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मंगल ध्वनि से सांस्कृतिक संगम को मिला विराम

Varanasi News - वाराणसी में काशी-तमिल संगमम् का तीसरा अध्याय दस दिनों तक चला, जिसमें सांस्कृतिक एकता का जश्न मनाया गया। ओडिशा के मुख्यमंत्री और केंद्रीय राज्य मंत्री ने भाग लिया। इस आयोजन ने भारत की सांस्कृतिक विरासत...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीTue, 25 Feb 2025 03:36 AM
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मंगल ध्वनि से सांस्कृतिक संगम को मिला विराम

वाराणसी, हिटी। भागीरथी किनारे नमो घाट पर सांस्कृतिक एकता को दस दिनों तक बांध रखे काशी-तमिल संगमम् के तीसरे अध्याय ने सोमवार को मंगल ध्वनि के साथ विराम लिया। उत्तर-दक्षिणी संस्कृतियों की साझी विरासत का साक्षी पूरी काशी बनी रही। ओडिशा के मुख्यमत्री मोहन चरण मांझी औऱ केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मामलों के राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने भागीदारी की। केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ सुकांत ने कहा कि काशी और तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए हम विकसित भारत के लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। सरकार के प्रयासों से युवा सशक्तीकरण, कौशल विकास, उद्यमिता और सतत विकास को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत की नींव रखी जा रही है।

ओडिशा के सीएम ने ओडिशा और तमिलनाडु के सांस्कृतिक संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि ओडिसी से भरतनाट्यम तक, गंगा से कावेरी तक, हम सभी एक हैं। आगे कहा कि इस आयोजन से भारतीय संस्कृति की सांझी विरासत को और अधिक बल मिलेगा।

शिक्षा मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव सुनील कुमार बरनवाल ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय के प्रयासों से भारत का शैक्षिक और अनुसंधान तंत्र तेजी से सशक्त हो रहा है। इस अवसर पर बीएचयू के कार्यवाहक कुलपति प्रो. संजय कुमार ने सभी संस्थानों, शिक्षा मंत्रालय, अधिकारियों, कर्मचारियों, कलाकारों और स्वयंसेवकों को इस आयोजन को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया। 10 दिनों में आए करीब 1200 डेलिगेट्स ने काशी के नमो घाट, हनुमान घाट, बाबा विश्वनाथ सहित अन्य मंदिरों में दर्शन पूजन किया। बीएचयू का भ्रमण करते हुए अकादमिक सत्र में भागीदारी की। सभी डेलीगेट्स महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे और वहां से राम लला मंदिर और उनके दर्शन करके अभिभूत नजर आए। अंतिम सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत बनारस की छात्राओं ने स्वागत वंदन से की। तत्पश्चात तमिलनाडु की पारंपरिक नृत्य थप्पत्तम, कुम्मी, कोलाट्टम, अम्मानट्टम एवं ग्रामिया कलाई अट्टम प्रमुख रहे। रंगारंग प्रस्तुतियों ने वाराणसी और तमिल संस्कृति के अद्वितीय मेल का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। यह आयोजन भारत की विविधता में एकता का अद्भुत प्रतीक बन गया है।

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