बोले काशी : कृषि निर्यात बढ़ाने को उन्नत बीज मिलें, फसलों की हो हिफाजत
Varanasi News - वाराणसी में कृषि उत्पादक संगठनों के संचालक अमेरिका और चीन के बीच तनाव का फायदा उठाने की योजना बना रहे हैं। वे बेहतर बीज, सिंचाई और फसलों की सुरक्षा के लिए सरकारी समर्थन की मांग कर रहे हैं। एयर इंडिया...
वाराणसी। ट्र्रंप टैरिफ से कालीन और टेक्सटाइल्स निर्यातक भले ही चिंतित और तनाव में हों मगर पूर्वांचल के कृषि उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के संचालक एवं कृषि उत्पादों के निर्यातक तनावमुक्त हैं। उन्हें लग रहा है कि चीन से अमेरिकी तनातनी के बीच उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैठ बनाने में मदद मिलेगी। इसका अंतिम लाभ किसानों को भी मिलेगा। मगर उसके लिए वे कृषि उत्पादन के सामने स्थानीय चुनौतियों का समाधान चाहते हैं। उन्नत बीज की उपलब्धता, सिंचाई एवं फसलों की सुरक्षा के लिए वे सरकारों से गंभीर पहल की अपेक्षा रखते हैं। बड़ालालपुर स्थित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के क्षेत्रीय कार्यालय में एफपीओ ने ‘हिन्दुस्तान से चर्चा की। निर्यात की राह में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के बजाय देश के अंदर मिल रही चुनौतियों पर अधिक फोकस किया। जनार्दन सिंह, शार्दूल चौधरी आदि ने कहा कि पूर्वांचल सब्जी उत्पादन का प्रदेश में सबसे बड़ा क्षेत्र है। कोरोना काल में यहां की सब्जियां इंग्लैंड, यूएई, श्रीलंका, बांग्लादेश, ब्राजील और पोलैंड भेजी गई थीं। उस समय सब्जियों की डिमांड को पूरा करने में यहां के किसान सक्षम थे, इसलिए उन्हें आर्थिक लाभ भी मिला। अब किसानों का कृषि उत्पाद के निर्यात से मोह भंग होता जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सरकारी मशीनरियों का सहयोग न मिलना है। एफपीओ के सदस्य किसान सबसे पहले बीज के लिए चिंतित होते हैं। फिर सिंचाई और बाद में फसलों की सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है। चंदौली के एफपीओ जनार्दन सिंह ने कहा कि नील गाय और घड़रोज से फसलों को बचाने के लिए किसानों को दिन-रात एक करना पड़ता है। सरकार से बाड़ या बचाव दूसरे साधनों पर सब्सिडी-अनुदान न मिलने से किसान परेशान रहते हैं। यह सब्जियों का उत्पादन घटने का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। एफपीओ का दर्द है कि सरकारी अनुदान पर संवर्द्धित बीज न मिलने से निजी कंपनियों पर आश्रित होना पड़ता है। इससे पैदावार प्रभावित होने के साथ खर्च भी बढ़ जाता है।
आईआईवीआर दे उन्नत बीज
एफपीओ संचालकों ने कहा कि बनारस में देश का प्रतिष्ठित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) है लेकिन उसका फायदा एफपीओ को नहीं मिल रहा है। उन्होंने जोर दिया कि उद्यान और कृषि विभाग संयुक्त प्रयास कर आईआईवीआर के जरिए उन्नत बीजों को किसानों तक पहुंचाने की व्यवस्था करें। सरकारी केन्द्रों से बीज न मिलने से किसानों को निजी दुकानदारों और कम्पनियों पर निर्भर होना पड़ता है। इससे जेब पर खर्च बढ़ता है। वहीं उच्च गुणवत्ता की गारंटी नहीं रहती। कन्हैया पटेल, विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि यदि देश में सब्जियों का निर्यात बढ़ाना है तो पूर्वांचल के किसानों को सब्सिडी पर बीज उपलब्ध कराना पड़ेगा।
सीधी उड़ान न होने से हानि
कई एफपीओ का कहना था कि बनारस से शारजहां सहित कुछ अन्य देशों के लिए एयर इंडिया का ट्रांस शिपमेंट बांड हुआ है। इस बांड का फायदा है कि बनारस से फ्लाइट सीधे उड़ान भरकर निर्धारित देश तक पहुंचती है। लेकिन एयर इंडिया की ओर से सीधी उड़ान नहीं की जा रही है। एफपीओ ने इस सम्बंध में एयर इंडिया के जिम्मेदार अधिकारियों और एपीडा तक बात पहुंचाई है, लेकिन अब तक उन्हें राहत नहीं मिली है। किसानों का कहना था कि यदि सीधी फ्लाइट से अपनी सब्जियों को दूसरे देशों में पहुंचाते हैं तो उनके खराब होने की आशंका कम होती है। कनेक्टिंग फ्लाइट से समय के साथ पैसा भी अधिक लगता है।
