घर का खाना इतना क्यों पसंद करते हैं भारतीय? एक्सपर्ट बता रहीं इससे जुड़े दिलचस्प किस्से
कुछ अलग के नाम पर भले ही हम रेस्टोरेंट का खाना खा लें, पर सुकून और स्वाद तो घर के खाने से ही मिलता है। घर का बना खाना हम भारतीयों के लिए क्यों है इतना खास, इस बात की पड़ताल कर रही हैं शाश्वती

एक अध्ययन के मुताबिक 80 प्रतिशत भारतीय माह में सिर्फ एक बार घर से बाहर खाना खाते हैं। जबकि बाहर के देशों में ऐसा नहीं है। इसी संदर्भ में स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी जीरोधा के को-फाउंडर निखिल कामत की पोस्ट खूब वायरल हुई। निखिल ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा था कि सिंगापुर जैसे देशों की तुलना में जहां लोग घर का खाना कभी नहीं बनाते, भारत में लोग अभी भी घर के खाने के दीवाने हैं।बेशक भारतीयों के लिए बाहर खाना खाना आज भी खास मौकों के लिए ही तय किया जाता है और यह बस सुनी-सुनाई बात भर नहीं है।
स्विगी कंपनी द्वारा हाउ इंडिया ईट्स, 2024 नाम से प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय हर माह सिर्फ पांच बार बाहर का खाना खाते हैं। यह आंकड़ा अन्य देशों चीन (33), अमेरिका (27) और सिंगापुर (19) की तुलना में बहुत कम है। इन आंकड़ों की सचाई की बानगी हमारे देश के टीयर-2 और 3 शहर भी हैं, जहां बाहर का खाना या बाहर जाकर खाना कुछ खास मौकों पर ही किया जाता है।
स्विगी, जोमैटो, फूड पांडा जैसे खाने की तुरंत डिलिवरी वाले दौर में घर का खाना कैसे हमारे दिलों पर राज कर रहा है, यह दुनियाभर के लिए आश्चर्य है। बिना रसोई के भारतीय घरों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। वह सेहत का स्रोत है, तो मां की याद भी और दादी-नानी का प्यार भी। खाद्य मानवविज्ञानियों की मानें तो घर के खाने के प्रति हमारे रुझान के लिए सेहत और हाइजीन जैसे मुद्दे ही नहीं, बल्कि इसके लिए पितृसत्ता, जाति व्यवस्था और सांस्कृतिक प्रभाव भी जिम्मेदार होते हैं।
सबको पसंद घर का खाना
घर के खाने को घर-घर में जगह मिलने के पीछे कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक कारण भी जिम्मेदार हैं। मसलन घर के बने खाने को हम पवित्र मानते हैं। क्योंकि आज भी भारतीय घरों की आम कहानी है कि घर की महिलाएं ही खाना बनाती हैं और पूरा परिवार खाता है। इसमें यह सवाल नहीं उठता कि इसे बनाने वाला कौन है, उसका क्या सामाजिक स्तर या पृष्ठभूमि है? हालांकि इस तरह घर के खाने की यह सारी जिम्मेदारी घूम-फिरकर महिलाओं के कंधों पर आ जाती है। हाल ही में रिलीज हुई सान्या मल्होत्रा अभिनीत फिल्म मिसेज में इस बात को बखूबी दिखाया गया है। पर, एक सच्चाई यह भी है कि धीरे-धीरे ही यह स्थिति बदल भी रही है। कई पुरुष भी अब रसोई में नजर आने लगे हैं। मिल-जुलकर घर की रसोई में सेहत और स्वाद से भरपूर खाना पकाया जा रहा है।
अब सब बन रहे हैं होम शेफ
यह तो सच्चाई है कि कोविड महामारी और उसके बाद के कुछ सालों में घर के खाने और अपने हाथों से खुद खाना पकाने की ओर युवाओं का रुझान बढ़ा है। सेहतमंद और पारंपरिक खाने का स्वाद लेने और अपनी रचनात्मकता को कुकिंग के माध्यम से साझा करने के लिए खासतौर से शहरी युवा रसोई की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। युवाओं के लिए कुकिंग सिर्फ जरूरत नहीं अपनी भावनाओं को जाहिर करने का जरिया भी बन रहा है।
यूट्यूब पर वीडियो देख-देखकर अब हर उम्र के लोग देसी से लेकर विदेशी खानपान तक अपनी रसोई में बना रहे हैं। अपने हाथों से खाना बनाने के इस उभरते शौक के लिए पोषण, बचत से लेकर प्रोसेस्ड फूड से बचने की जुगत और खाने से मिलने वाली खुशी जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं। इन सबके साथ आसानी से रेसिपीज की उपलब्धता भी बढ़ी है। कुकिंग ट्यूटोरियल्स और सोशल मीडिया ने खाना बनाने के शौकीन लोगों को खाना बनाने के अपने तौर-तरीकों और तकनीक के तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए भी प्रेरित किया है।
