Hindi Newsदेश न्यूज़Rajya Sabha Chairman Jagdeep Dhankhar on move to impeach Justice Shekhar Yadav Jurisdiction

संसद और राष्ट्रपति के पास है ये अधिकार, जस्टिस शेखर यादव को हटाने की मांग पर धनखड़

  • सांसदों का आरोप है कि न्यायमूर्ति शेखर यादव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में आयोजित विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में संविधान विरोधी बयान दिए।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 13 Feb 2025 04:09 PM
share Share
Follow Us on
संसद और राष्ट्रपति के पास है ये अधिकार, जस्टिस शेखर यादव को हटाने की मांग पर धनखड़

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने की विपक्षी सांसदों की मांग पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विषय का संवैधानिक अधिकार विशेष रूप से राज्यसभा के सभापति और आगे चलकर संसद व राष्ट्रपति के पास निहित है।

धनखड़ ने राज्यसभा में कहा, “13 दिसंबर 2024 को मुझे एक अज्ञात तिथि वाला नोटिस प्राप्त हुआ, जिसमें राज्यसभा के 55 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं। इसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव को संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत पद से हटाने की मांग की गई है।” उन्होंने आगे कहा कि यह विषय केवल राज्यसभा के सभापति के अधिकार क्षेत्र में आता है और अंतिम निर्णय संसद और राष्ट्रपति द्वारा लिया जाता है। राज्यसभा अध्यक्ष ने निर्देश दिया कि इस विषय की जानकारी सुप्रीम कोर्ट के महासचिव के साथ शेयर की जाए।

क्या है पूरा मामला?

13 दिसंबर 2024 को विपक्षी दलों के 55 राज्यसभा सांसदों ने न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। सांसदों का आरोप है कि न्यायमूर्ति शेखर यादव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में आयोजित विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में संविधान विरोधी बयान दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति शेखर यादव की टिप्पणियां "नफरती भाषण" और "सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने" के समान हैं।

इस प्रस्ताव को स्वतंत्र सांसद कपिल सिब्बल द्वारा पेश किया गया था। इस पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस के पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, विवेक तन्खा और रणदीप सुरजेवाला; आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और राघव चड्ढा; तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले और सागरिका घोष; राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा; समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान; सीपीआई (एम) के जॉन ब्रिट्टास और सीपीआई के सन्तोष कुमार शामिल थे।

क्या हैं आरोप?

सांसदों ने अपने याचिका में तीन प्रमुख आरोप लगाए:

  • न्यायमूर्ति शेखर यादव ने "नफरती भाषण" दिया और "सांप्रदायिक विद्वेष को भड़काने" का प्रयास किया।
  • उन्होंने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया और उनके प्रति पूर्वाग्रह दर्शाया।
  • उन्होंने सार्वजनिक मंच पर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर अपने विचार व्यक्त कर न्यायिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया।

सुप्रीम कोर्ट ने भी मांगा स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने भी हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति शेखर यादव से स्पष्टीकरण मांगा था। कॉलेजियम की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना कर रहे हैं। न्यायमूर्ति शेखर यादव ने अपने जवाब में कहा कि वह अपने बयान पर कायम हैं और उनका मानना है कि उन्होंने किसी भी न्यायिक आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया है।

ये भी पढ़ें:जस्टिस शेखर यादव बंद कमरे में मांग रहे थे माफी, बाहर निकलकर पलटे: SC जज का दावा
ये भी पढ़ें:घातक हैं कठमुल्ले; अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस शेखर यादव, CJI को भेजा जवाब

क्या कहा था न्यायमूर्ति शेखर यादव ने?

दिसंबर 2024 में विश्व हिंदू परिषद की विधि प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति शेखर यादव ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हुए कहा था, “आपको यह भ्रम है कि यदि एक कानून (UCC) लागू किया गया, तो यह आपकी शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा… लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं… चाहे वह आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू लॉ हो, आपकी कुरान हो या हमारी गीता हो… हमने अपनी बुराइयों को दूर किया है… हमने छुआछूत, सती प्रथा, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों को समाप्त कर दिया… फिर आप बहुविवाह को क्यों नहीं छोड़ रहे… कि पहली पत्नी होते हुए भी तीन और शादियां कर सकते हैं… बिना उसकी सहमति के… यह स्वीकार्य नहीं है।”

जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विवादित बयान देते हुए कहा था कि देश की व्यवस्था बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगी। उनका कहना था कि परिवार भी बहुमत के हिसाब से चलता है तो देश इस तरह चलाने में क्या गलत है। इसके अलावा उन्होंने मुस्लिमों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी और 'कठमुल्ला' शब्द का प्रयोग किया था। इसे लेकर विवाद छिड़ गया था।

अब राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ द्वारा मामले पर विचार करने के बाद ही आगे की प्रक्रिया स्पष्ट होगी। चूंकि न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया जटिल होती है और इसमें संसद व राष्ट्रपति की भूमिका होती है, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला किस दिशा में आगे बढ़ता है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें