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Caste Census: देश में कब शुरू होगी जनगणना? जातियों की भी होनी है गिनती, डेडलाइन फाइनल

Caste census: इससे पहले मार्च 2025 में गृह मंत्रालय ने संसद की एक स्थायी समिति को बताया था कि जनगणना की अधिकांश तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और अब तकनीकी अपडेट का कार्य जारी है।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 1 May 2025 06:52 AM
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Caste Census: देश में कब शुरू होगी जनगणना? जातियों की भी होनी है गिनती, डेडलाइन फाइनल

Caste census: भारत में 2021 की बहुप्रतीक्षित जनगणना जल्द शुरू हो सकती है। सरकार इसकी पूरी प्रक्रिया को 2026 के अंत तक पूरा करने की उम्मीद कर रही है। हालांकि, अब तक इस संबंध में कोई औपचारिक समयसीमा या निर्धारित कार्यक्रम सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जनगणना शुरू होने में सबसे बड़ी अड़चन यह थी कि इसमें जाति आधारित जानकारी को शामिल किया जाए या नहीं। अब जब इस पर निर्णय लिया जा चुका है, तो प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है।

जनगणना में जाति आधारित आंकड़ों को शामिल करने का निर्णय लिया गया है। इसके कारण गृह सूची और मकान गणना चरण में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या 31 से बढ़कर 32 हो सकती है।

इससे पहले मार्च 2025 में गृह मंत्रालय ने संसद की एक स्थायी समिति को बताया था कि जनगणना की अधिकांश तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और अब तकनीकी अपडेट का कार्य जारी है। गृह मंत्रालय ने समिति को बताया, “जनगणना से संबंधित कई कार्य पूर्ण हो चुके हैं। जैसे ही जनगणना की प्रक्रिया शुरू होगी, आवश्यकतानुसार अतिरिक्त धन की मांग की जाएगी।”

2019 में केंद्र सरकार ने जनगणना 2021 के लिए 8,754.23 करोड़ और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने के लिए 3,941.35 करोड़ मंजूर किए थे। इसका कुल अनुमानित खर्च लगभग 12,000 करोड़ था।

गृह मंत्री अमित शाह ने भी कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि जनगणना की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। कोविड-19 महामारी के चलते जनगणना 2020-21 में नहीं हो सकी थी।

पहली डिजिटल जनगणना

जनगणना 2021 भारत की पहली पूर्णत: डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए एक मोबाइल ऐप और जनगणना पोर्टल तैयार किया जा चुका है, जिससे डेटा संग्रहण से लेकर निगरानी तक सभी कार्य डिजिटल रूप से संपन्न होंगे।

जनगणना भारत में जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आवास और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत है। यह आंकड़े नीतियों के निर्धारण, संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन और संसाधनों के वितरण में अहम भूमिका निभाते हैं। भारत में पहली संगठित जनगणना 1881 में हुई थी और तब से हर 10 साल में नियमित रूप से यह होती रही है।

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