फ्रेट फेयर बढ़ने से निर्यात महंगा
एक एफपीओ के संचालक विशाल श्रीवास्तव ने बताया कि बनारस से दूसरे देशों के लिए माल ढुलाई का एयर फ्रेट फेयर 25 फीसदी तक बढ़ गया है। इससे किसानों की बचत कम होती जा रही है। कार्गो महंगा होने से किसानों का उत्साह भी गिर रहा है। एक एफपीओ ने बताया कि फ्रेट फेयर बढ़ने के संबंध में सम्बंधित विभाग और मंत्रालय तक बात पहुंचाई गई है, लेकिन अभी उस पर कोई आश्वासन नहीं मिला है। कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए फेयर कम होना बहुत जरूरी है।
एक नजर
10 वर्षों में बढ़ा प्रसार
वर्ष 2014 के पहले कृषक उत्पादक संगठनों का उतना प्रसार नहीं था, जितना अब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने एफपीओ के क्षमता संवर्धन और उनके प्रसार पर विशेष ध्यान दिया। अब एफपीओ काफी सशक्त हो गए हैं। उनके शेयर होल्डर (सदस्य किसान) भी काफी बढ़ गए हैं। इससे किसानों को उनकी उपज की लाभकारी कीमत मिल रही है।
156 देशों में सब्जी-फल और फूल का निर्यात
पिछले कुछ वर्षों में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के माध्यम से विदेशों में हरी सब्जियां, फल और फूल काफी मात्रा में निर्यात किए गए हैं। बांग्लादेश, नेपाल, दुबई, यूएई, वियतनाम समेत 156 देशों को निर्यात से किसानों का जीवन स्तर भी सुधरा है। निर्यात की गईं हरि सब्जियों में मिर्च, परवल, बोड़ा, मटर, गाजर, सिंघाड़ा, आलू, अदरक, लहसुन, कच्ची हल्दी, फलों में आम, लीची, करौंदा, केला, शुगरकेन (गन्ने का टुकड़ा) और फूलों में गेंदा तथा गुलाब शामिल हैं।
दूसरे काम में भी हाथ आजमा रहे
कृषक उत्पादक संगठनों ने उपज संग्रहण और मार्केटिंग के साथ अब दूसरे कार्य में भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया है। वाराणसी के कुछ एफपीओ ने वैल्यू एडीशन और आय बढ़ाने के लिए चिली प्रॉसेसिंग प्लांट और ऑयल मिल भी लगाई है।
जिले में हैं 30 संगठन
एफपीओ किसानों की कम्पनी ही है। कम्पनी एक्ट 1956 के तहत फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) की स्थापना हुई थी। इस समय वाराणसी जिले में कुल 30 एफपीओ हैं। इनसे 40000 से 50000 शेयर होल्डर जुड़े हैं। एफपीओ से जुड़े किसान सदस्यों को शेयर होल्डर कहा जाता है।
महिलाओं ने भी रखे कदम
कृषक उत्पादक संगठनों के शेयर होल्डरों में महिलाएं भी शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक लगभग 30 फीसदी महिलाएं या महिला किसान प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इनमें शामिल हैं। इनमें अधिक संख्या उन महिलाओं की भी है, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं। वे अपने समूह कार्यों के साथ यहां भी प्रोडक्ट की पैकेजिंग आदि काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं।
क्लस्टर खेती का है भविष्य
चंदौली के आनंद चौबे ने कहा कि एफपीओ का काम क्लस्टर आधारित होता है। काम को क्लस्टर में बांटकर किसानों को संगठित किया जाता है। इसके लिए किसानों में जागरूकता बढ़ानी पड़ती है। बोले, एफपीओ से जुड़ने वाले किसानों की बढ़ती संख्या साबित करती है कि इस क्षेत्र में मौके हैं। रोजगार है और भविष्य सुनहरा है।
सुझाव...
- पूर्वांचल के निर्यातक किसानों के लिए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बनाने की जरूरत है ताकि उनकी उपज कम समय में पोर्ट तक पहुंच जाएं।
- एफपीओ के अलावा आम किसानों के लिए क्लस्टर आधारित खेती की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे उपज की बिक्री आसान होगी।
- शेयर होल्डर को प्रशिक्षण देने की नियमित व्यवस्था हो तो निर्यातक किसानों की स्थिति बदलेगी।
- करखियांव पैक हाउस में सुविधाएं जल्द शुरू करने की जरूरत है ताकि किसानों को उसका लाभ मिले।
- बिहार की तर्ज पर मखाना की खेती को व्यापक स्तर पर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
शिकायतें...
