मां-बाप के साथ सोने वाले बच्चे कभी नहीं सीख पाते ये 5 बातें, इस उम्र के बाद होने लगती हैं दिक्कतें
एक उम्र के बाद पैरेंट्स और बच्चों को अलग-अलग सोने चाहिए। दरअसल इसका कनेक्शन बच्चों की मेंटल और पर्सनेलिटी ग्रोथ से जुड़ा हुआ है। जबतक बच्चे अलग नहीं सोते हैं तो वो कई चीजें उतनी अच्छी तरह से सीख और समझ नहीं पाते हैं।
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बच्चों का अपने माता-पिता के साथ सोना बहुत ही नॉर्मल बात है। साथ में सोने से बच्चे और पैरेंट्स के बीच की बॉन्डिंग मजबूत होती है। साथ ही उनका भावनात्मक जुड़ाव भी काफी गहरा होता है। अब दस साल तक की उम्र तक तो यह सब ठीक है लेकिन इसके बाद भी अगर बच्चा पैरेंट्स के साथ ही सोता है, तो यह आदत उसकी मेंटल ग्रोथ पर असर डाल सकती है। दरअसल ऐसी कई चीजें हैं, जो बच्चे की मेंटल और पर्सनेलिटी ग्रोथ के लिए काफी जरूरी हैं। जब बच्चा एक उम्र के बाद भी पैरेंट्स के साथ सोना जारी रखता है, तो वो कई ऐसी जरूरी चीजें नहीं सीख पाता है। ऐसे में अगर आपका बच्चा 10 साल के बाद भी आपके साथ ही सो रहा है, तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि इसके क्या नेगेटिव इंपैक्ट हो सकते हैं। आज हम इन्हीं चीजों के बारे में बता रहे हैं।
कॉन्फिडेंस की रहती है कमी
बच्चे का कॉन्फिडेंस बिल्ड हो इसके लिए जरूरी है कि वो ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर बनें। इसकी शुरुआत आप छोटी-छोटी चीजों से कर सकते हैं। बच्चे का बेड और कमरा अलग करना भी इन्हीं में से एक है। जब बच्चे की उम्र दस साल से ज्यादा हो, तो पैरेंट्स को उसे अकेला सोने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। अकेले सोने पर बच्चों का डर भी खत्म होगा और उनमें एक कॉन्फिडेंस आएगा।
प्राइवेसी की समझ होगी बेहतर
दस साल की उम्र के बाद बच्चे की समझ काफी बेहतर होने लगती है। वो आसपास की चीजों पर और ज्यादा गौर करने लगते हैं और कई चीजें उनके दिमाग में बैठने लगती हैं। ऐसे में यह सही समय होता है जब आप उसे कई चीजों के बारे में सिखाना शुरू कर सकते हैं। एक उम्र के बाद अगर आप उसे अपने साथ ही सुलाते रहेंगे तो उसे प्राइवेसी की कोई समझ होगी ही नहीं। प्राइवेसी के मायने समझाने के लिए बच्चे को अलग सुलाना जरूरी है।
मन का डर नहीं होगा दूर
बच्चे के मन में कई तरह के डर होते हैं, जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी होता है। दस साल की उम्र के बाद जब बच्चा बड़ा होने लगता है, तो पैरेंट्स को उसके यही डर निकालने का काम करना चाहिए। आमतौर पर जब बच्चे पैरेंट्स के साथ ही सोते हैं, तो कहीं ना कहीं वो सुरक्षित महसूस करते हैं। इससे कई बार बच्चे के मन का डर दूर होने में ज्यादा समय लग सकता है। वहीं जब बच्चा अकेले सोता है तो उसके मन से अकेलेपन जैसे कई डर यूं ही निकलने लग जाते हैं। बच्चे और भी ज्यादा सेल्फ कॉन्फिडेंट और स्ट्रांग बनते हैं।
बेहतर होगी अपने शरीर की समझ
बच्चे की उम्र 10 साल से ज्यादा हो गई है या फिर बच्चा प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था की उम्र में पहुंच गया है, तो बेहतर है कि उसे अलग सोने के लिए प्रोत्साहित करें। दरअसल इस उम्र के दौरान वो कई तरह के मानसिक और शारीरिक बदलावों से गुजर रहा होता है। इस दौरान उसे थोड़े से स्पेस की जरूरत भी होती है, ताकि वो खुद में हो रहे बदलावों को बेहतर समझ सके। इसलिए एक खास उम्र के बाद उसे अलग सुलाना शुरू कर देना चाहिए।
बच्चों के लिए जरूरी है अकेलेपन का अनुभव
बच्चे की मेंटल और पर्सनेलिटी ग्रोथ के लिए जरूरी है कि वो खुद के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारें। अकेलेपन का अनुभव लेना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। ऐसे में जब बच्चे एक उम्र के बाद पैरेंट्स से अलग सोने लगते हैं, तो उन्हें यह एक्सपीरियंस भी मिल जाता है। इससे बच्चों का अकेलेपन को ले कर डर भी खत्म होता है और वो अपने साथ ज्यादा सहज और अच्छा महसूस कर पाते हैं। वहीं अगर बच्चा चौबीसों घंटे ही किसी ना किसी के साथ रहता है, तो अकेलापन झेलना उसके लिए बहुत ही ज्यादा मुश्किल भरी चीज हो सकती है।
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