आजम खान और अब्दुल्ला के बूथ पर भी हारी सपा, जानें रामपुर में बीजेपी ने कैसे खत्म की बादशाहत?
मुस्लिम बाहुल्य यूपी की रामपुर विधानसभा सीट पर पहली बार कमल खिला है। इससे बीते तीन दशकों से रामपुर पर बरकरार आजम खान के कब्जा खत्म ही नहीं हुआ है बल्कि उनका सियासी वजूद भी संकट में है।
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मुस्लिम बाहुल्य यूपी की रामपुर विधानसभा सीट पर पहली बार कमल खिला है। इससे बीते तीन दशकों से रामपुर पर बरकरार आजम खान के कब्जा खत्म ही नहीं हुआ है बल्कि उनका सियासी वजूद भी सबसे बड़े संकट के दौर में पहुंच गया है। रामपुर उपचुनाव की सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि किसी दौरान सपा में नंबर टू की हैसियत रखने वाले कद्दावर नेता आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम अपना बूथ तक नहीं बचा पाए हैं।
यही वजह रही कि भाजपा ने रामपुर विधानसभा उपचुनाव में मो. आजम खां के गढ़ में उन्हें पटखनी दे दी है। यहां से आकाश सक्सेना ने 34,136 वोटों से सपा उम्मीदवार आसिम राजा को परास्त कर पहली बार रामपुर में भाजपा का परचम लहरा दिया। रामपुर विधानसभा उपचुनाव मो. आजम खां के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था। उपचुनाव में उनके कहने पर मो. आसिम राजा को टिकट दिया गया। आजम खां ने प्रचार की कमान स्वयं संभाल रखी थी। उपचुनाव में आकाश सक्सेना ने सपा उम्मीदवार को 34 हजार वोटों से पराजित किया है।
यह विधानसभा सीट छह बार कांग्रेस के खाते में रही और सर्वाधिक सात बार समाजवादी पार्टी का इस सीट पर कब्जा रहा। आजम कुल 10 बार इस सीट से विधायक रहे। एक दफा उनकी पत्नी भी विधायक रहीं। इसके साथ ही वह सांसद भी बने। पहली बार भाजपा ने इस सीट पर अपना खाता खोला है। भाजपा के लिए रामपुर की सीट हमेशा से चुनौती रही है। शहर में 65 फीसदी मुस्लिम जबकि 35 फीसदी हिन्दू वोटर हैं। इस लिहाज से भाजपा के लिए अब तक यह किला भेदना अंसभव दिखता था, लेकिन इस दफा भाजपा ने जिस तरह की रणनीति अपनाई उसके लिहाज से यह रणनीति कामयाब ही नहीं हुई बल्कि इस नीति ने पथरीली जमीन पर कमल खिला दिया। भाजपा ने इस दफा कई नए रिकार्ड कायम किए। भाजपा का वोट बैंक शहर के गेटों के भीतर भी बढ़ा। सिविल लाइंस और ग्रामीण इलाकों में भी भाजपा का वोट बैंक बढ़ा और सपा का वोट बैंक धाराशायी हो गया, जहां सपा हजारों की लीड लेकर आगे चलती थी। हमेशा से यह माना जाता था कि इस सीट पर कम मतदान की स्थिति में ही भाजपा को फायदा मिल सकता है। इस चुनाव में ऐसा देखने को भी मिला। इस बार अब तक का सबसे कम 33.94 प्रतिशत मतदान हुआ और भाजपा के हाथ बाजी लग गई।
आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां पहली बार विधानसभा का चुनाव 1951 में हुआ था जब कांग्रेस जीती जबकि 1957 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी ने बाजी मारी। इसके बाद 1962 में कांग्रेस, 1967 में स्वतंत्र पार्टी, 1980 में जनता पार्टी (एस) 1985 में लोकदल, 89 और 91 में जनता पार्टी, 93 में सपा और 96 में कांग्रेस जीती। उसके बाद 2002 से 2022 के बीच हुए पांच चुनावों में सपा विजयी रही।
'अब्दुल' ट्रेंड किए रहा और लग गई सपा के वोट बैंक में सेंध
इस बार के चुनाव में अब्दुल ट्रेंड किए रहा। आजम हों या फिर भाजपा के तमाम मंत्री, सबकी जुबां पर अब्दुल ही रहा। यह अब्दुल मुस्लिमों के प्रतीक के तौर पर प्रयोग किया गया था। अब जब चुनाव परिणाम सामने आए तो आजम के बेटे अब्दुल्ला अपने बूथ पर भी सपा को नहीं जिता सके। वहां भी मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने में भाजपा कामयाब रही। नतीजा यह रहा कि पांच माह के कम वक्त में भाजपा ने सपा के सात हजार वोटों में सेंधमारी की।
किस इलाके में किसको कितने वोट गेटों के भीतर
(बूथ संख्या एक से 251 बूथ)
भाजपा 20175
सपा 29308
सिविल लाइंस
ज्वालानगर (252 से 329)
भाजपा 24241
सपा 4701
ग्रामीण इलाके (330 से 425)
भाजपा 36955
सपा 13262
लोकसभा उप चुनाव में यह रही थी स्थिति
गेट के भीतर
भाजपा 13382
सपा 37932
गेट के बाहर
भाजपा 12936
सपा 5129
ग्रामीण इलाके
भाजपा 29999
सपा 20829
लोकसभा उपचुनाव में शहर विधानसभा की स्थिति
भाजपा 56317
सपा 63953
जमानत भी नहीं बचा सके ये आठ प्रत्याशी
रामपुर विधानसभा उप चुनाव में निर्दलियों पर नोटा भारी पड़ा । कोई भी उम्मीदवार 400 का आंकड़ा पार नहीं कर सका। जबकि, सात सौ ज्यादा ज्यादा वोटरों ने नोटा का बटन दबाया। बहुजन आंदोलन पार्टी के उम्मीदवार तो 100 के आंकड़े के करीब तक भी नहीं पहुंच सके। चुनावी नैया पार लगाने के लिए भाजपा और सपा के उम्मीदवारों ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया। जाहिर है निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत की उम्मीद पर ही चुनाव लड़ा। चुनाव में भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने जीत हासिल की। सपा प्रत्याशी आसिम राजा दूसरे स्थान पर रहे। जबकि कोई भी निर्दलीय अपनी जमानत बचाना तो दूर की बात 400 वोटों का भी आंकड़ा पार नहीं सका। निर्दलीयों में सबसे ज्यादा वोट संदीप सिंह को और सबसे कम वोट बहुजन आंदोलन पार्टी के शिव प्रसाद को मिले। शिव प्रसाद 100 के नजदीक भी नहीं पहुंच सके। सुभासपा उम्मीदवार 200 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सके। जबकि, 700 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया।