरों की हाजिरी के लिए एनएमएमएस ऐप के अलावा भुवन ऐप, फेमिली आईडी, जियो पावर्टी आदि कार्य ऑनलाइन करने होते हैं। इसके लिए विभाग ने मोबाइल तो दिया नहीं, इंटरनेट आदि का खर्च भी जेब से ही जाता है। ग्राम सचिवालयों में रोजगार सेवकों के बैठने का इंतजाम नहीं है। इससे पत्रावलियों को तैयार करने में दिक्कत होती है। बताया कि मनरेगा कार्यों में तीन फीसदी कन्टीजेन्सी की कटौती होती है लेकिन हमें स्टेशनरी नहीं मिलती। मजदूरों की पत्रावली अपने खर्चे से तैयार करनी पड़ती है। एक पत्रावली पर औसत 200 रुपये खर्च हो जाते हैं।
मृत रोजगार सेवकों के परिवार उपेक्षित
निगमेंद्र नाथ पांडेय ने बताया कि कोरोना काल में दो रोजगार सेवकों की मौत हो गई लेकिन उनके आश्रितों को अब तक अनुकंपा का लाभ नहीं मिला है। सात अन्य रोजगार सेवकों का भी निधन हो चुका है। उनके आश्रित भी सहायता के लिए टकटकी लगाए हुए हैं। ये परिवार आर्थिक परेशानी झेलने को विवश हैं।
70 फीसदी गांवों में नहीं मिली लॉगिन आईडी
अनुपम तिवारी ने बताया कि रोजगार सेवकों को ग्राम पंचायत में कार्य के लिए लॉगिन आईडी नहीं दी गई है। 70 फीसदी गांवों में सचिव ही इसका प्रयोग करते हैं। मस्टररोल भी अधिकांश ब्लॉकों में सचिव ही जारी करते हैं।
मेठ से भी कराते हैं काम
आशुतोष ने बताया कि मनरेगा के तहत मौके पर मजदूरों से कार्य कराने और हाजिरी का कार्य रोजगार सेवकों से कराने का प्रावधान है। जबकि कई ब्लॉकों में यह कार्य मेठ से कराया जाता है। नियम है कि 20 से अधिक मजदूरों पर ही मेठ रहेंगे और वे केवल मजदूरों की मॉनीटरिंग करेंगे।
झेलनी होती है झल्लाहट, मजदूरी में भी अंतर
जमाल अख्तर ने बताया कि मनरेगा के मजदूरों को महीनों भुगतान नहीं होता। उनकी झल्लाहट भी हमें झेलनी पड़ती है। ग्राम पंचायतों में जहां 15वें वित्त से होने वाले कार्यों में मजदूरों का भुगतान 350 रुपये प्रतिदिन होता है, वहीं मनरेगा मजदूरों को 237 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से होता है। इसके चलते मजदूरों से काम कराना काफी मुश्किल होता है।
समान कार्य-समान वेतन हो लागू
आनंद श्रीवास्तव ने कहा कि समान कार्य के बदले समान वेतन मिलने के साथ राज्य कर्मचारी का दर्जा, मेडिकल बीमा व यात्रा भत्ता आदि की मांग लम्बे समय से हम लोग कर रहे हैं। पंचायत स्तर पर मनरेगा के कार्यों का संचालन करने की जिम्मेदारी है, लेकिन कई ग्राम पंचायतों में मनरेगा का कार्य प्रधान और सचिव देख रहे हैं। इसके चलते अक्सर टकराव की स्थिति बन जाती है। प्रधान और सचिव मनमाने काम पर हस्ताक्षर का दबाव भी बनाते हैं। ईओएल सर्वे का नहीं मिला भुगतान : मेहताब आलम ने बताया कि आए दिन रोजगार सेवकों से मनरेगा के अलावा अन्य कार्य तो कराए जाते हैं लेकिन उसका कोई भुगतान नहीं मिलता। रोजगार सेवकों से इज ऑफ लिविंग सर्वे कराया गया। यह कार्य ईओएल ऐप से करना पड़ा लेकिन उसका भुगतान नहीं मिला।
एक से अधिक गांवों में काम का भुगतान नहीं
आशुतोष पाठक ने बताया कि तैनाती के बाद कई ग्राम पंचायतों के क्षेत्रफल में अंतर आ चुका है। कई ग्राम सभाओं का बंटवारा भी हो गया है। इसके चलते रोजगार सेवकों को एक से अधिक ग्राम पंचायतों में काम कराना पड़ता है। इसके अलावा ग्राम पंचायतों के सापेक्ष रोजगार सेवकों की कमी के चलते अन्य गांवों से भी हमें संबद्ध कर दिया जाता है। आने-जाने और अतिरिक्त कार्य के एवज में कोई भुगतान नहीं होता। इससे रोजगार सेवकों पर आर्थिक दबाव बढ़ जाता है।
खेत मालिक और श्रमिक करते हैं विवाद
आशुतोष कुमार पाठक ने बताया कि पंचायत में मनरेगा के तहत तालाब का सुंदरीकरण, खेतों पर जाने वाले चकरोड पर मिट्टी कार्य रोजगार सेवक करते हैं। चकरोड पर कार्य के वक्त अक्सर खेत स्वामी विवाद करने लगते हैं। तब रोजगार सेवक अपने आपको असुक्षिस महसूस करते हैं। सिस्टम में कमी के चलते जब मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी उनके बैंक खाते में देर से पहुंचती है तो सभी श्रमिक रोजगार सेवक पर ही आरोप लगाने लगते हैं।
