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DM, SP से सचिव तक के भ्रष्टाचार की जांच CICD से, घूसखोरी रोकने को अब चौथी संस्था बनाई गई

  • बिहार में भ्रष्टचार रोकने के लिए पहले से काम कर रहे तीन विभागों के बाद अब नीतीश सरकार ने मुख्य जांच आयुक्त निदेशालय बनाया। यह कलेक्टर, एसपी, कमिश्नर और सचिव तक के गलत काम की जांच करेगा।

Ritesh Verma हिन्दुस्तान टाइम्स, अविनाश कुमार, पटनाThu, 13 Feb 2025 04:45 PM
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DM, SP से सचिव तक के भ्रष्टाचार की जांच CICD से, घूसखोरी रोकने को अब चौथी संस्था बनाई गई

बिहार में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए पहले से काम कर रही तीन संस्था स्पेशल विजिलेंस यूनिट (SVU), इकोनॉमिक ऑफेंस यूनिट (EOU) और विजिलेंस इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (VIB ) के बाद अब नीतीश कुमार सरकार ने मुख्य जांच आयुक्त निदेशालय (CICD) नाम से चौथी यूनिट बनाने का फैसला किया है। सरसरी तौर पर मुख्य जांच आयुक्त बड़े अफसरों के भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करेंगे जिसमें डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी, एसडीपीओ, डीएम, एसपी, कमिश्नर, संयुक्त सचिव, अपर सचिव, सचिव और सचिव से ऊपर के सचिव पदनाम वाले अफसर भी शामिल हैं।

मुख्यमंत्री के मातहत काम करने वाले सामान्य प्रशासन विभाग से संबद्ध इस निदेशालय का प्रमुख महानिदेशक और मुख्य जांच आयुक्त कहा जाएगा। इस पद पर मुख्य सचिव स्तर के मौजूदा या रिटायर्ड अफसर तैनात किए जा सकेंगे जिनका कार्यकाल 5 साल या 70 साल की उम्र तक होगा। इनके अंदर जांच आयुक्त, संयुक्त जांच आयुक्त, संयुक्त आयुक्त, अपर समाहर्ता विभागीय जांच जैसे पद पर अफसरों की तैनाती होगी। सरकार ने अपनी अधिसूचना में साफ किया है कि कौन किस स्तर के अफसर या कर्मचारी के भ्रष्टाचार की जांच करेगा। लेकिन सरकार चाहे तो कोई भी जांच मुख्य जांच आयुक्त को सौंप सकती है।

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मुख्य जांच आयुक्त को वेतनमान 9 और उससे ऊपर के अफसरों के खिलाफ शिकायतों की जांच करनी है। इसमें डिप्टी कलेक्टर, डिप्टी एसपी, डीएम, एसपी और ऊपर जाने पर सचिव स्तर तक के पदाधिकारी आते हैं। निदेशालय की मदद के लिए प्रमंडल स्तर पर संयुक्त जांच आयुक्त, जिला में अपर समाहर्ता विभागीय जांच, सभी विभागों में संयुक्त सचिव स्तर के एक अफसर की ड्यूटी भी लगेगी। अफसरों के कदाचार, बेईमानी और घूसखोरी के मामले निदेशालय देखेगा और रंगे हाथ पकड़े जाने वालों को भी।

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सरकार से जुड़े एक अफसर ने बताया कि इस निदेशालय की जरूरत लंबे समय से थी क्योंकि कई बार विभागीय जांच के बाद अफसर या कर्मचारी पर जो कार्रवाई की जाती है, उसका कोर्ट में प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण बचाव करना मुश्किल हो जाता है। निदेशालय का गठन इसलिए किया गया है कि भ्रष्टाचार के मामलों की पेशेवर तरीके से जांच हो, पूरी प्रक्रिया के तहत रिपोर्ट बने और तब कार्रवाई हो जिसे न्यायालय में डिफेंड किया जा सके।

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