बोले उन्नाव : पूरी दुनिया में पहचान, शहर में गुमनाम
Unnao News - उन्नाव में हाथों से बने जूते, बेल्ट, पर्स और बैग का व्यापार संकट में है। स्थानीय कारोबारी प्रशासनिक उदासीनता और लॉकडाउन के कारण परेशान हैं। कई परिवार अपने व्यवसाय छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। जूते की...
उन्नाव में हाथों से बने जूते, बेल्ट, पर्स और बैग की धमक चीन से लेकर यूरोप तक सुनाई देती है। यहां की आधा दर्जन से अधिक बड़ी कंपनियां वैश्विक लेदर बाजार में अपनी पहचान बना चुकी हैं, लेकिन इन कंपनियों की नींव रखने वाले स्थानीय कारोबारी आज प्रशासनिक उदासीनता के शिकार हो रहे हैं। कम लागत में उम्दा क्वालिटी के जूते-चप्पल बनाना जिनका हुनर था, वे अब अपनी रोजी-रोटी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। शहर की फुटपाथी दुकानों पर वर्षों से लेदर कारीगरी का हुनर संजोए बैठे सैकड़ों परिवारों पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से लेदर कारोबारियों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एक सुर में कहा कि जब प्रशासन ने दुकान लगाने की अनुमति दी थी, तो अब उन्हें हटाया क्यों जा रहा है?
हिंदी फिल्म श्री 420 के चर्चित गाने 'मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी' के संदर्भ अब दक्ष हाथों ने बदल दिए हैं। अब दिल और दक्षता दोनों हिन्दुस्तानी हैं। विदेशों की सेनाएं भी उन्नाव के जूते पहनकर रण में उतरती हैं। ये आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल और कौशल विकास से संभव हो सका है। लेकिन, दूसरी तरफ यहां जूते आदि का व्यापार करने वाले लोग परेशान हैं। स्टेशन रोड, आईबीपी चौराहा, आवास विकास और मलहला रोड पर जूते की कई दुकानें रोजाना लगती हैं। करीब तीन सौ व्यवसायी ऐसे हैं, जो रोजाना सुबह अपनी दुकान सजाते हैं और रात को हटा लेते हैं। इनके सामने मुसीबतें ‘पहाड़ सी हैं। मो. इंतियाज कहते हैं कि पूरा परिवार घर में ही जूता बनाता था। छह लोग मिलकर रोज करीब 80 जोड़ी जूते तैयार करते थे। इससे अच्छी आमदनी हो जाती थी। इनकी बिक्री स्टेशन रोड पर बनी दुकान में करते थे, लेकिन अब पूरे परिवार का रोजगार छिन गया है। बिक्री में कमी आई है। दुकान का खर्च निकालना मुश्किल होता है। इसके अलावा प्रशासनिक चाबुक अलग से चलता है। अस्थायी दुकान होने के कारण हर वक्त प्रशासन हटाने पर आमादा रहा। इसलिए अब खुद का काम छोड़कर एक रेडिमेड कपड़े के शोरूम में 12 हजार रुपये प्रति महीने में नौकरी कर रहे हैं।
वह कहते हैं कि अब तो भाई-बहन भी दूसरे काम-धंधे में लग गए हैं। यह अकेले इंतियाज परिवार की कहानी नहीं है, शहर में हजारों परिवार शू इंडस्ट्री या व्यवसाय छोड़कर रोजगार के दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं। आलम जैसे तमाम कारोबारियों का कहना है कि काम 55 से 60 फीसदी कम हो गया है। हाल यह है कि जूते की दुकानों में कंपटीशन की वजह से हजारों कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर परिवार का पेट पालने के लिए या तो सब्जी बेच रहे या फिर ई-रिक्शा चला रहे हैं। अविचल का कहना था कि वेंडिंग जोन के नाम पर हमारा शोषण किया जाता है। सुबह दुकान खोलने से बंद होने तक नोटिस का भय रहता है। कई बार अधिकारी तो अभद्र व्यवहार करने पर उतारू हो जाते हैं।
