मुस्लिम महिलाओं ने कितने केस दर्ज कराए? तीन तलाक पर CJI खन्ना ने केंद्र से मांगा हिसाब-किताब
CJI जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता केवल इस प्रथा के अपराधीकरण को चुनौती दे रहे हैं और इस प्रथा का बचाव नहीं कर रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 जनवरी) को केंद्र सरकार से मुस्लिम महिलाओं द्वारा पिछले छह साल में तीन तलाक के खिलाफ दर्ज कराए गए आपराधिक मामलों का हिसाब-किताब मांगा है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि 2019 में पारित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन कर कितने मुस्लिम पुरुषों ने अपनी बावियों को ‘तीन बार तलाक’ कह कर उनसे संबंध विच्छेद किया है? उनके खिलाफ देशभर में दर्ज प्राथमिकियों और आरोप पत्रों की संख्या के बारे में जानकारी दीजिए। अदालत ने हाई कोर्ट में तीन तलाक से जुड़े लंबित मामलों पर भी जानकारी देने को कहा है।
देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और अन्य पक्षों से याचिकाओं पर अपने लिखित अभ्यावेदन दाखिल करने को भी कहा है।पीठ ने अब इन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई 17 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में निर्धारित की है। कोझिकोड स्थित मुस्लिम संगठन ‘समस्त केरल जमीयत उल उलेमा’ इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता है।
पीठ ने कहा, ‘‘मामले में प्रतिवादी (केंद्र सरकार) मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा तीन और चार के तहत लंबित प्राथमिकियों और आरोप पत्रों की कुल संख्या की जानकारी दे। पक्षकार अपने तर्क के समर्थन में लिखित अभ्यावेदन भी दाखिल करें जो तीन पृष्ठों से अधिक नहीं हो।’’
पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता केवल इस प्रथा के अपराधीकरण को चुनौती दे रहे हैं और इस प्रथा का बचाव नहीं कर रहे हैं। सीजेआई खन्ना ने टिप्पणी की, "मुझे यकीन है कि यहां कोई भी वकील यह नहीं कह रहे कि तीन तलाक की प्रथा सही है, लेकिन वे यह कह रहे हैं कि क्या इसे अपराध बनाया जा सकता है, जबकि इस प्रथा पर प्रतिबंध है और एक बार में तीन बार तलाक बोलकर तलाक नहीं हो सकता है।"
2019 में पारित कानून के तहत, ‘तीन तलाक’ को अवैध और अमान्य घोषित किया गया है और ऐसा करने पर पुरुष को तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। बावजूद इसके तीन तलाक की कुप्रथा खत्म नहीं हुई है। बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने ‘तीन बार तलाक’ कह कर संबंध विच्छेद करने की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत को 22 अगस्त 2017 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। (एजेंसी इनपुट्स के साथ)