Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़This district is called Choti Kashi, these Shiva temples have mythological importance

महाशिवरात्रि: इस जिले को कहते हैं छोटी काशी, भगवान शिव के हैं 150 मन्दिर

  • बलरामपुर को छोटा काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव के 150 से अधिक मन्दिर हैं। इनमें से कई मन्दिरों का पौराणिक महत्व है।

Gyan Prakash हिन्दुस्तान, बलरामपुर। अविनाश त्रिपाठीTue, 25 Feb 2025 04:51 PM
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महाशिवरात्रि: इस जिले को कहते हैं छोटी काशी, भगवान शिव के हैं 150 मन्दिर

बलरामपुर को छोटा काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां के शिव मन्दिरों का पौराणिक महत्व है। महाशिवरात्रि में इन मन्दिरों का महात्म्य और बढ़ जाता है। इस दिन श्रद्धालु शिवलिंग पर जलाभिषेक व भांग-धतूरा अर्पित कर विधि-विधान से शिव की आराधना करते हैं। सदर ब्लाक के गिधरैया गांव स्थित रेणुकानाथ मंदिर का महात्म्य पांडवों के इतिहास से जुड़ा है। झारखंडी मंदिर का इतिहास अंग्रेजों के जमाने में रेल पटरी बिछाने की दौरान हुई घटना पर आधारित है। इसी तरह पचपेड़वा के शिवगढ़ी धाम, उतरौला के दुखहरण नाथ व राजापुर भरिया जंगल स्थित कल्पेश्वर नाथ मंदिर समेत अन्य शिवालयों का भी अपना अलग महत्व है।

महाभारत काल से जुड़ा है रेणुकानाथ मंदिर का इतिहास

सदर ब्लाक के गिधरैंया गांव स्थित रेणुकानाथ मंदिर का महात्म्य पांडवों के इतिहास से जुड़ा है। पुजारी बजरंगी गिरि के अनुसार यहां के शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। उस समय इस मंदिर को शत्रु पर विजय के प्रतीक के रूप में माना गया था। मंदिर के पुजारी विश्वनाथ गिरि के अनुसार द्वापर युग के अंत में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने कीचक का वध किया, तो कौरवों को पता चला कि पांडवों ने श्रावस्ती के महाराज विराट के यहां शरण ले रखी है। महाभारत युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया। तब इस मंदिर का नाम ‘रणहुआ’ मंदिर था। जो कालांतर में रेणुकानाथ मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। करीब पांच सौ वर्ष पूर्व अंग्रेज शासनकाल में खोदाई के दौरान यह शिवलिंग निकला था। ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मंदिर बनवाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

अंग्रेजों के जमाने में बना था झारखंडी मंदिर

नगर स्थित झारखंडी शिव मंदिर अपने अलौकिक महत्व व इतिहास को समेटे है। पुजारी सोनू गिरि के मुताबिक अंग्रेजों के जमाने में रेल पटरी बिछाई जा रही थी। सफाई के दौरान झाड़ियों के बीच में शिवलिंग मिला। स्थानीय लोग शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने लगे। राज परिवार ने यहां मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। अंग्रेजों से वार्ता के बाद रेल लाइन करीब 50 मीटर दूर बिछाई गई। रियासत ने मंदिर बनवाकर प्राण-प्रतिष्ठा कराई। झाड़ियों के बीच से निकलने के कारण इस मंदिर का नाम झारखंडी मंदिर पड़ा। इसी के नाम पर रेलवे स्टेशन का भी नामकरण हुआ।

आरी चलते ही शिवलिंग से निकली थी खून की धार

उतरौला। नगर स्थित दुखहरण नाथ मंदिर के महंत मयंक गिरि बताते हैं कि पहले इस स्थान पर जंगल था। यहां बलरामपुर से जयकरन गिरि संत आए थे, जिन्हें रात में एक स्वप्न आया कि टीले और जंगल के नीचे एक शिवलिंग है। जब यह बात राजा तक पहुंची तो उन्होंने संत से बात करके यथास्थान खुदाई शुरू कराई, तो एक भव्य भूरे रंग का शिवलिंग निकला। यह बीचोबीच से मुड़ा हुआ था। उतरौला के नवाब नेवाद खान ने हाथियों से शिवलिंग को खिंचवाकर राप्ती नदी में फेंकवा दिया, लेकिन अगली सुबह फिर शिवलिंग अपने स्थान पर मिला। पुजारी पिंटू गिरि बताते हैं कि नवाब ने बादशाह औरंगजेब के कहने पर आरी से शिवलिंग को बीचोबीच से कटवाना चाहा। आरी की पहली धार चलते ही शिवलिंग से खून की धार बहने लगी। इस पर नवाब ने उसी स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करवाया, जो वर्ष 1928 में बनकर तैयार हुआ। यह शिवलिंग उत्तर पूर्व के कोने हिमालय की तरफ झुका हुआ है।

अद्भुत महात्म्य को समेटे है शिवगढ़ धाम

पचपेड़वा का शिवगढ़ धाम अद्भुत महात्म्य को समेटे हुए हैं। बताया जाता है कि एक खेत में करीब डेढ़ सौ साल पहले पाले आरख नामक किसान गोड़ाई करने गए थे। जैसे ही उन्होंने खेत में फावड़ा चलाया, एक पत्थर से उनका फावड़ा टकरा गया और खून की धार निकलने लगी। वह डरकर घर पर भाग गया। रात में उसे स्वप्न आया कि तुम उसी स्थान पर शिव मंदिर बनाओ। उस स्थान की और खोदाई करो। उसमें बहुत सा धन है, जिसका उपयोग मंदिर बनाने में करो। आरख ने खोदाई तो नहीं की, लेकिन मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर करवा दिया। धीरे-धीरे इस धाम पर लोगों की आस्था बढ़ने लगी। महाशिवरात्रि से लेकर सावन के महीने तक भारी भीड़ होती है।

डेढ़ सौ शिवालयों वाले नगर में 75 वर्षों से निकल रही है शिव बारात

बलरामपुर नगर में छोटे-बड़े मिलाकर करीब डेढ़ सौ से अधिक शिव मंदिर हैं। इन्हीं शिवालयों के कारण बलरामपुर को छोटी काशी भी कहा जाता है। इसके पीछे एक मान्यता है कि एक बार महाराज बलरामपुर काशी दर्शन करने के लिए गए थे। वहां पर उन्हें कुछ असुविधा हुई। इसके बाद उन्होंने बलरामपुर में ही छोटी काशी बसाने का प्रण ले लिया। शिव नाट्य कला मंडल बलरामपुर के महामंत्री डॉक्टर तुलसीस दुबे बताते हैं कि उसी के बाद महाराज बलरामपुर ने नगर व उसके आसपास के इलाकों में तमाम शिव मंदिरों और शिवालयों का निर्माण कराया। इसके साथ-साथ उन्होंने काशी और अयोध्या के तर्ज पर तमाम सरोवरों को भी बनवाया। नगर क्षेत्र में 111 और उसके आसपास क्षेत्र को मिलाकर करीब 150 शिव मंदिर और शिवालय हैं। जो भक्तों के अगाध श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। इसमें कई शिव मंदिर पौराणिक भी हैं, जिनके अलग महत्व है। नगर क्षेत्र में हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर पिछले 75 वर्षों से शिव नाट्य कला मंडल बलरामपुर की ओर से भगवान शिव के बारात की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस बार भी महाशिवरात्रि पर यह शोभायात्रा निकाली जाएगी। शोभा यात्रा में इस बार महाकुंभ को ध्यान में रखते हुए विशेष झांकियां को तैयार किया गया है।

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