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केजरीवाल सरकार ने क्या-क्या गलत किया, CAG ने बताई शराब घोटाले की पूरी कहानी

दिल्ली सरकार ने विधानसभा में शराब घोटाले पर सीएजी रिपोर्ट को विधानसभा में पेश कर दिया है। सीएजी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान शराब नीति में कई तरह की गड़बडियां हुईं।

Sudhir Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 25 Feb 2025 01:53 PM
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केजरीवाल सरकार ने क्या-क्या गलत किया, CAG ने बताई शराब घोटाले की पूरी कहानी

दिल्ली सरकार ने विधानसभा में शराब घोटाले पर सीएजी रिपोर्ट को विधानसभा में पेश कर दिया है। सीएजी की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान शराब नीति में कई तरह की गड़बडियां हुईं जिससे सरकारी खजाने को 2002.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस मामले की सीबीआई और ईडी पहले से जांच कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आबकारी मंत्री रहे मनीष सिसोदिया समेत आम आदमी पार्टी के कई नेता आरोपी बनाए गए हैं। केजरीवाल और सिसोदिया को महीनों जेल में रहना पड़ा और अभी वे जमानत पर हैं। सीएजी रिपोर्ट से उनकी मुश्किलें फिर बढ़ सकती हैं।

1. राजस्व को 2,002.68 करोड़ रुपए का भारी नुकसान:

सीएजी की 166 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि आप सरकार के दौरान लागू की गई शराब नीति में विभिन्न कारणों से सरकारी खजाने को 2000.68 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। जैसे: गैर-अनुकूल क्षेत्रों में खुदरा दुकानों को न खोलने से 941.53 करोड़ रुपए का घटा हुआ। सरेंडर किए गए लाइसेंसों को फिर से टेंडर न करने से 890 करोड़ और COVID-19 का हवाला देकर आबकारी विभाग की सलाह के बावजूद जोनल लाइसेंस धारकों को शुल्क छूट देने से 144 करोड़ का नुकसान हुआ। इसके अलावा जोनल लाइसेंस धारकों से उचित सिक्यॉरिटी डिपॉजिट नहीं लेने से 27 करोड़ का घाटा सरकारी खजाने को हुआ।

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2. लाइसेंस उल्लंघन:

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंबर 2021 से सितंबर 2022 के दौरान दिल्ली आबकारी नियम 2010 के नियम 35 को लागू करने में सरकार असफल रही जिससे ऐसे थोक विक्रेताओं को लाइसेंस दिया गया, जो निर्माण में रुचि रखते थे या खुदरा विक्रेताओं से संबंध रखते थे। इस वजह से पूरी सप्लाई चेन प्रभावित हुई और निर्माण, थोक एवं खुदरा स्तरों पर साझा स्वामित्व (common beneficial ownership) बन गया।

3. थोक विक्रेताओं का लाभ मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% करना:

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने थोक विक्रेताओं का प्रॉफिट मार्जिक 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया। सरकार ने यह कहकर इस फैसले को उचित ठहराया कि गुणवत्ता जांच प्रणाली के लिए गोदामों में सरकारी मंजूरी प्राप्त लैब्स की स्थापानी करनी होगी। हालांकि, कोई भी लैब स्थापित नहीं की गई इससे थोक लाइसेंसधारियों का लाभ बढ़ा लेकिन सरकारी राजस्व में गिरावट आई।

4. कोई जांच नहीं, अग्रिम लागत की अनदेखी:

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने खुदरा शराब लाइसेंस बिना किसी उचित जांच के जारी कर दिए। इनमें आवेदकों की सॉल्वेंसी (solvency), वित्तीय विवरण और आपराधिक रिकॉर्ड की जांच नहीं की गई। एक शराब जोन को चलाने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक का प्रारंभिक निवेश आवश्यक था, फिर भी कोई वित्तीय पात्रता मानदंड निर्धारित नहीं किया गया। नतीजतन, वित्तीय रूप से कमजोर कंपनियों को लाइसेंस दे दिए गए, जिनमें से कई पिछले तीन वर्षों में न्यूनतम या शून्य आय दर्ज कर चुकी थीं। इन उपायों से यह संकेत मिलता है कि प्रॉक्सी स्वामित्व (proxy ownership) हो सकता है, जिससे राजनीतिक पक्षपात (political favouritism) और गुप्त सौदों (backdoor deals) की आशंका बढ़ जाती है।

5. विशेषज्ञों की सिफारिशों की अनदेखी:

सीएजी ने कहा है कि आप सरकार ने अपनी ही विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) की 2021-22 की आबकारी नीति से जुड़ी सिफारिशों को बिना किसी औपचारिक स्पष्टीकरण के खारिज कर दिया।

6. पारदर्शिता की कमी, कमजोर निगरानी, और शराब कार्टेल का निर्माण:

