बोले जमुई : दवा के लिए भी देखते हैं दूसरों का मुंह, तीन हजार हो पेंशन
परिवार समाज की महत्वपूर्ण इकाई है, लेकिन आधुनिक जीवनशैली के कारण वृद्धजनों की उपेक्षा बढ़ रही है। वृद्धाश्रम बुजुर्गों के लिए सहारा बनते हैं। वर्तमान में पेंशन 400 रुपये है, जो उनकी आवश्यकताओं को पूरा...
परिवार समाज की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। परिवार में बुजुर्गों को विशेष सम्मान प्राप्त होता है, क्योंकि वे अनुभव, ज्ञान और मार्गदर्शन का भंडार होते हैं। किंतु आधुनिक जीवनशैली, भागदौड़ भरी जिंदगी और बदलते सामाजिक मूल्यों के कारण वृद्धजनों की उपेक्षा बढ़ने लगी है। इस स्थिति में वृद्धाश्रम की अवधारणा सामने आई, जो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वृद्धाश्रम एक ऐसा स्थान है जहां बुजुर्गों को रहने, खाने-पीने, चिकित्सा, मनोरंजन और देखभाल की सुविधा प्रदान की जाती हैं। ये आश्रम उन बुजुर्गों के लिए सहारा बनते हैं, जिन्हें उनके परिवार ने छोड़ दिया है। जो अपने परिवार के साथ रह पाने में असमर्थ हैं। संवाद के दौरान जिले के बुजुर्गों ने अपनी परेशानी बताई। 04 सौ रुपए प्रतिमाह मिलती है पेंशन, नहीं होता खर्च पूरा
03 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन देने की कर रहे हैं मांग
01 भी जगह बुजुर्गों को बैठने या मनोरंजन को नहीं बनाई
वृद्धावस्था में जब व्यक्ति सबसे अधिक देखभाल और आर्थिक सहयोग की अपेक्षा करता है, तब उसे केवल नाम मात्र की सहायता मिल रही है। सामाजिक कार्यकर्ता, पेंशनधारी बुजुर्गों ने सरकार से यह मांग की है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को बढ़ाकर न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह की जाए ताकि वृद्धजन सम्मानपूर्वक अपना जीवन जी सकें। वृद्धजन हमारी संस्कृति और समाज की रीढ़ हैं। उनकी उपेक्षा केवल एक पीढ़ी को नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को पीछे ले जाती है। सरकार को चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में वृद्धजनों की भागीदारी को प्राथमिकता दे। उनकी पेंशन में यथोचित वृद्धि करें और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए सभी जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए। वृद्धावस्था में व्यक्ति को परिवार का प्यार, समाज का सम्मान और सरकार की सहायता की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, परंतु आज की पीढ़ी में पारिवारिक संरचना में हो रहे बदलाव के कारण बुजुर्गों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है। कई वृद्धजन ऐसे हैं जिन्हें उनके अपने ही परिवार वाले बोझ समझते हैं और कई बार उन्हें वृद्धाश्रमों की ओर रुख करना पड़ता है। बुजुर्गों का कहना है कि जीवन भर उन्होंने समाज और देश की सेवा की, लेकिन आज उनके जीवन के इस अंतिम चरण में उन्हें ही समाज ने नजर अंदाज कर दिया है। यह न केवल सामाजिक विफलता को दर्शाता है, बल्कि नैतिक मूल्यों के पतन की ओर भी संकेत करता है।
पूरा नहीं हो पाता दवा का भी खर्च :
वर्तमान में बिहार सहित कई राज्यों में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत वृद्धों को मात्र 400 रुपये प्रति माह की राशि दी जाती है। यह राशि न तो उनके दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकती है और न ही दवाओं और चिकित्सा खर्चों का बोझ उठा सकती है। एक पेंशनधारी शैलेन्द्र प्रसाद मेहता ने बताया कि 400 रुपये में आजकल एक सप्ताह की दवा भी नहीं आती। बिजली बिल, भोजन और अन्य खर्चों का क्या? उन्होंने यह भी कहा कि यह राशि सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गई है। जिससे वृद्धों का जीवन सुरक्षित नहीं हो सकता। वरिष्ठ नागरिकों ने यह मांग उठाई है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाकर कम से कम 3000 रुपये प्रति माह की जानी चाहिए। वहीं पीताम्बर लाल बर्णवाल ने बताया कि सरकार के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन राजनीतिक प्राथमिकताओं में बुजुर्गों को स्थान नहीं मिल पा रहा है।
