Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़UP Prayagraj Mahakumbh 300 minor girls performing for feeding families retire at 13 years of age

300 बच्चियां महाकुंभ पहुंची, जिंदगी का बोझ उठाते-उठाते 13 की उम्र में हो जाती हैं 'रिटायर'

  • सड़क किनारे आठ फीट की ऊंचाई पर बंधी 15 फीट लंबी रस्सी पर छोटी-छोटी बच्चियां खतरनाक करतब दिखा रही हैं। जिस उम्र में आम घरों के बच्चे खेलकूद और पढ़ने-लिखने में समय गुजारते हैं, उस उम्र में यह बच्चियां अपने परिवार के खर्च का बोझ अपने कंधों पर उठा रही हैं।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, ईश्वर शरण शुक्ल, प्रयागराजFri, 24 Jan 2025 11:22 AM
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300 बच्चियां महाकुंभ पहुंची, जिंदगी का बोझ उठाते-उठाते 13 की उम्र में हो जाती हैं 'रिटायर'

आस्था के इस महाकुम्भ में विविधता के रंग बिखरे हैं। कोई पुण्य की डुबकी लगाकर जीवन को धन्य बना रहा है तो कोई पेट के खातिर जानलेवा कतरब दिखा रहा है। मेले में इस समय जगह-जगह सड़क किनारे आठ फीट की ऊंचाई पर बंधी 15 फीट लंबी रस्सी पर छोटी-छोटी बच्चियां खतरनाक करतब दिखा रही हैं। जिस उम्र में आम घरों के बच्चे खेलकूद और पढ़ने-लिखने में समय गुजारते हैं, उस उम्र में यह बच्चियां अपने परिवार के खर्च का बोझ अपने कंधों पर उठा रही हैं। यह न तो सर्कस की बच्चियां हैं न किसी कला मंच की।

अपने हैरतअंगेज करतब दिखाने के बदले ये किसी से कुछ मांगती भी नहीं हैं, किसी को इनका खेल पसंद आया तो इनकी थाली में पांच-दस रुपये डाल देता है नहीं तो बहुतेरे आगे बढ़ जाते हैं। यह बच्चियां पांच साल की उम्र से करतब दिखाना शुरू करती हैं और 13 साल की होते-होते वजन बढ़ने के कारण एक तरह से रिटायर हो जाती हैं।

रस्सी पर चलने की यह कला इन्हें किसी स्कूल में नहीं, बल्कि मां सिखाती हैं। काली सड़क पर खेल दिखा रही छह साल की सुनीता ने बताया कि तीन साल की थी तब मम्मी ने घर पर रस्सी पर चलना सिखाया। कई बार गिरने के बाद छह माह में रस्सी पर चलना सीख गई और पहली बार इंदौर में खेल दिखाया।

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छत्तीसगढ़ की बच्चियां दिखा रहीं करतब

महाकुम्भ में लगभग 300 बच्चियां छत्तीसगढ़ से यह खतरनाक करतब दिखाने आई हैं। खेल दिखाने के लिए बच्चियों के साथ उनके माता-पिता साइकिल पर अपने साथ स्पीकर, रस्सी, लोहे की रॉड आदि साथ में लेकर चलते हैं। यह ज्यादातर नागवासुकि मंदिर के पास झुग्गी में रहती हैं। सभी बच्चियां छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ़ और मुंगेली से आई हैं। यह खेल दिखाना इनका पुश्तैनी काम है।

लड़के बहुत कम सीखते हैं खेल

खेल दिखा रही सुनीता की मां गायत्री ने बताया कि लड़कियां खेल को जल्दी सीख लेती हैं। लड़के जल्दी नहीं सीख पाते क्योंकि वह अनुशासित नहीं रहते। रस्सी पर हाथ में बांस से संतुलन बनाना सबसे बड़ी कला है। इस खेल को 16 तरीके से दिखाया जाता है। गायत्री ने बताया कि यदि कोई लड़का करतब दिखाता है तो उसे लड़की का किरदार रखना पड़ता है।

खेल के बाद शुरू होती है पढ़ाई

सेक्टर-16 में खेल दिखा रहीं शीलू के पिता शिव ने बताया कि 13 साल के बाद ही > बच्चियों को पढ़ने का मौका मिलता है। क्योंकि चार साल से ही खेल दिखाने लगती हैं। ज्यादा से ज्यादा 10वीं व 12वीं तक पढ़ाया जाता है उसके बाद शादी कर दी जाती है।

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