अब सिर्फ चार महीने का ही बचा धंधा
सदर चौकी के निकट जूता कारोबारी हाजी असलम कहते हैं कि पहले सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन ने कारोबार को बड़ा नुकसान पहुंचाया। कई दुकानें बंद हो गईं। लोगों ने व्यापार छोड़ दिए। प्रशासन की मदद भी नाकाफी रही। छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। घर-घर में चलने वाले छोटे और मझौले कारखाने भी बंद हो गए। 12 माह चलने वाला कारोबार सिमटकर केवल चार महीने का रह गया है।
कारोबारी को सिर्फ पांच और सरकार को 24 रुपये मिल रहे
घर पर जूते बनाकर नगर के अलग-अलग इलाकों में फूटपाथ पर दुकान सजाकर बिक्री करने वाले शिवाय कहते हैं कि 12 फीसदी जीएसटी ने जूता कारोबारियों को सड़क पर ला दिया है। हाल यह है कि एक जोड़ी जूते पर कारोबारी को पांच और सरकार को 24 रुपये मिल रहे हैं। सरकार को इन नीतियां पर कुछ विचार करना चाहिए। सस्ते लोन की भी कोई व्यवस्था सरकार ने नहीं की है। इससे छोटे कारोबारी बाजार से बाहर हो गए हैं।
हजारों करोड़ के ऑर्डर कैंसिल हुए : लॉकडाउन ने चमड़ा उद्योग को बड़ा झटका दिया है। पूर्व में विदेशों से मिले हजारों करोड़ के आर्डर निरस्त होने से उन्नाव का उद्योग चरमरा गया था। निरस्त आर्डर दोबारा मिलेंगे या नहीं, कब तक मिलेंगे, टेनरियों में दोबारा काम कब तक पटरी पर आएगा इस पर भी अनिश्चितता बनी रही। 2022 के बाद पटरी पर लौटा चमड़ा व्यवसाय काफी हद तक संवर गया है।
पहले वेंडिंग जोन बनाया अब कहते यहां से हटो
असल में, शहर के कचहरी ब्रिज के नीचे स्टेशन जाने वाले मार्ग पर शू- मार्केट बनी है। यहां पर दुकानें अलॉट कर पालिका ने वेंडिंग जोन भी बनाया था। हालांकि, यहां मूलभूत सुविधाओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जलभराव से जूझने वाले व्यवसायी अजीज आ चुके हैं। चौपट व्यवसाय के बीच वह कहते दिखे कि पहले तो प्रशासन ने जगह दी, अब कहते हैं कि जाम की समस्या हमसे ही बन रही है। दुकानें पीछे करो वरना कड़ी कार्रवाई की जाएगी। दुकानें लगाने के लिए दूसरा ठिकाना भी नहीं बताया जाता है। इस कारण चिंतिंत रहते हैं।
बाजार में सिंथेटिक चमड़े की बढ़ रही मांग
चमड़ा व्यवसाय वालों को नए दौर में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। व्यापारी महूफ के अनुसार, सिंथेटिक चमड़े की बढ़ती मांग और इसकी सस्ती कीमतें असली चमड़े की मांग को कम कर रही हैं। इसके अलावा चमड़ा उत्पादन में बढ़ती लागत ने भी छोटे चमड़ा उत्पादकों पर असर डाला है। सिंथेटिक चमड़ा सस्ता और टिकाऊ होने के कारण इसकी मांग बढ़ रही है।
सुझाव
1. दुकानदार सभी टैक्स अदा करते हैं। इसलिए पालिका से मूलभूत सुविधाएं जैसे पानी, बिजली व सफाई आदि मुहैया कराई जानी चाहिए।
2. अतिक्रमण हटाए जाने से पहले व्यापारियों को सूचित किया जाना चाहिए ताकि कारोबारी अपनी अस्थायी दुकानें हटा सकें।