जिले के सभी प्रखंड मुख्यालयों में जीवन प्रमाणीकरण केंद्र की मांग :
वृद्धजनों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान करने के लिए जीवन प्रमाणीकरण अनिवार्य होता है। परंतु कई प्रखंडों में यह कार्य समय पर नहीं हो पा रहा है। इससे हजारों बुजुर्गों की पेंशन रुक गई है। कुछ मामलों में तो तकनीकी दिक्कतों के चलते वृद्धों को महीनों तक पेंशन नहीं मिलती। कई बार उन्हें बैंक या सीएससी केंद्रों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जो कि उनके स्वास्थ्य और उम्र के लिहाज से अत्यंत कष्टदायक है। बुजुर्गों ने यह मांग की है कि राज्य के सभी प्रखंड मुख्यालयों पर स्थायी जीवन प्रमाणीकरण केंद्र की स्थापना की जाए, जिससे उन्हें बार-बार लंबी दूरी तय कर प्रमाण देने की आवश्यकता न हो। इसके साथ ही, मोबाइल वैन या डिजिटल प्रमाणीकरण सुविधा भी शुरू करने की मांग की गई है, जो विशेष रूप से शारीरिक रूप से असमर्थ वृद्धजनों के लिए सहायक होगी। वरिष्ठ नागरिकों ने सरकार से यह भी आग्रह किया है कि उनके लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर तथा शिकायत निवारण केंद्र की स्थापना की जाए, जहां वे समस्याओं को दर्ज करवा सकें।
शिकायत
1. वृद्धों को नहीं मिल रहा परिवार और समाज से उचित सम्मान, होती है पीड़ा।
2. 400 की पेंशन में नहीं कटता जीवन, दवाई भी नहीं मिल पाती, परेशानी होती है ।
3. स्वैच्छिक पेंशन दान योजना लागू नहीं की गई, इससे गरीबों का भला हो जाता।
4. जीवन प्रमाणीकरण कार्य नहीं हो रहा संपन्न।
5. पेंशन स्वीकृत करने में कई तरह की परेशानी।
सुझाव
1. नई पीढ़ी के बच्चों को बुजुर्गों को उचित सम्मान देना चाहिए ।
2. 400 की पेंशन राशि को बढ़ाकर 3000 की जानी चाहिए।
3. सरकार को चाहिए कि स्वैच्छिक पेंशन दान योजना लाएं ताकि उनकी राशि से कुछ गरीबों का भला हो सके ।
4. जीवन प्रमाणीकरण कार्य की नियमित व्यवस्था प्रखंड स्तर पर करने की जरूरत है।
5. बुढ़ापे में लोगों की हो सामाजिक सुरक्षा, सरकार सक्रिय हो।
सुनिए हमारी बात
सरकार की ओर से दी जाने वाली पेंशन मात्र 400 रुपये प्रति माह से गुजर-बसर असंभव-सा हो गया है। आधा किलो घी का दाम भी इस राशि से नहीं हो पाता है। महीने भर का चावल व दाल की तो बात ही छोड़ दिजिए।
-कुंती देवी
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में वृद्धजनों की भागीदारी को प्राथमिकता दें। पेंशन में यथोचित वृद्धि करें। साधन उपलब्ध कराएं। मेडिकल सुविधा व यात्रा में छूट मिलना चाहिए।
-पीताम्बर लाल बर्णवाल
राजनीतिक प्राथमिकताओं में बुजुर्गों को स्थान नहीं मिल पा रहा है। सरकार के स्तर पर बुजुर्ग आज भी उपेक्षित हैं। इस महंगाई में चार सौ रुपये का कोई महत्व नही रह गया है।
-शैलेन्द्र प्रसाद मेहता
पारिवारिक संरचना में हो रहे बदलाव के कारण बुजुर्गो को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है। 400 रुपए में आधा किलो हॉर्लिक्स भी नहीं हो पाता है। खाने-पीने की तो दूर की बात है।
-जयप्रकाश केशरी
सामाजिक सुरक्षा की राशि न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह की जाए ताकि सम्मानपूर्वक जी सकें। निजी अस्पताल में मुफ्त इलाज और ट्रेन पर यात्रा की सेवा मुफ्त हो।
-चानो देवी
वृद्धजन हमारी संस्कृति और समाज की रीढ़ है। उनकी उपेक्षा केवल पीढ़ी को नहीं, बल्कि मानवता को पीछे ले जाती है। जरूरी है कि बुजूर्गों की हर महीने मिलने वाली राशि में इजाफा हो।
