बेटियों को केले के रेशे से बना सेनेटरी पैड देगा एम्स, 140 से अधिक बार होगा इस्तेमाल
- यह पैड साधारण पैड की तुलना में ज्यादा असरदार और कारगार होगा। इससे संक्रमण का खतरा न के बराबर है। बेटियां 1 पैड का इस्तेमाल 140 बार से अधिक कर सकेंगी। मतलब एक पैड कम से 3 से 5 साल चलेगा। श्रीमाता अमृतानंदमयी देवी मठ केरल में केरल के रेशे से बने पैड का निर्माण कर रही है।
Sanitary pads made from banana fiber: एम्स गोरखपुर बेटियों को केले के रेशे से बने सेनेटरी पैड उपलब्ध कराएगा। यह पैड इको फ्रेंडली होने के साथ पर्यावरण को भी स्वच्छ रखेगा। बेटियों लिए यह पैड साधारण पैड की तुलना में ज्यादा असरदार और कारगार होगा। इससे संक्रमण का खतरा न के बराबर है। बेटियां एक पैड का इस्तेमाल 140 बार से अधिक कर सकेंगी। मतलब एक पैड कम से तीन से पांच साल चलेगा।
एम्स के पीएमआर विभाग के एसोसिएट प्रो. डॉ. अमित रंजन ने बताया कि आम तौर पर देखा गया है कि महिलाएं या युवतियां सिंथेटिक पैड का इस्तेमाल करती है, जिससे संक्रमण का खतरा भी रहता है। सिंथेटिक पैड के इस्तेमाल के बाद फेंक देने पर यह कई सालों तक गलता नहीं है। अगर इसको जलाते हैं तो टॉक्सिस नाम की जहरीली गैस निकलती है, जो पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक मानी जाती है। इसको ध्यान में रखते हुए श्रीमाता अमृतानंदमयी देवी मठ केरल में केरल के रेशे से बने पैड का निर्माण कर रही है।
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इस पैड को मठ नो प्रॉफिट नो लॉस में स्थानीय महिलाओं को रोजगार देकर बनवा रही है। इस सोख्यम पैड भी कहा जाता है। संस्था के साथ जुड़ी डॉ. प्रियंका रंजन ने बताया कि बताया कि उद्देश्य है कि एम्स के साथ मिलकर मठ जल्द ही जिले में एक गांव को चुना जाएगा। उस गांव की महिलाओं को पैड बनाने की तकनीकी ट्रेनिंग दी जाएगी। इससे दो काम होंगे। पहला महिलाएं और बेटियां जागरूक होंगी, दूसरा उन्हें गांव में ही स्वरोजगार मिल सकेगा। इसके लिए एम्स के कार्यकारी निदेशक प्रो. डॉ. अजय सिंह से वार्ता की गई है। एम्स में जल्द ही इस पैड को महिलाओं और बेटियों को भी उपलब्ध कराया जाएगा।
आसानी से हो जाता है साफ
डॉ. अमित ने बताया कि केरल में जहां पर यह पैड बनाए जाते हैं उसका दौरा भी किया गया। वहां पर उसके इस्तेमाल के तरीके और सफाई की जानकारी भी दी गई। इस्तेमाल करने के बाद ठंडे पानी में डाल दें तो महावारी का खून आसानी से निकल जाता है। इसके बाद उसे किसी भी साबुन या वाशिंग पाउडर से धुल दिया जाए। अगर हल्का आयरन कर देंगे तो ज्यादा अच्छा है। बताया कि महिलाओं के लिए अलग और टीन एंजर्स के लिए अलग-अलग पैड है।
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केले के रेशे में होता है सबसे अधिक सैल्यूलोज
डॉ. अमित रंजन ने बताया कि किसी भी सेनेटरी पैड को बनाने के लिए सेल्यूलोज फाइबर का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए पेड़ काटने पड़ते हैं। वहीं, दूसरी तरफ केले के तने में सबसे अधिक सेल्यूलोज होता है। इसके रेशे से पैड बनाने के लिए पेड़ काटने की जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि, किसान दो बार में केले के पेड़ से फल निकालकर उसे खुद ही काट देता है। इसकी तुलना भी पेड़ों में नहीं होती है। ऐसे में इसके रेशे पैड बनाने के लिए बेहद उपयोगी पाए गए। इस पर तीन साल तक रिसर्च भी चला। रिसर्च में यह बात सामने आई कि साधारण पैड की तुलना में केले के रेशे से बने पैड बेटियों के लिए अधिक सुरक्षित हैं और संक्रमण का खतरा बिल्कुल नहीं है।