ऐसे लागू होते हैं कोर्ट के आदेश? दलित बहिष्कार मामले में हरियाणा पर बरसा SC, छह हफ्ते की दी मोहलत
- 2 जुलाई 2017 को गांव के चौकीदार ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि दलित समुदाय के लोग अब ब्राह्मण समुदाय के आवासीय क्षेत्रों और खेतों में प्रवेश नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 मार्च) को हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई और चेतावनी दी कि अगर उसने अदालत द्वारा नियुक्त समिति के साथ असहयोग जारी रखा, तो उसके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। यह मामला हरियाणा के हिसार जिला के हांसी तहसील के भाटिया गांव का है। मामला दलित समुदाय के सामाजिक बहिष्कार से जुड़ा है, जिसे लेकर पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
क्या है मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित समुदाय से आने वाले याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि 2017 में गांव के प्रभावशाली समुदाय ने उनके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार की घोषणा कर दी थी। यह विवाद तब शुरू हुआ जब कुछ दलित युवकों पर स्थानीय जल स्रोत (हैंडपंप) के उपयोग को लेकर हमला किया गया।
इसके बाद, जब दलित समुदाय ने इस हमले के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और उसे वापस लेने से इनकार कर दिया, तो प्रभावशाली समुदाय और हरियाणा पुलिस ने उनके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार की घोषणा कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई जांच समिति
पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की स्वतंत्र जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसमें पूर्व डीजीपी विक्रम चंद गोयल (1975 बैच, यूपी) और पूर्व डीजीपी कमलेन्द्र प्रसाद (1981 बैच, यूपी) शामिल हैं। अदालत ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस समिति को पूरी तरह से लॉजिस्टिक सहायता (यात्रा, ठहरने व अन्य खर्च) उपलब्ध कराए।
सरकार के असहयोग पर कोर्ट की सख्ती
सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस ने अदालत को बताया कि हरियाणा सरकार ने अब तक समिति को कोई सहायता प्रदान नहीं की है। उन्होंने यह भी कहा कि समिति ने सरकार को तीन बार पत्र लिखकर यात्रा की तैयारी करने को कहा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
इस पर जस्टिस सुंदरश ने हरियाणा सरकार के वकील से नाराजगी जताते हुए पूछा, "क्या यह अदालत के आदेशों को लागू करने का तरीका है?" जब राज्य के वकील अर्जुन गर्ग ने कहा कि उन्हें ऐसे किसी पत्र की जानकारी नहीं है, तो जस्टिस बिंदल ने कहा कि ये पत्र अदालत के रिकॉर्ड में शामिल हैं और राज्य को इस बारे में पता होना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हमने 21 जनवरी 2025 को श्री कमलेन्द्र प्रसाद (सेवानिवृत्त डीजीपी) द्वारा लिखे पत्र को देखा है, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। राज्य सरकार सहयोग नहीं कर रही है। राज्य के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया है कि समिति को पूरा सहयोग दिया जाएगा, जिसमें यात्रा, रहने और अन्य खर्च शामिल हैं। यदि राज्य ने असहयोग जारी रखा, तो अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। इस मामले की सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी।"
2017 में किस तरह हुआ था बहिष्कार?
याचिका के अनुसार, 2 जुलाई 2017 को गांव के चौकीदार ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि दलित समुदाय के लोग अब ब्राह्मण समुदाय के आवासीय क्षेत्रों और खेतों में प्रवेश नहीं कर सकते। इसी दिन, राशन दुकानों, डेयरी और सैलून में भी उनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इतना ही नहीं, दलित बस्ती की पानी की आपूर्ति भी रोक दी गई।
इसके बाद 7 जुलाई 2017 से लेकर लगातार कई महीनों तक दलित समुदाय ने सामाजिक बहिष्कार और धमकियों के खिलाफ पुलिस में कई शिकायतें दर्ज कराईं। लेकिन याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस और जांच अधिकारी पूरी तरह प्रभावशाली समुदाय के पक्ष में खड़े थे, जिस कारण उन्हें न्याय नहीं मिला।
याचिकाकर्ताओं ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन जब वहां से राहत नहीं मिली, तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। अब सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को दो टूक कह दिया है कि वह जांच समिति को पूरा सहयोग दे, अन्यथा अवमानना कार्यवाही का सामना करने के लिए तैयार रहे। मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।
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