3. प्रशासन द्वारा कौशल विकास मिशन के तहत जूता और चप्पल कारोबारियों को प्रशिक्षण मिलना चाहिए।
4. कच्ची खालों की कमी के चलते टेनरियां सिर्फ दस फीसदी क्षमता पर ही काम कर रही हैं। इस समस्या पर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
5. आयात का बिल घटाया जाए। कच्ची खालों के चमड़े के निर्यात पर रोक लगनी चाहिए। तभी जूते और चप्पल के कारोबार में रोजगार के मौके बढ़ सकते हैं।
शिकायतें
1. कचहरी आरओबी के नीचे वेंडिंग जोन बनाए जाने के बावजूद नगर पालिका की ओर से मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा रही हैं।
2. नालियां चोक होने से बारिश के दौरान पुल के नीचे भीषण जलभराव होने से दुकानदारी चौपट हो जाती है। इस कारण काफी नुकसान होता है।
3. कब्जा हटाओ अभियान के दौरान अधिकारी और कर्मियों का बर्ताव ठीक नहीं रहता है। इस कारण कभी-कभार नोकझोंक की स्थिति उत्पन्न होती है।
4. अस्थायी कब्जे को हर समय प्रशासन हटाने पर आमादा रहता है। निर्धारित स्थल अलॉट किया जाए।
5. आमदनी ठीक न होने के कारण लोग कारोबार छोड़कर कहीं नौकरी या अन्य दूसरे धंधे से जुड़ रहे हैं। अब इस धंधे में सिर्फ नुकसान ही बचा है।
बोले लेदर कारोबारी
पहले सब कुछ ठीक चल रहा था। लॉकडाउन के बाद व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया। छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई है। - नसीम
कच्चे चमड़े के दाम बढ़ने से छोटे और मझोले कारखाने रोज बंद हो गए हैं। अब केवल सालभर में चार महीने का ही धंधा बचा है। - कामरान
कचहरी आरओबी के नीचे वेंडिंग जोन बनाकर दुकानों का अलॉटमेंट किया गया था। जलभराव के कारण ग्राहक कम हो जाते हैं। - नफीस
वेंडिंग जोन बनाए जाने के बाद भी पालिका ने मूलभूत सुविधाएं नहीं दीं। जलभराव से लेकर जाम की समस्या बनी रहती है। - समीर
जीएसटी ने जूता कारोबारियों को सड़क पर खड़ा कर दिया है। जीएसटी कम होने पर ही व्यापार में रौनक लौट सकती है। -वसीम
सरकार को नई योजनाएं जारी कर चमड़ा कारोबारियों को राहत देनी चाहिए। बैंक से कम ब्याज पर लोन की सुविधा मिले। -आयुष
सरकार-प्रशासन की ओर से चमड़ा कारोबारियों को सहूलियत नहीं दी जा रही है। छोटे कारोबारी इस धंधे से दूर हो रहे हैं। - हुसैन
बोले जिम्मेदार
मार्केट को संवारने के लिए बनाई योजनाएं
शहर में स्टेशन रोड स्थित शू मार्केट के लिए नगर पालिका ने कई योजनाएं बनाई हैं। हाल ही में प्रकाश व्यवस्था दुरुस्त कराई गई है। किसी भी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। यदि किसी को दिक्कत है तो वह निसंकोच बताए, तत्काल उसका समाधान किया जाएगा।
- एसके गौतम, ईओ
पांच लाख तक का लोन सब्सिडी पर उपलब्ध
वित्तीय जरूरतों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। इसमें एक जिला-एक उत्पाद योजना भी शामिल है। फैक्ट्रियों में जॉब वर्क से भी युवा आगे बढ़ सकते हैं। मुख्यमंत्री युवा योजना के तहत अब पांच लाख रुपये तक लोन दस प्रतिशत सब्सिडी पर मिलेगा। -डॉ. रियाजुद्दीन, कार्यवाहक उपायुक्त उद्योग
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