Hindi Newsउत्तराखंड न्यूज़Questions raised on UCC, High Court sought answer from Uttarakhand government on marriage, divorce and live in

UCC पर उठे सवाल; हाईकोर्ट ने शादी, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप पर उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब

  • अब नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यूसीसी में शादी, तलाक और लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तराखंड सरकार से 6 हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है। जानिए क्या है पूरा मामला।

Ratan Gupta लाइव हिन्दुस्तान, नैनीतालWed, 12 Feb 2025 04:30 PM
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UCC पर उठे सवाल; हाईकोर्ट ने शादी, तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप पर उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब

आजाद भारत में पहली बार किसी राज्य में(उत्तराखंड) समान नागरिक संहिता लागू हुई, लेकिन इस पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए। इसके चलते वकीलों ने यूसीसी के कुछ प्रावधानों को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दी। अब नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यूसीसी में शादी, तलाक और लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तराखंड सरकार से 6 हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि राज्य में लागू समान नागरिक संहिता मुसलमानों, पारसियों आदि की विवाह प्रणाली की अनदेखी करती है।

लिव-इन, शादी और तलाक के प्रावधानों पर उठे सवाल

समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड 2024 को जनहित याचिका (पीआईएल) के जरिए चुनौती दी गई है। इसमें दावा किया गया है कि लिव इन रिलेशनशिप, शादी और तलाक से संबंधित प्रावधान नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। आपको बता दें कि प्रैक्टिस कर रहे एक वकील ने यूसीसी के कुछ हिस्सों को चुनौती दी है। लाइव लॉ की बेवसाइट के अनुसार इनमें पार्ट-1 में दिए गए शादी और तलाक के प्रावधान और पार्ट-3 में दिए गए लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े खंडों के साथ-साथ समान नागरिक संहिता नियम उत्तराखंड 2025 शामिल है।

शादी के लिए साथी चुनने की स्वतंत्रता छिनने की दलील

याचिका में कहा गया है कि यूसीसी उत्तारखंड 2024 ने महिलाओं से जुड़े असमानता वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से जुड़ी चिंताओं पर अंकुश लगाया है। जबकि इसमें कई ऐसे प्रावधान और नियम हैं, जो राज्य में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं। इसमें निजता का अधिकार, जीवन जीने का अधिकार और बड़े अर्थों में विवाह में अपने साथी को चुनने में निर्णय लेने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के छिनने की बात है।

शादी और तलाक से जुड़े रीति-रिवाजों को नजरअंदाज किया

याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान मुस्लिम समुदाय के लिए भेदभावपूर्ण हैं। याचिका में दावा किया गया है कि ये प्रावधान मुस्लिमों की शादी और तलाक से जुड़े रीति-रिवाजों को नजरअंदाज करते हैं। दलीलों में इन लोगों पर हिन्दू मैरिज एक्ट के प्रावधानों को थोपते का भी आरोप लगाया गया है। लाइव लॉ बेवसाइट के अनुसार इसके लिए हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 3(1) (जी) में लिखी बात का हवाला दिया गया है।

शादी के प्रतिबंधित रिश्तों का दिया हवाला

हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 3(1) (जी) में शादी करने के लिए कुछ प्रतिबंधित रिश्तों के बारे में बताया गया है। इन्हीं प्रावधानों को मुस्लिम और पारसी समुदाय के लिए भी लागू किया गया है। याचिका में इसका उदाहरण रखते हुए दलील दी गई है कि इस बात को नजरअंदाज कर दिया गया है कि पारसी और मुस्लिम समुदाय में इन रिश्तों में शादी करना प्रतिबंधित नहीं है। इन रिश्तों में एक आदमी और उसके पिता की बहन की बेटी, एक आदमी और उसके पिता के भाई की बेटी, एक आदमी और उसके मामा की बेटी तथा एक आदमी और उसकी मामा की बेटी के जैसे रिश्ते शामिल हैं।

LGBTQ समुदाय और रिलेशनशिप से जुड़े अधिकार

लिव-इन रिलेशनशिप पर सेक्शन 4(बी) में कहा गया है कि केवल एक पुरुष और महिला जो "विवाह की प्रकृति" में रिश्ते के माध्यम से एक ही घर में रिलेशनशिप में रहते हैं। उनका रिश्ता निषिद्ध(बैन) संबंधों की डिग्री के तहत न आए। ऐसे रिश्तों को लिव-इन रिलेशनशिप में होना बताया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि यदि प्रावधान के शब्दों के मायने निकाले जाएं तो यह केवल "जैविक पुरुष या महिला" से संबंधित होगा। ऐसा होने पर LGBTQ समुदाय से जुड़े व्यक्ति अगर अपने लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिए जाएंगे तो वो इस अधिकार से बाहर हो जाएंगे। ऐसा LGBTQ समुदाय के साथ अनुचित व्यवहार होगा।

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