महाराष्ट्र के पुणे में बोन एपेटाइट के नाम से अपनी रसोई से लोगों को 2020 से घर का खाना खिला रहीं मोहिता माथुर कहती हैं, ‘मैं यह काम इसलिए करती हूं क्योंकि इससे मुझे खुशी और ऊर्जा मिलती है। जिंदगी जीने का एक नया लक्ष्य मिलता है। और जब कोई आपके मेहनत की तारीफ करे तो खुशी तो सबको होती ही हैं।’ मोहिता बताती हैं, ‘घर के खाने से हम भारतीयों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। किसी को मां के हाथ का हलवा पसंद है तो किसी को नानी के हाथों की कढ़ी। कोई अचार का नाम लेते ही अपने दादी के खयालों में डूब जाता है।
यह सच्चाई है कि रेस्टोरेंट के खाने में आप चाहे कितने पैसे खर्च कर लें, वह स्वाद उसमें आ ही नहीं सकता, जो घर के बने खाने में होता है। यही वजह है कि भारत में घर के बने खाने की टक्कर कुछ और अब तक नहीं ले पाया है। पिछले कुछ सालों में लोग अपनी सेहत और हाइजीन के प्रति भी बहुत ज्यादा सतर्क हुए है। बाहर के खाने पर खर्च करने की हमारी आर्थिक क्षमता में इजाफा तो हुआ है, पर साथ ही सेहत को लेकर सतर्कता भी बढ़ी है। घर के खाने को लेकर बरकरार इस रुझान के लिए यह कारण काफी हद तक जिम्मेदार है। और जब कोई आपके हाथों के बने खाने की तारीफ करता है, तो यकीन मानिए उससे बेहतर फीडबैक कुछ और नहीं हो सकता।’
कुकिंग के शौक ने बना दी कम्यूनिटी
रसोई की सीमाओं के आगे कुकिंग ने महिलाओं को अपनी एक अलग कम्यूनिटी बनाने का भी मौका दिया है। घर के बने खानपान को बढ़ावा देने के लिए होने वाले इस आयोजन को नाम दिया गया है-फूड पॉप अप्स और क्लाउड किचन। इन फूड पॉप अप्स की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें से अधिकांश क्षेत्रीय खानपान को बढ़ावा देते हैं। गुरुग्राम में 'मारवाड़ी' खाना के नाम से लोगों को खाना परोसने वाली और फाइव स्टार होटल में अपना फूड पॉप अप्स आयोजित करने वाला अभिलाषा जैन कहती हैं, ‘हमारे घरों में कुकिंग का उत्सव मनाया जाता है। खाने से हमारा एक भावनात्मक संबंध होता है। पीढ़ियों से हमारे घरों में न सिर्फ तरह-तरह का खाना बनाया जाता है बल्कि उसकी तारीफ भी की जाती है। मैं एक मारवाड़ी परिवार से आती हूं, जहां मैंने हर चीज घर में बनते देखा है।
आज मैं उसी परंपरा को अपनी कुकिंग के माध्यम से बढ़ा रही हूं। फूड पॉप के माध्यम से मैं और मेरे जैसे सैकड़ों शेफ घर का बना खाना टेबल पर लेकर आ रहे हैं। हम वही परोस रहे हैं, जो हम खुद खाते हैं। हम वही सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं, जो घर के लिए खाना बनाते वक्त करते हैं। खाने की फ्रेशनेस, सामग्री की गुणवत्ता और अपने इलाके के खाने के स्वाद को बरकरार रखने की हमारी कोशिश ही हम सभी होम शेफ को खास बनाती है। हम सालों की रेसिपी को इस्तेमाल में ला रहे हैं। और हम जब उसे परोसते हैं तो वह स्वाद उसमें झलकता है।
होम शेफ की हमारी कम्यूनिटी साथ मिलकर पारंपरिक और क्षेत्रीय खानपान को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।’ कई होम शेफ इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप की मदद से फूड पॉप अप्स का अपना यह काम कर रहे हैं। मसलन, स्नेहा सैकिया इंस्टाग्राम पर 'ट्रैवलिंंग शेफ' ऑफ असम के नाम से अपना काम कर रही हैं। नितिका कुठियाला 'पहाड़ी पत्तल' के नाम से इंस्टाग्राम पर अपना पेज चला रही हैं। वे न सिर्फ पहाड़ी खानपान से लोगों को रूबरू करवा रही हैं बल्कि वहां के खानपान से जुड़ी रीति-रिवाजों को संरक्षित रखने में भी अपनी भूमिका निभा रही हैं।
कुकिंग ये मन की सेहत भी रहेगी दुरुस्त
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा जोखिम अकेलापन है। खाना पकाना फायदेमंद है क्योंकि यह आमतौर पर लोगों को एक साथ लाता है। परिवार और दोस्तों के साथ खाना पकाने और खाने से सभी लोगों में सुरक्षा और साथ का भाव बढ़ता है। कुछ लोग खाना बनाना बोझ समझते हैं। वहीं कुछ लोगों को इस काम में आनंद आता है। खाना पकाने से जुड़ी विभिन्न गतिविधियां जैसे सब्जी काटना आदि ध्यान केंद्रित करने की मांग करता है। कुकिंग खासतौर से उस वक्त फायदेमंद साबित हो सकता है, जब आप तनाव में हों। घर पर खाना पकाने से भोजन के साथ आपके रिश्ते पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
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