Hindi Newsदेश न्यूज़Can not do half baked exercise Supreme Court Judge ask BJP Leader and Senior Advocate on his nine year old PIL

आपके कहने पर अधकच्चा आदेश दे दें? BJP नेता को SC जज ने क्यों दिया टका सा जवाब

जस्टिस मनमोहन ने कहा कि मिस्टर उपाध्याय, आपका लक्ष्य ऐसा है जिसे हमें एक देश के रूप में हासिल करना है लेकिन हम आपके कहने पर अधकच्चा आदेश तो जारी नहीं कर सकते। हमें अधूरी कवायद नहीं करनी चाहिए।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 10 Feb 2025 03:00 PM
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आपके कहने पर अधकच्चा आदेश दे दें? BJP नेता को SC जज ने क्यों दिया टका सा जवाब

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच में आज (सोमवार, 10 फरवरी) भाजपा नेता और वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 में दाखिल एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई हो रही थी। उपाध्याय ने अपनी याचिका में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को संसद, विधानसभा या अन्य विधायी निकायों का सदस्य बनने से प्रतिबंधित करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान उपाध्याय ने कहा कि वर्तमान एवं पूर्व संसद सदस्यों तथा विधानसभा सदस्यों के खिलाफ करीब 5,000 से ज्यादा मामले लंबित हैं। इसके साथ ही उन्होंने शीर्ष न्यायालय से आग्रह किया कि वह सांसदों के विरुद्ध मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए निर्देश जारी करे और हाई कोर्ट को भी MP/MLA कोर्ट की तरह एक अलग बेंच या कोर्ट बनाने का निर्देश जारी किया जाए।

वरिष्ठ वकील ने कहा कि सवाल यह है कि क्या दोषी करार दिया गया व्यक्ति किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का पदाधिकारी हो सकता है? उन्होंने कहा कि आज कानून यह है कि कोई व्यक्ति किसी की हत्या करके भी किसी राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का अध्यक्ष हो सकता है। यह विचारणीय मुद्दा है। इस पर जस्टिस मनमोहन ने कहा, "मिस्टर उपाध्याय, आपका लक्ष्य ऐसा है जिसे हमें एक देश के रूप में हासिल करना है लेकिन हम आपके कहने पर अधकच्चा आदेश तो जारी नहीं कर सकते। हमें अधूरी कवायद नहीं करनी चाहिए। अन्यथा लोग सोचेंगे कि उन्हें बेवकूफ बनाया जा रहा है।"

इस पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि मामले को दो सप्ताह बाद रखा जा सकता है। हंसारिया ने कहा कि उन्होंने भी राजनीति के अपराधीकरण के बारे में चिंताओं के साथ प्रासंगिक निर्णयों और अन्य दस्तावेजों का संकलन किया है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि केंद्र की तरफ से कोई प्रतिनिधि हैं या नहीं। कोर्ट ने ये भी कहा कि हम हर हितधारक की बात सुनने के लिए तैयार हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील को भी सुना।

हंसारिया द्वारा दायर नवीनतम हलफनामे में कहा गया है कि विधायकों का उनके खिलाफ मामलों की जांच और/या सुनवाई पर बहुत प्रभाव होता है और सुनवाई पूरी नहीं करने दी जाती है। हलफनामे के अनुसार, “यह कहा गया है कि इस न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिए गए आदेशों और उच्च न्यायालय की निगरानी के बावजूद सांसदों और विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं, जो हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक धब्बा हैं।” हलफनामे में यह भी कहा गया है, “बड़ी संख्या में मामलों का लंबित रहना, जिनमें से कुछ तो दशकों से लंबित हैं, यह दर्शाता है कि विधायकों का अपने विरुद्ध मामलों की जांच और/या सुनवाई पर बहुत अधिक प्रभाव है, तथा मुकदमे को पूरा नहीं होने दिया जाता है।”

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चुनाव अधिकार संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए हंसारिया ने कहा कि वर्तमान लोकसभा के 543 सदस्यों में से 251 के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 170 गंभीर आपराधिक मामले हैं (जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है)। मामलों की सुनवाई में देरी के विभिन्न कारणों को रेखांकित करते हुए हंसारिया ने कहा कि सांसदों/विधायकों के लिए विशेष अदालत नियमित अदालती काम करती हैं और कुछ राज्यों को छोड़कर, सांसदों/विधायकों के खिलाफ मुकदमा इन अदालतों के कई कार्यों में से एक है। (एजेंसी इनपुट्स के साथ)

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