-कमली देवी
400 रुपये से न तो दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकते हैं और न ही दवा और चिकित्सा खर्चों का बोझ उठा सकते हैं। कम से कम दो हजार रुपये प्रतिमाह करनी चाहिए।
-राजू चौधरी
कुछ मामलों में तकनीकी दिक्कतों के चलते वृद्धों को महीनों तक सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिल पाती है। इसके लिए घर-घर जाकर सुधार करने की व्यवस्था सरकार करे।
-जगरनाथ मांझी
सरकार बुजुर्गों के लिए जिला व प्रखंड स्तर पर विशेष हेल्पलाइन नंबर तथा शिकायत निवारण केंद्र की स्थापना करे। पेंशन खाते में त्रुटियों को सुधारने के लिए घर-घर तक कर्मी जाएं।
-बैजू मांझी
400 रुपये प्रति माह की राशि दी जाती है। यह राशि उनके दैनिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती है। सरकार को चाहिए कि बुजुर्गों के लिए दवा व मेडिकल सुविधा नि: शुल्क करें।
-प्रमिला देवी
सरकार की ओर से मिलने पानी पेंशन से गुजर-बसर मुश्किल से होता है। इतनी कम पेंशन किसी भी दूसरे राज्य में नहीं है। कम से कम दो हजार रुपये प्रतिमाह होना चाहिए।
-झुनकी देवी
महीने में मिलने वाली पेंशन से दवाई का खर्चा भी मुश्किल से पूरा होता है। चश्मा खरीदने और खाने को भी लाले पड़ जाते हैं। पेंशन को बढ़ाने पर सरकार को पहल करनी चाहिए।
-मैली देवी
पेंशन राशि मे बढ़ोतरी नहीं होने से हमें अपने महीने के खर्च के लिए अपने परिजनों की ओर टकटकी लगाये रहना होता है। पेंशनर के ऊपर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
-योगेंद्र मांझी
400 रुपये से महीने का गुजारा नहीं होता है। कम से कम तीन हजार पेंशन मिलनी चाहिए। बुजुर्गों का कपड़ा व मेडिकल जांच की सुविधा नि:शुल्क मिले इस पर सरकार का ध्यान होना चाहिए।
-पंचा देवी
पेंशन नियमित नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है। कई लाभुकों के खाते और आधार में हल्की गड़बड़ी रहने के बाद महीनों पेंशन से वंचित रहना पड़ता है।
-समुखी देवी
सरकार को 400 रुपये के पेंशन को बढ़ाकर 3000 रुपये करनी चाहिए। हमलोगों को काफी सहूलियत होगी। बुजुर्गों को निजी अस्पताल में चिकित्सा सुविधा का लाभ सरकार उपलब्ध कराए।
-सरस्वती देवी
बोले जिम्मेदार
सरकार द्वारा मिल रही सभी प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके बाद भी यदि किसी प्रकार की समस्या है उसका समाधान किया जाएगा। सरकार के स्तर पर यदि राशि मिलती है तो उन्हें दी जाती है। इसके अलावा 70 वर्ष से ऊपर के लोगों का आयुष्मान कार्ड भी बन रहा है। इसे कहीं भी बनवाया जा सकता है।
-अभिलाषा शर्मा, डीएम, जमुई।
बोले जमुई फॉलोअप
खैरा चौक पर जाम से नहीं मिली राहत
जमुई, कार्यालय संवाददाता। वैसे तो शहर में ट्रैफिक व्यवस्था सुधार के लिए कई जगह ट्रैफिक पोस्ट बनाए गए हैं। वहां ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था की गई है। लेकिन सबसे अधिक परेशानी सुबह के समय खैरा चौक पर होती जहां 8 बजे तक कई बार जाम लग जाता है। दरअसल नो इंट्री के कारण रात 8 बजे से सुबह 8 बजे बड़े वाहनों की आवाजाही काफी संख्या में होती है। यही कारण है कि सुबह जब खैरा मोड़ पर अस्थायी सब्जी मार्केट सज जाता है तो जाम लग जाता है। इस जाम में कई बार बड़े वाहनों के अलावा ऐंबुलेंस व स्कूली वाहन भी फंस जाते हैं। हालांकि यह सब्जी मार्केट दिन भर का नहीं है बल्कि होलसेल मंडी है, जहां सुबह के 8 बजे तक ही ज्यादा भीड़ होती है। यह बाजार भी कोरोना के समय ही बन गया था। पहले यह थाना के समीप सब्जी मार्केट में लगता था। अभी भी यदि इस बाजार को सिर्फ चौक से हटा दिया जाए तो काफी हद तक सुबह जाम लगने की समस्या से राहत मिल जाएगी।
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