निमाड़ी साहित्य में योगदान के लिए जगदीश जोशीला को मिलेगा पद्मश्री, बताया कैसे मिला ये खास नाम
- जगदीश जोशीला ने भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए, इसे अपनी मां निमाड़ी और निमाड़ जनपद की उपलब्धि माना। उन्होंने कहा कि मां सरस्वती की कृपा से अब वे कम से कम सनातन धर्म और मानवता की सेवा कर सकेंगे।
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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने इस साल दिए जाने वाले पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी। जिसके बाद मध्य प्रदेश के निमाड़ अंचल के खरगोन जिले में जश्न का माहौल है। दरअसल जिले के गोगावा क्षेत्र के उपन्यासकार जगदीश जोशीला को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है। इसके बाद से उन्हें बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। बता दें कि वे बीते 50 सालों से हिंदी के साथ ही निमाड़ी साहित्य के लिए अपनी सेवाएं देते रहे हैं। माना जाता है कि निमाड़ी साहित्य लिखने वाले वह एक मात्र उपन्यासकार हैं।
निमाड़ी बोली में लिखे गए उनके उपन्यासों के चलते ही उन्हें इस अवार्ड से नवाजा गया है। वहीं अपने नाम को लेकर उन्होंने बताया कि, वैसे तो उनका नाम जगदीश सिसोदिया है। लेकिन देश के प्रसिद्ध साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी जिन्हें देशभर में माखन दादा के नाम से जाना जाता है, उनके द्वारा ही उन्हें करीब 50 साल पहले जोशीला उपनाम दिया गया था। जिसके बाद से वे जगदीश जोशीला के नाम से प्रसिद्ध हुए, और इसी नाम से वे अपना साहित्य लिखते रहे।
देश के इकलौते निमाड़ी के साहित्यकार
इस उपलब्धि को पाने के बाद जगदीश जोशीला ने बताया कि आज तक कोई भी साहित्यकार विभिन्न विधाओं की 28 पुस्तकें निमाड़ी में नहीं लिख पाया है। हालांकि निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी महाराज ने अपने समय में करीब 10 से 11 पद्द विधा के ग्रंथ लिखे हैं, या पुस्तक लिखी थी। जिसके बाद देश में निमाड़ी के एकमात्र अब वही उपन्यासकार हैं। उनसे पहले और ना ही अभी उनके अलावा कोई उपन्यास कार निमाड़ी का हुआ है, जिसके चलते उन्हें निमाड़ी गद्य साहित्य विधा का जनक भी कहा जाता है। उन्होंने निमाड़ी में कुल 28 उपन्यास लिखे हैं ।
निमाड़ के चार संतों पर भी लिखे उपन्यास
पद्मश्री अवार्ड ने नवाजे गए जगदीश जोशीला ने बताया कि, संत सिंगाजी महाराज पर 778 पेज का उनका प्रमाणिक शोध का उपन्यास आया हुआ है, तो वहीं निमाड़ में भगवान की तरह पूजे जाने वाले टंट्या मामा पर भी उन्होंने उपन्यास लिखा है। इसके साथ ही निमाड़ की लोकदेवी अहिल्याबाई पर भी उनका दो भागों का उनका उपन्यास आया हुआ है, जिसका इंग्लिश वर्जन भी जल्द ही पब्लिश होकर सामने आने वाला है, साथ ही निमाड़ में सनातन का प्रचार करने आये संत शंकराचार्य जी पर भी उन्होंने उपन्यास लिखा है । इस तरह निमाड़ के इन चारों संतों पर हिंदी भाषा के उनके उपन्यास प्रमुख हैं ।
मातृभाषा को समझें जीवन का आधार
वहीं उन्हें मिले इस अवार्ड को लेकर जगदीश जोशीला ने भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए, इसे अपनी मां निमाड़ी और निमाड़ जनपद की उपलब्धि माना है। उन्होंने कहा कि मां सरस्वती की कृपा से अब वे कम से कम सनातन धर्म और मानवता की सेवा कर सकें, ऐसी उनकी अपने बचे हुए जीवन से अपेक्षा है।
इसके साथ ही उन्होंने निमाड़ वासियों को संदेश देते हुए कहा कि, हमें अपनी मातृभाषा को ही जीवन का आधार समझना चाहिए । क्योंकि मातृभाषा के माध्यम से ही हम जीवन के अपने सारे सत्यों को समझ पाते हैं । जिसे हम दूसरी भाषाओं के जरिए उतनी सरलता से नहीं समझ सकते।
वहीं पद्मश्री अवार्ड मिलने के बाद जगदीश जोशीला ने निमाड़ वासियों से अपील भी की है की, निमाड़ी को भाषा बनाने के लिए सभी निमाड़ वासी अपने घरों में, अपने परिजनों से निमाड़ी भाषा में ही बात करें और निमाड़ी को भाषा का दर्जा दिलवाने में अपना अमूल्य सहयोग दें ।
रिपोर्ट- निशात मोहम्मद सिद्दीकी, खरगोन
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