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बोले उन्नाव : पुरानी किताबों से कैसे जीतें आज की लड़ाई

Unnao News - उन्नाव में छात्रों को पुस्तकालयों की कमी और सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों ने बताया कि पुराने पुस्तकालयों में नई पुस्तकें नहीं हैं और स्टाफ...

Newswrap हिन्दुस्तान, उन्नावMon, 24 Feb 2025 12:13 AM
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बोले उन्नाव : पुरानी किताबों से कैसे जीतें आज की लड़ाई

बाजारीकरण ने जब शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश किया तो लगा कि मध्यम और गरीब तबके के हम प्रतियोगी छात्रों की डगर बेहद कठिन हो जाएगी, लेकिन पुस्तकालयों ने हमारा साथ न छोड़ा। इन केंद्रों ने जो भूमिका स्वतंत्रता के पहले निभाई वो आज भी कायम है। इन लाइब्रेरियों ने न जाने कितने एकलव्यों को तैयार कर दिया। लेकिन, व्यवस्था में अब कतई सुधार की जरूरत आन पड़ी है। जिले के पुस्तकालयों में समय बिताने वाले छात्रों को करेंट अफेयर्स जैसी जरूरी पुस्तकें ढूंढे नहीं मिल रही हैं...शंका है कि कहीं यह प्रथा कमजोर न पड़ जाए, जो अब तक हमारी ताकत बनी हुई थी। प्रतियोगी छात्र-छात्राओं ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि यदि पुस्तकालय के साथ ही हॉस्टल की सुविधा मिल जाए तो और अच्छे से पढ़ाई हो पाएगी।

कलम की धरती उन्नाव में आधुनिक 'पुस्तकालय' तक नहीं हैं। दशकों पुराने जो पुस्तकालय बने हैं, वहां स्टाफ की कमी है और जर्जर इमारतें हैं। हाईटेक संसाधन भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते हैं। कचहरी के निकट बने राजकीय पुस्तकालय में बच्चे पढ़ने आते हैं, लेकिन उन्हें सुविधाएं नहीं मिलती हैं। हजारों की संख्या में सिर्फ 50 सीटों पर ही यहां अलॉटमेंट किया गया है। यानी 50 बच्चे यहां राजकीय पुस्तकालय की सुविधा का लाभ लेते हैं। बाकी अपनी बारी आने का इंतजार करते हैं। वह सालभर निजी पुस्तकालय में फीस देकर प्रतियोगिता की तैयारी करते हैं। फीस अदा करने में असमर्थ छात्रों के लिए महात्मा गांधी पुस्तकालय सहायक बनता है। ताज्जुब देखिए कि वहां भी एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों समस्याएं हैं, जो जिम्मेदारों की अनदेखी की वजह से हैं। 1966 में बनी इमारत का एक- एक कोना टूटने की कगार पर है। बारिश के दिनों में टपकती छत के नीचे बच्चे अध्ययन करने को मजबूर हैं।

शासन से हर वर्ष सिर्फ 12 हजार की मदद

महात्मा गांधी पुस्तकालय के संचालन में अहम भूमिका निभाने वाले शरद मिश्रा कहते हैं कि कलम की धरा में प्रतिभागी बच्चों के लिए एक अच्छा सा पुस्तकालय नहीं है। महात्मा गांधी पुस्तकालय को चलाना आसान नहीं रहा। यहां सरकार से सलाना 12 हजार रुपये की मदद मिलती है, जबकि पालिका से 35 हजार। इतने कम बजट में सालभर संचालन टेढ़ी खीर रहता है। अध्ययनरत बच्चों से रोजाना के हिसाब से जो शुल्क लिया जाता है, वह वाई-फाई और किताब आदि में ही खर्च हो जाता है।

घर से शहर तक हर कदम पर राह मुश्किल

महात्मा गांधी पुस्तकालय में पढ़ने वाले बच्चों ने अपनी समस्याएं सुनाईं तो आंखों में आंसू छलक आए। बीघापुर के पाटन से शहर आकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाली रिंकी कहती हैं कि हमारी जिंदगी इतनी आसान नहीं है। पहले तो घर वालों की अनुमति, फिर शहर पहुंचने पर किराये का फेर सपनों की उड़ान में बाधा बन रहा है। लाइब्रेरी आने के बाद यहां भी तमाम दिक्कतें हैं। शहर में एक मात्र सहारा इसी पुस्तकालय का है, लेकिन यहां भी शौचालय से लेकर बिजली आदि की समस्या बनी रहती है। बदलते दौर के हिसाब से नई पुस्तकें भी नहीं मिलती हैं। पीएचडी की छात्रा निष्ठा रोजाना दही चौकी से शहर के बड़े चौराहे पर बने पुस्तकालय में अध्ययन करने आती हैं। उनका कहना है कि 21वीं सदी के इस हाईटेक दौर में नई लाइब्रेरी नगर को न मिल सकी, यह कई सवाल खड़े करती है।