- पूर्वांचल के किसानों की उपज समुद्री पोर्ट पहुंचाने में 48 से 52 घंटे लगते हैं। इससे लागत बढ़ जाती है।
- खेती का क्लस्टर नहीं होने से किसानों को उपज के भंडारण और मार्केटिंग में बहुत दिक्कतें आती हैं।
-बनारस या प्रदेश के किसी भी हिस्से से कार्गो फ्लाइट नहीं होने से किसानों को इंतजार करना पड़ता है।
-एक्सपोर्ट ओरिएंटेड कृषि उत्पादन पर सरकार का ध्यान नहीं होने से किसानों को दिक्कतें उठानी पड़ती हैं।
-किसानों में एक्सपोर्ट क्वालिटी सब्जियों-फलों के उत्पादन की जानकारी का अभाव है। उन्हें प्रशिक्षण भी नहीं मिलता।
------------------
हमारी भी सुनें
एफपीओ की न केवल देश-प्रदेश में एक्सपोजर विजिट कराई जाए, बल्कि उन्हें दूसरे देशों के अच्छे कार्यों से रूबरू कराया जाए।
- जनार्दन सिंह, चंदौली
------------
बिहार की तर्ज पर मखाना की खेती के प्रोत्साहन के लिए व्यापक कार्ययोजना बननी चाहिए। यह समय की मांग है।
- आनंद चौबे, चंदौली
----------
किसानों में एक्सपोर्ट क्वालिटी के प्रशिक्षण का अभाव है। इसलिए वे तय नहीं कर पाते कि किस तरह सब्जी-फल का उत्पादन करें।
- कन्हैया सिंह, सामनेघाट
---------
कृषि एवं उद्यान विभाग की ओर से संयुक्त नोडल अधिकार तैनात होना चाहिए जो किसानों को प्रशिक्षण, उत्पादन व निर्यात में मदद करे।
-कमलेश पटेल, चिरईगांव
-----------
एफपीओ से किसान पहले की अपेक्षा काफी जागरूक हुए हैं। हालांकि बेहतर बाजार न मिलने से वे खेती का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं।
- अभिषेक सिंह
-----------
कृषि क्षेत्र में युवाओं को प्रेरित करने के लिए नई संभावनाओं से जोड़ने की जरूरत है ताकि वे इसे रोजगार के अवसर के रूप में देखें।
- विशाल श्रीवास्तव, जंसा
-----------
इस बार आम की फसलों को नुकसान हुआ है। मौसम आधारित फसल चक्र में बदलाव से दिक्कत बढ़ गई है।
- शार्दूल विक्रम चौधरी, आराजी लाइन
----------
क्लस्टर आधारित खेती और प्रसंस्करण की व्यवस्था हो ताकि व्यापारी वहां सीधे उपज की खरीदारी कर सकें। इसका किसानों को फायदा होगा।
- डॉ. रामकुमार राय, टिकरी
------------
पूर्वांचल से समुद्री पोर्ट तक पहुंचने में सुगमता के लिए डेडिकेटेड कॉरिडोर बनाने की जरूरत है। ट्रांसपोर्ट सब्सिडी भी मिले।
- शाश्वत पांडेय, भदोही
---
एपीडा की ओर से समय-समय पर प्रशिक्षण, प्रमोशन आदि गतिविधियों के जरिए हर स्तर पर संवर्धन का प्रयास बहुत जरूरी है।
-आनंद प्रकाश, फील्ड अफसर, एपीडा
--------
विमान किराया में कमी को करेंगे बात
एपीडा उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने और निर्यात में आने वाली बाधाएं को दूर करने में किसानों की मदद करती है। बीज उत्पादन और उसका वितरण प्रदेश सरकार के जिम्मे है। इस संबंध में उद्यान विभाग और कृषि विभाग को पत्र भेजकर मदद ली जाएगी। निर्यातक किसानों का एयर फ्रेट फेयर कम करने के लिए विमानन कम्पनियों और एयरपोर्ट अथॉरिटी से अनुरोध करेंगे। एफपीओ और किसानों के दूसरे मुद्दों के संबंध में मुख्यालय में वार्ता की जाएगी।
-सीबी सिंह, क्षेत्रीय उप महाप्रबंधक-एपीडा
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।