सम्बद्धता के मामले में सौतेला व्यवहार
अनुपम तिवारी और आनंद श्रीवास्तव ने बताया कि पड़ोस की पंचायत में तैनात रोजगार सेवक को अटैच कर कार्य करने का अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन हम लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। जहां रोजगार सेवक नहीं हैं, वहां पंचायत सहायक को कार्य करने का अधिकार दिया जा रहा है जबकि जहां पंचायत सहायक नहीं हैं, वहां रोजगार सेवकों को कार्य करने का अधिकार नहीं दिया जाता।
सुझाव :
रोजगार सेवकों के मानदेय में बढ़ोतरी होनी चाहिए। इससे परिवार का भरण पोषण आसान होगा।
मानदेय हर महीने मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे रोजगार सेवकों को आर्थिक परेशानी से राहत मिलेगी।
ईपीएफ कटौती में नियोक्ता और राज्य सरकार का अंश भी यूएन खाते में जमा होना चाहिए। इससे उन्हें आर्थिक लाभ होगा।
मृत रोजगार सेवकों के आश्रितों को संविदा पर तैनाती देने की प्रक्रिया शुरू हो। इससे उन्हें राहत मिलेगी।
मोबाइल और इंटरनेट खर्च का इंतजाम हो। इससे रोजगार सेवकों को आर्थिक नुकसान नहीं होगा।
समस्याएं :
रोजगार सेवकों को काफी कम मानदेय मिलता है। इससे परिवार का भरण पोषण मुश्किल होता है।
हर माह मानदेय न मिलने से दैनिक खर्च चलाना मुश्किल होता है। कर्ज लेने की नौबत आ जाती है।
ईपीएफ कटौती में नियोक्ता और राज्य सरकार का अंश जमा नहीं होता। इससे नुकसान हो रहा है।
जिन रोजगार सेवकों की मौत हो गई है, उनके आश्रितों को अनुकंपा का लाभ नहीं मिल रहा। इसके चलते परिवार परेशान हैं।
सभी कार्य ऑनलाइन करते हैं लेकिन इंटरनेट का खर्च भी नहीं मिलता। इससे हर महीने आर्थिक नुकसान होता है।
हमारी भी सुनें
रोजगार सेवकों के मानदेय का नियमित भुगतान नहीं होता। छह माह पर मिलने से आर्थिक परेशानी होती है।
-मो. बशीर
कोरोना काल में मृत दो रोजगार सेवकों के परिवार को आज तक कोई सहायता नहीं मिली है।
-नरसिंह राम
रोजगार सेवकों के 10 हजार रुपये मानदेय से ही 25 फीसदी ईपीएफ कटौती होती है।
-अनुपम तिवारी
मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि रोजगार सेवकों के जाब चार्ट में अन्य काम जोड़े जाएंगे। इसे अब तक लागू नहीं किया गया।
-आनंद श्रीवास्तव
10 हजार के मानदेय में गुजारा नहीं होता। उसमें वृद्धि के साथ समय से भुगतान होना चाहिए।
-महताब आलम
मनरेगा कार्यों की फोटो कॉपी, स्टेशनरी और इंटरनेट रिचार्ज का खर्च खुद वहन करना पड़ता है।
-निगमेंद्र नाथ पांडेय
करीब 70 फीसदी रोजगार सेवकों को आईडी और पासवर्ड नहीं मिला है।
-अभिषेक पांडेय
प्रत्येक माह ब्लॉक पर उच्चाधिकारी की मौजूदगी में बैठक हो ताकि समस्याएं दूर हो सकें।
-धर्मराज सिंह
वर्ष 2015 से ईपीएफ की कटौती हो रही है लेकिन यूएएन खाते में अब तक ट्रांसफर नहीं हुई है।
-आशुतोष पाठक
रोजगार सेवकों को जो मानदेय मिलता है, उससे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल है।
-गोविंद गुप्ता
14वें-15वें वित्त से काम पर 350 रुपये मिलते हैं। मनरेगा में भी वही मजदूरी मिले।
-विवेक सिंह
मनरेगा मजदूरों को समय से मजदूरी नहीं मिलती। उनकी झल्लाहट हमें झेलनी पड़ती है।
-जमाल अख्तर
सर्वर डाउन होने पर मजदूर की हाजिरी नहीं लग पाती है। उन्हें मजदूरी देना संभव नहीं हो पाता।
-यशवीर सिंह
कनवर्जन मनी राज्यवित्त, मजदूरी 14 एवं 15वें वित्त से देने का शासनादेश है लेकिन यहां पालन नहीं होता।
-मनोज कुमार
बोले जिम्मेदार
रोजगार सेवकों के मानदेय का भुगतान मनरेगा कार्यों के मिले धन के सापेक्ष होता है। कभी शासन से धन आवंटन में विलंब होने पर ही दिक्कत होती है। उनकी समस्याओं का समाधान ब्लॉक स्तर से कराया जाता है।
-डीएन पाण्डेय, उपायुक्त-मनरेगा
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