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विवाहित महिला शादी के झूठे वादे पर रेप का नहीं लगा सकती आरोप, जबलपुर HC का अहम फैसला

मध्य प्रदेश में एक महिला ने युवक पर शादी का वादा करके रेप करने का आरोप लगाया। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 24 साल के युवक के खिलाफ रेप के आरोप में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया।

Sneha Baluni जबलपुर। हिन्दुस्तान टाइम्सSun, 23 Feb 2025 06:39 AM
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विवाहित महिला शादी के झूठे वादे पर रेप का नहीं लगा सकती आरोप, जबलपुर HC का अहम फैसला

मध्य प्रदेश में एक महिला ने युवक पर शादी का वादा करके रेप करने का आरोप लगाया। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 24 साल के युवक के खिलाफ रेप के आरोप में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता पहले से ही किसी अन्य व्यक्ति के साथ शादी के बंधन में बंधी है तो वह यह दावा नहीं कर सकती कि शादी का वादा करके शारीरिक संबंध के लिए उसकी सहमति ली गई थी।

आरोपी, जो खुद विवाहित है, ने पिछले साल महिला (शिकायतकर्ता) द्वारा उस पर रेप का आरोप लगाए जाने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला की शादी एक ड्राइवर से हुई थी और उसके दो बच्चे हैं। उसने आरोप लगाया कि आरोपी, जो उसका पड़ोसी है, ने अपनी पत्नी को तलाक देने के बाद उससे शादी करने का वादा किया और दोनों तीन महीने तक रिलेशनशिप में रहे। हालांकि, बाद में उसने कथित तौर पर यह कहते हुए उससे शादी करने से इनकार कर दिया कि वह अपनी पत्नी को तलाक देने की स्थिति में नहीं है।

जस्टिस मनिंदर एस भाटी की एकल पीठ ने कहा कि एफआईआर को पढ़ने से ऐसा कोई आरोप नहीं लगता कि आरोपी ने शादी के झूठे वादे की आड़ में शिकायतकर्ता पर संबंध बनाने के लिए दबाव डाला। अदालत ने कहा, 'इसके अलावा, अगर एफआईआर को ध्यान से पढ़ा जाए और सूक्ष्म जांच की जाए तो पता चलेगा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि वर्तमान आवेदक ने शादी के झूठे वादे की आड़ में शिकायतकर्ता पर शादी करने के लिए दबाव डाला।'

इसी तरह के मामलों में दिए विभिन्न फैसलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ इस अदालत के पहले दिए फैसले के अनुसार, शिकायतकर्ता विवाहित महिला है, और इसलिए, शादी के झूठे वादे की आड़ में शारीरिक संबंध के लिए उसकी सहमति को 'तथ्य की गलत धारणा' के आधार पर प्राप्त सहमति के ढांचे के अंदर नहीं लाया जा सकता है।' अदालत ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में, 'एफआईआर को शुरू में ही खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से केस की लंबी प्रक्रिया चल सकती है, जबकि एफआईआर में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया उपरोक्त धाराओं के तहत अपराध होने का संकेत नहीं देते हैं।'

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