झुकेगा नहीं... समझा क्या; ओटीटी, फिल्म, सोशल मीडिया से बहक रहे बच्चे, क्या कहते हैं एक्सपर्ट
- सीबीएसई के काउंसलर डॉ प्रमोद कुमार ने बताया कि फिल्मी डायलॉग्स के लहजे में बात करने और उनके किरदारों में जीने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। काउंसलिंग के दौरान इसकी शिकायतें मिल रही हैं।

स्कूलों में होमवर्क को सवाल करने पर बच्चों से अप्रत्याशित जवाब सुनने को मिल रहे हैं। होमवर्क नहीं करने पर कक्षाओं में शिक्षक डांटते हैं तो बच्चे ‘झुकेगा नहीं...और नाम सुनकर... समझा है क्या’ जैसे डायलॉग्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। बच्चे कक्षाओं और स्कूल परिसर में दोस्तों से बातचीत के दौरान भी सिनेमाई अंदाज और गाली-गलौज तक का उपयोग करने लगे हैं। यह चिंताजनक स्थिति सीबीएसई और शिक्षा विभाग की हेल्पलाइन पर आ रही शिकायतों से सामने आई है। बच्चों की बदलती प्रवृत्ति से शिक्षक तो परेशान हैं ही, अभिभावक भी चिंतित हैं।
अधिक स्क्रीन टाइम से हो रहा है नकारात्मक असर
सीबीएसई के काउंसलर डॉ प्रमोद कुमार ने बताया कि फिल्मी डायलॉग्स के लहजे में बात करने और उनके किरदारों में जीने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। काउंसलिंग के दौरान इसकी शिकायतें मिल रही हैं। इसका मुख्य कारण बच्चों का स्क्रीन टाइम अत्यधिक होना है। बच्चे एकांत में लगातार मूवी और रील्स देखते हैं। इससे प्रभावित होकर वही अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। बच्चों के व्यवहार पर फिल्मों, ओटीटी और सोशल मीडिया का गहरा असर पड़ रहा है। उन्होंने अभिभावकों के लिए सलाह दी कि बच्चों को दो घंटे से अधिक मोबाइल का उपयोग नहीं करने दें। साथ ही, शिक्षक भी बच्चों को रील और रियल लाइफ का अंतर रोचक तरीके से बताएं, ताकि वे उसे उसी रूप में देखें।
शिक्षकों व अभिभावकों को मिलकर करनी होगी पहल
राजकीय शिक्षक सम्मान प्राप्त मध्य विद्यालय दिघरा के प्रधानाध्यापक सुधाकर ठाकुर बताते हैं कि बच्चों पर सोशल मीडिया और डिजिटल कंटेंट का असर हो रहा है। बच्चे खाने के दौरान भी मोबाइल देखते रहते हैं। इसी का परिणाम है कि उनके व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है। दोस्तों के साथ बातचीत और संवाद के स्तर में गिरावट आई है। स्कूल में भी शिक्षक की आंख से जरा सा ओझल होते ही स्टंट करने लगते हैं। इस दिशा में शिक्षकों और अभिभावकों को मिलकर पहल करनी होगी।
फिल्मों की देखादेखी बाल और कपड़ों की डिजाइन
जिले के एक सरकारी स्कूल की शिक्षक ने शिक्षा विभाग की हेल्पलाइन पर शिकायत की है कि बच्चे अजीब हेयरस्टाइल रख रहे हैं और कक्षाओं में अश्लील बातें करने लगे हैं। इसकी शिकायत के लिए माता-पिता को स्कूल बुलाने का भी असर नहीं पड़ रहा। बच्चे फिल्मों की तरह बाल की कटिंग और कपड़ों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाह रहे हैं। दोस्तों के साथ बातचीत की उनकी शैली भी नकारात्मक होती जा रही है। समझाने पर जस्ट कूल कह टाल देते हैं। कई अभिभावकों ने स्कूलों में इस तरह की शिकायत की है।
राजकीय शिक्षक सम्मान प्राप्त मध्य विद्यालय दिघरा के प्रधानाध्यापक सुधाकर ठाकुर बताते हैं कि बच्चों पर सोशल मीडिया और डिजिटल कंटेंट का असर हो रहा है। बच्चे खाने के दौरान भी मोबाइल देखते रहते हैं। इसी का परिणाम है कि उनके व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है। दोस्तों के साथ बातचीत और संवाद के स्तर में गिरावट आई है। स्कूल में भी शिक्षक की आंख से जरा सा ओझल होते ही स्टंट करने लगते हैं। इस दिशा में शिक्षकों और अभिभावकों को मिलकर पहल करनी होगी।