अधर में लटकी कर्नाटक की जाति जनगणना, अभी जारी नहीं होंगे नतीजे; 2 मई को अगली बैठक
- कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच.के. पाटिल ने पत्रकारों को बताया कि मंत्रिमंडल ने सर्वेक्षण के तकनीकी विवरण और अतिरिक्त जानकारी की मांग की है।

कर्नाटक सरकार ने जाति जनगणना (सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण) के नतीजों को स्वीकार करने पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। गुरुवार को आयोजित विशेष मंत्रिमंडल बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। अब इस मामले पर अगली चर्चा 2 मई को होने वाली मंत्रिमंडल बैठक में होगी।
अतिरिक्त जानकारी की मांग की है
कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच.के. पाटिल ने पत्रकारों को बताया कि मंत्रिमंडल ने सर्वेक्षण के तकनीकी विवरण और अतिरिक्त जानकारी की मांग की है, जिसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा 2 मई की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। पाटिल ने कहा, "चर्चा अधूरी रही, लेकिन यह सौहार्दपूर्ण थी। हमने विभिन्न समुदायों की जनसंख्या, उनके पिछड़ापन और अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रमुख समुदायों की जनसंख्या के आंकड़ों को लेकर उठाए गए विवाद इस चर्चा का हिस्सा नहीं थे।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में मंत्रियों से सर्वेक्षण पर अपने विचार लिखित रूप में प्रस्तुत करने को कहा गया है, ताकि अगली बैठक में इन पर विचार किया जा सके। सूत्रों के अनुसार, मंत्रियों के बीच खुले तौर पर चर्चा के लिए तैयार न होने के कारण सिद्धारमैया ने सभी की राय सुनने और सर्वेक्षण के सभी समुदायों के लिए लाभकारी होने की बात पर जोर दिया।
वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदायों ने किया विरोध
गौरतलब है कि वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदायों ने इस सर्वे को "अवैज्ञानिक" बताते हुए इसे खारिज करने और एक नया सर्वेक्षण कराने की मांग की है। पाटिल ने यह भी स्पष्ट किया कि अगली कैबिनेट बैठक 24 अप्रैल को एम एम हिल्स में होगी, लेकिन उस बैठक में सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा नहीं की जाएगी। उस बैठक में पुराने मैसूर क्षेत्र से संबंधित मुद्दे लिए जाएंगे।
सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट मंत्रियों से कहा गया है कि वे सर्वेक्षण को लेकर अपनी राय लिखित रूप में 2 मई की बैठक में प्रस्तुत करें। इसके साथ ही, सरकार ने सर्वेक्षण से जुड़ी जानकारियों को जनता के सामने लाने का निर्णय लिया है ताकि फैल रही भ्रामक सूचनाओं का मुकाबला किया जा सके। साथ ही यह भी बताया गया कि सरकार उन आरोपों का खंडन करेगी जिसमें कहा गया था कि डोर-टू-डोर सर्वेक्षण नहीं किया गया। बता दें कि हाल ही में जाति सर्वे की रिपोर्ट कैबिनेट के सामने पेश की गई थी।
1.38 करोड़ परिवारों के 5.98 करोड़ लोग शामिल
11 अप्रैल को बहुप्रतीक्षित सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट को कर्नाटक कैबिनेट के समक्ष पेश किया गया था। पिछड़ा वर्ग विकास मंत्री शिवराज तंगादागी के अनुसार, जाति जनगणना रिपोर्ट 50 खंडों में है। इसमें 1.38 करोड़ परिवारों के 5.98 करोड़ लोग शामिल हैं। तंगादागी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘इसमें 94.77 प्रतिशत लोग शामिल हैं। केवल 5.23 प्रतिशत लोग इसके दायरे से बाहर हैं।’’
उन्होंने कहा कि जाति जनगणना 1.6 लाख अधिकारियों की मदद से तैयार की गई थी, जिसमें 79 आईएएस अधिकारी, 777 वरिष्ठ स्तर के अधिकारी, 1,33,825 शिक्षक और कृषि एवं अन्य विभागों के 22,190 कर्मचारी शामिल थे। सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट पिछले साल फरवरी में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को सौंपी गई थी।
समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा भी इस सर्वेक्षण पर आपत्ति जताई गई है तथा सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर से भी इसके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। हालांकि, सभी वर्ग इसका विरोध नहीं कर रहे हैं। दलितों और ओबीसी का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता और संगठन इसके समर्थन में हैं और चाहते हैं कि सरकार सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक करे और इस पर आगे बढ़े।