रिपोर्ट में कहा गया है कि नई नीति के तहत एक ही आवेदक को 54 शराब वेंड संचालित करने की अनुमति दी गई, जबकि पहले यह सीमा केवल 2 थी। इससे शराब बाजार में एकाधिकार (monopolies) और गठजोड़ (cartelization) को बढ़ावा मिला। पहले, सरकारी निगमों द्वारा 377 खुदरा वेंड संचालित किए जाते थे और 262 निजी व्यक्तियों द्वारा। नई नीति में 32 खुदरा ज़ोन बनाए गए जिनमें 849 वेंड थे, लेकिन लाइसेंस केवल 22 निजी कंपनियों को दिए गए। इससे पारदर्शिता और निष्पक्षता में कमी आई।

7. एकाधिकार को बढ़ावा और ब्रांड धकेलने की रणनीति:

आप सरकार की नीति ने निर्माताओं को केवल एक थोक विक्रेता के साथ अनुबंध करने के लिए मजबूर किया, जिससे कुछ ही थोक विक्रेताओं ने पूरे सप्लाई चेन पर कब्जा कर लिया। दिल्ली में पंजीकृत 367 IMFL (Indian Made Foreign Liquor) ब्रांडों में से केवल 25 ब्रांडों ने कुल शराब बिक्री का लगभग 70% हिस्सा लिया।

केवल तीन थोक विक्रेता – Indospirit, Mahadev Liquors, और Brindco – ने 71% से अधिक आपूर्ति पर नियंत्रण रखा। ये तीनों विक्रेता 192 ब्रांडों के अनन्य आपूर्ति अधिकार (exclusive supply rights) भी रखते थे, जिससे यह तय होता था कि कौन सा ब्रांड बाजार में सफल होगा और कौन असफल। इससे उपभोक्ताओं के पास सीमित विकल्प रह गए और शराब की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाई जा सकती थीं। सरकार को संभावित राजस्व नुकसान भी हुआ क्योंकि प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया गया।

8. कैबिनेट प्रक्रियाओं का उल्लंघन:

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई प्रमुख छूट और रियायतें बिना कैबिनेट की स्वीकृति या उपराज्यपाल से सलाह-मशविरा लिए दी गईं, जो कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन है।

9. आवासीय और मिश्रित लैंड यूज वाले इलाके में अवैध शराब वेंड खोलना:

सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि आप सरकार के आबकारी विभाग ने शराब वेंडों को आवासीय या मिश्रित लैंड यूज वाले इलाकों में बिना MCD या DDA की आवश्यक अनुमति के खोलने की मंजूरी दी। निरीक्षण टीमों ने ज़ोन 23 के 4 वेंडों को गलत तरीके से व्यावसायिक क्षेत्र में दिखाया।

कई मामलों में, आवेदकों ने स्वयं स्वीकार किया कि ये वेंड आवासीय/मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्र में स्थित थे, फिर भी लाइसेंस जारी किए गए। इन उल्लंघनों के कारण, 2022 की शुरुआत में MCD ने इन चार अवैध शराब वेंडों को सील कर दिया। इससे साबित होता है कि नियमानुसार प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।

10. शराब मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता की कमी:

आबकारी विभाग ने L1 लाइसेंसधारियों को महंगी शराब की Ex-Distillery Price (EDP) स्वयं तय करने की अनुमति दे दी, जिससे मूल्य में हेरफेर संभव हुआ।

11. परीक्षण नियमों का उल्लंघन, जनता को खतरे में डाला गया

सीएजी ने यह भी कहा है कि गुणवत्ता की सही जांच नहीं करके जनता की जान को खतरे में डाला गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि आबकारी विभाग ने गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट के बिना या BIS (ब्यूरो ऑफ इंडिया स्टैंडर्ड) मानकों का अनुपालन न करने पर भी लाइसेंस जारी किए। कुछ परीक्षण रिपोर्टें ऐसी प्रयोगशालाओं से आई थीं, जो NABL द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थीं। 51% विदेशी शराब परीक्षण मामलों में रिपोर्टें या तो 1 वर्ष से पुरानी थीं, गायब थीं, या उनमें तारीख नहीं थी। भारी धातु, मिथाइल अल्कोहल आदि जैसे हानिकारक पदार्थों की रिपोर्टें अनुपस्थित थीं या अनदेखी की गईं, जिससे गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा हुईं।

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12. अवैध शराब तस्करी पर कमजोर कार्रवाई:

आबकारी खुफिया ब्यूरो (EIB) ने देसी शराब की तस्करी पर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया, जबकि ज़ब्त किए गए स्टॉक का 65% हिस्सा देसी शराब का था।

13. कमजोर डेटा प्रबंधन और अवैध शराब व्यापार को बढ़ावा:

आबकारी विभाग ने अधूरे और बिखरे हुए रिकॉर्ड रखे, जिससे राजस्व हानि और तस्करी के पैटर्न को ट्रैक करना असंभव हो गया।

14. आबकारी नीति उल्लंघनकर्ताओं पर कोई कार्रवाई नहीं:

सीएजी ने कहा है कि आप सरकार शराब लाइसेंसधारियों द्वारा कानून तोड़ने पर सजा देने में विफल रही।

15. सुरक्षा लेबल परियोजना को छोड़ा गया, पुरानी विधियों का उपयोग:

Excise Adhesive Label Project को लागू नहीं किया गया, जिससे आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) धोखाधड़ी के प्रति असुरक्षित हो गई।

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