संतूर से स्वस्तिवाचन, पखावतज से की पूजा
Varanasi News - वाराणसी में तुलसी घाट पर ध्रुपद मेला के दौरान उत्तर और दक्षिण भारत की संगीत धाराओं का अद्भुत संगम हुआ। कश्मीर के तंत्रवाद्य और दक्षिण भारतीय ताल पखावज ने विविध प्रस्तुतियों के माध्यम से संगीत...
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वाराणसी मुख्य संवाददाता उत्तर और दक्षिण भारत की दो संगीत धाराओं का अद्भुत मिलन ध्रुपद तीर्थ तुलसी घाट पर हुआ। कश्मीर की वादियों के तंत्रवाद्य से स्वस्तिवाचन किया गया तो दक्षिण भारतीय ताल पखावज से नादेश्वर की पूजा की गई।
संगीत के वैश्विक स्रोताओं ने इसकी अनुभूति सोमवार को ध्रुपद मेला की तीसरी निशा में की। मंच पर संतूर वादन के सशक्त युवा हस्ताक्षर पंडित अभय रुस्तम सोपोरी बैठे थे। पखावज पर उनके साथ काशी के युवा ताल साधक अंकित पारिख संगत कर रहे थे। पंडित अभय रुस्तम सोपोरी ने राग मालकौंस की अवतारणा की। आलाप और जोड़ बजाने के बाद उन्होंने चौताल में पहाड़ी धुन से वादन को विश्राम दिया।
इससे पहले प्रथम कार्यक्रम शर्मिला राय चौधरी के गायन का रहा। शर्मिला राय ने गायन का आरंभ राग भोपाली में चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना से किया। उनके साथ पखावज पर सुखद मुंड़े ने संगत की। द्वितीय प्रस्तुति वरिष्ठ कलाकार पं. माणिक मुंडे द्वारा स्वतंत्र पखावज वादन का रहा। उनके साथ सारंगी पर गौरी बनर्जी सती रहीं। पखावज वादन उनके पुत्र सुखद मुंडे ने किया।
तृतीय प्रस्तुति भोपाल के डॉ. श्याम रस्तोगी द्वारा सुरबहार वादन की रही। सुरबहार वादन का आरंभ राग विहाग में आलाप से की। चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना भी प्रभावी रही। उनके साथ पखावज पर संगत शुभम गुजराती ने की। चतुर्थ कार्यक्रम जयपुर की डॉ. मधु भट्ट तैलंग के गायन का रहा, उन्होंने राग कल्याण में ‘जयति जयति भोला शंकर बम हरहर, ‘गंगे महारानी सुनाने के बाद होरी से श्रोताओं को आनंदित किया। समापन अपने पिता द्वारा रचित बंदिश ‘जोगी जो ही ध्यावत फल पावत से किया। उनके साथ पखावज पर अंकित पारिख और सारंगी पर गौरी बनर्जी सती रहीं। संचालन जगदीश्वरी चौबे ने किया।
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