Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan editorial column 04 February 2025

तेलंगाना में जातियां

  • तेलंगाना सरकार द्वारा जारी किए गए जातिगत आंकडे़ स्वागतयोग्य हैं। इसके पहले बिहार सरकार ने भी जातिगत आंकडे़ जारी किए थे। मोटे तौर पर जैसे बिहार के आंकड़ों ने बहुत नहीं चौंकाया था, वैसे ही तेलंगाना के आंकड़ों ने भी कोई बहुत नई व बड़ी सूचना नहीं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानMon, 3 Feb 2025 10:53 PM
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तेलंगाना में जातियां

तेलंगाना सरकार द्वारा जारी किए गए जातिगत आंकडे़ स्वागतयोग्य हैं। इसके पहले बिहार सरकार ने भी जातिगत आंकडे़ जारी किए थे। मोटे तौर पर जैसे बिहार के आंकड़ों ने बहुत नहीं चौंकाया था, वैसे ही तेलंगाना के आंकड़ों ने भी कोई बहुत नई व बड़ी सूचना नहीं दी है। अव्वल तो यह बात सही है कि जब ऐसे आंकडे़ जारी होते हैं, तो लोगों के मन में चल रहे अनेक तरह के भ्रम दूर होते हैं और जो तथ्य सामने आते हैं, उनके आधार पर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक फैसले लेने में सहूलियत होती है। खैर, सोमवार को तेलंगाना के एक मंत्री उत्तम कुमार रेड्डी ने बताया किया कि नवंबर और दिसंबर 2024 में आयोजित जातिगत सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, राज्य की 56.33 प्रतिशत आबादी पिछड़ा वर्ग या ओबीसी से संबंधित है। हालांकि, यह ध्यान देने की बात है कि ओबीसी में ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है। वैसे पिछड़ा वर्ग में मुस्लिमों की आबादी 10.08 प्रतिशत है। मतलब, तेलंगाना के ज्यादातर मुस्लिम पिछडे़ हैं, बिहार में भी लगभग यही स्थिति है।

तेलंगाना में अनुसूचित जाति के लोग की आबादी 17.43 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लोगों की आबादी 10.45 प्रतिशत है। अगर तुलना करें, तो बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति की महज 1.68 प्रतिशत। सामान्य वर्ग की बात करें, तो बिहार में इनकी आबादी 15.52 प्रतिशत थी और तेलंगाना में 15.79 प्रतिशत पाई गई है। वैसे तो जातिगत सर्वेक्षण आंध्र प्रदेश में भी चल रहा है, लेकिन कुछ अन्य राज्यों में भी इसकी मांग हो रही है, पर ज्यादातर राज्य चाहते हैं कि देश की सामान्य जनगणना के तहत ही जातिगत जनगणना भी हो जाए। बिहार और तेलंगाना के आंकड़े कुछ बातों को साफ कर देते हैं। पहली बात, अपने देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी समग्रता में 50 प्रतिशत से ज्यादा है। दूसरी, अनुसूचित जाति और जनजातियों की आबादी का अनुपात 30 प्रतिशत के आसपास है। तीसरी, सामान्य श्रेणी के लोगों की आबादी शायद ही किसी राज्य में 20 प्रतिशत से ऊपर होगी। तेलंगाना के आंकडे़ बताते हैं कि वहां सामान्य श्रेणी के 2.48 प्रतिशत मुस्लिम हैं, मतलब, पिछड़े मुस्लिमों का प्रतिशत दस प्रतिशत करीब है। देश के समेकित विकास के लिए पिछड़े मुस्लिमों की शिक्षा, विकास और प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने की जरूरत है।

अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए तो अनेक प्रावधान हैं, पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए ज्यादा प्रयासों की मांग गलत नहीं है। तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत कम से कम 162 समुदाय हैं, जिन्हें पांच समूहों में बांटा गया है। इसमें जो समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछडे़ हैं, उनके लिए योजनाओं की जरूरत है। उन्हें मुख्यधारा में लाए बिना देश का विकास संभव नहीं होगा। देश में ओबीसी की संख्या ज्यादा है, तो उसे ज्यादा संसाधन और अवसर मिलने चाहिए। देश के सामने यही असली चुनौती है, जो अब तक हुए जातिगत सर्वेक्षणों से साफ झलकती है। अभी देश का जो सियासी हाल है, उसमें हम क्रीमीलेयर की ज्यादा चर्चा नहीं कर सकते, पर जिन जातियों तक अभी लाभ नहीं पहुंचा है, उनके कल्याण को लक्ष्य बनाना होगा। ऐसे सर्वेक्षण को सियासी नजरिये से तो देखा ही जाएगा, पर ज्यादा जरूरी है कि हाशिये पर पड़ी जातियों के लिए सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक अवसर पैदा किए जाएं।

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