मनमाना किराया वसूल रहे घर स्वामी

दस हजार से अधिक छात्र-छत्राएं 15-20 किलोमीटर का सफर तय कर लाइब्रेरी की तलाश में शहर पहुंचते हैं। हॉस्टल की सुविधा न होने के कारण घर स्वामी मनमाना किराया भी वसूलते हैं। वह कहते हैं कि इस पीड़ा की शिकायत करें तो किससे। छात्राओं के साथ होने वाले दुव्यवहार के लिए पिंक बॉक्स की मांग होती है।

लाइब्रेरी के बाहर सादी वर्दी में हो पुलिस की तैनाती

छात्र-छात्राओं का कहना है कि शहर के बड़े चौराहे स्थित पन्नालाल पार्क के निकट प्राइवेट और संस्था द्वारा लाइब्रेरी का संचालन किया जाता है। यहां दो दर्जन से अधिक सेंटर और लाइब्रेरी बनी हैं। इस वजह से अराजकतत्वों का जमावड़ा भी बना रहता है। इससे पढ़ाई भी प्रभावित होती है। सुनैना और आकांक्षा ने बताया कि कोचिंग सेंटर के आसपास दरोगा से लेकर सिपाही तक समय-समय पर गश्त करें ताकि शोहदे और अराजकतत्व सक्रिय न होने पाएं। उच्चाधिकारियों को पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था परखनी चाहिए।

सुझाव

1. एक हाईटेक ई-लाइब्रेरी बनानी चाहिए ताकि पढ़ाई करने में दिक्कत न हो।

2. निजी पुस्तकालयों का किराया एक समान होना चाहिए ताकि मनमानी पर रोक लग सके।

3. जिला प्रशासन की ओर से प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यास के लिए निशुल्क व्यवस्था होनी चाहिए

4. बैठने के लिए सीटों की संख्या बढ़ाई जाए, जिससे छात्र छात्राओं को दिक्कत न हो।

5. किसी अच्छी कंपनी का इंटरनेट लगवाया जाए, जिसका सर्वर डाउन न हो।

6. छात्राओं के लिए अलग शौचालय बने और साफ-सफाई का ख्याल रखा जाए।

शिकायतें

1. शहर में जहां-जहां निजी या सरकारी लाइब्रेरी बनी हैं, वहां गंदगी का अंबार रहता है।

2. दशकों पुरानी लाइब्रेरी में नई पुस्तकें नहीं हैं। जर्जर हालात में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।

3. प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मार्गदर्शन की सुविधा नहीं हैं। इस कारण कई छात्र भविष्य को लेकर कदम नहीं उठा पाते हैं।

4. सरकारी लाइब्रेरी में वाई-फाई नहीं चलता है। सीट की अलॉट मेंट संख्या बहुत कम है।

5. पुस्तकालयों में शौचालय और पेयजल की समस्या से रोजाना दो-चार होना पड़ता है।

6. पंखा, कूलर, एसी काफी पुराने होने से गर्मियों में पसीने से तरबतर होना पड़ता है।

बोले छात्र

अधिकतर पुस्तकालय संसाधनों के अभाव में बंदी की कगार पर पहुंच गए हैं। इस कारण छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। - शैलेंद्र

ज्ञान बढ़ाने के लिए बेहतर पुस्तकालय अहम भूमिका अदा करते हैं। पुस्तकालयों में उत्कृष्ट व्यवस्था न होने से दिक्कत होती है। - अंकित

पुस्तकों के अध्ययन के लिए धन खर्च कर बाहरी लाइब्रेरी का सहारा लेना पड़ता है। दूर से आने पर किराया भी लगता है। - अमन

पन्नालाल के पास बनी लाइब्रेरी में पानी टपकता है। मगर, प्रशासन द्वारा पुस्तकालय की मरम्मत नहीं कराई जा रही है। - आयुष बाजपेई

पुस्तकालय जाने के दौरान कई बार छात्राओं को शोहदों की छींटाकशी का सामना करना पड़ता है। इन पर सख्ती बरती जाए। - अभिषेक

बोले जिम्मेदार

नवीनीकरण के लिए प्रस्ताव भेजेंगे

जिले में वैसे तो कई लाइब्रेरी ग्राम स्तर पर बनी हैं। जहां समस्याएं हैं, वहां सुधार करवाया जाएगा। महात्मा गांधी पुस्तकालय के नवीनीकरण और अत्याधुनिक सुविधाएं बढ़ाने के लिए योजना बनाकर प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। - प्रेम प्रकाश मीणा, सीडीओ- उन्नाव,

पालिका ने शासन को प्रस्ताव भेजे

शहर में लाइब्रेरी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए नगर पालिका ने एक प्रस्ताव एक माह पहले शासन को भेजा था। हमने पहले ही शहर में आधुनिक लाइब्रेरी और प्रतिभागियों के लिए हॉस्टल तैयार करने की योजना बनाई है। गदनखेड़ा बाईपास के निकट सरकारी जमीन की तलाश की जा रही है। गर्ल्स हॉस्टल व हाईटेक लाइब्रेरी के लिए प्रस्ताव भी शासन को भेजा गया है। -एस के गौतम, ईओ

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