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बोले रामपुर : रामपुरी पतंग की ऊंची उड़ान, मजदूरों के टूटे अरमान

Rampur News - रामपुर का पतंग कारोबार, जो पहले बहुत लोकप्रिय था, अब मंदी का सामना कर रहा है। करीब 10 हजार कारीगरों को रोजगार देने वाले इस उद्योग में युवा पीढ़ी की रुचि कम हो गई है। चाइनीज मांझे की बढ़ती मांग और कम...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरMon, 24 Feb 2025 03:14 AM
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बोले रामपुर : रामपुरी पतंग की ऊंची उड़ान, मजदूरों के टूटे अरमान

पतंग कारोबार रामपुर के सबसे पुराने और प्रमुख उद्योगों में से एक है। यहां विभिन्न आकार और आकृति की पतंगें बनाई जाती हैं। इस कारोबार से रामपुर के लगभग 10 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। यहां के पतंग कारीगर राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं, लेकिन, समय के साथ साथ सब कुछ बदल गया। अब कमाई कम होने से पतंग कारीगरों की संख्या घटती जा रही है। उनके सामने परिवारों को पालने में दिक्कतें आ रही हैं। इसलिए युवा वर्ग इससे काम से दूरी बना रहा है। हिन्दुस्तान के साथ उन्हें अपना दर्द बयां किया है। जिले भर में पतंग का कारोबार फैला हुआ है। एक जमाना था जब पतंग का काम काफी फल-फूल रहा था। इसने कारोबारियों और कारीगरी की जिंदगी बदल दी थी। उन्हें आर्थिक तौर पर संपन्न बना दिया था लेकिन, वक्त गुजरने के साथ 15-20 साल से लगातार चाइनीज मांझे की बढ़ती मांग ने पतंग कारोबारियोंं को मुश्किल में डाल दिया है। जिससे लगातार इतने वर्षो में सेकड़ों कारीगरों ने काम छोड़ दिया है। पतंग कारीगरी में मजदूरी और कम मांग ने के कारण हजारों कारीगर इस काम को छोड़ चुके हैं। शहर में पतंग बनाने के कई कारखानों के दरवाजों पर ताला लटक गया है।

अब पतंग के कारोबार का पहिया अपनी पटरी से उतर गया। मौजूदा समय में दौर में पतंग कारोबारियों और कारीगरों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। पतंग करोबार की गिरती साख से सबसे ज्यादा परेशान वे कारीगर हैं, जो पतंग बनाकर परिवार को पालते थे। अब पतंग कारीगारें का पतंग के काम से भरण-पोषण करना दुश्वार हो गया है। पतंग कारोबार की चुनौतियां और पतंग का दुख-दर्द समझने के लिए हमने जिले का भ्रमण किया। जहां पर पुराने लोग ही पतंग का काम करते नजर आए, युवाओं ने मजदूरी कम होने की बजाए इस काम से काफी दूरी बना ली है। जनपद में लगभग दो दशक पहले तक पतंग का कारोबार मशहूर था। लाखों की आबादी वाले जनपद में हजारों की संख्या में पतंग कारीगर हुआ करते थे। कई वर्षों से वाजिब मजदूरी न मिलने के कारण पतंग कारीगर काम छोड़ रहे हैं। हालांकि, महिला कारीगर अभी भी इसे रोजगार मानकर खाली समय घरों में पतंग बना रही हैं। उन्हें घर बैठे रोजगार मिल रहा है लेकिन, मजदूरों को इतनी राशि नहीं मिलती कि वह ढंग से परिवार की देखभाल कर सके।

कारीगरों ने बताया कि छोटी 1000 पतंगें बनाने पर 150 से 160 रुपये कमा पाते हं जबकि 1000 बड़ी पतंगें बनाने पर 200 से250 रुपये मिलते हैं जो आजके समय में काफी कम हैं। कारीगरों ने बताया कि पूरा दिन काम करने से वे बीमारियों से परेशान हैं, उन्हें स्वास्थ सुविधा नहीं मिलती है। पतंग कारीगरों ने अच्छी कारीगरी के साथ साथ स्वास्थ सुविधाओं और सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की मांग की है। कारीगरों ने कहा कि पतंग के काम में ना पहले फायदा था और ना अब है। लेकिन काम पतंग बनाने का काम सीखने के बाद कोई दूसरा काम नहीं सीखा। पतंग कारीगरों के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती कारीगरी में पैसा कम होने की वजह से युवाओं का इस क्षेत्र में ना आना भी माना जा रहा है। इसलिए पतंग का काम चौपट होता जा रहा है। मजदूरी नहीं मिलने पर उन्होंने यह काम छोड़ दिया।

अफगानिस्तान भी भेजी जाती थीं रामपुर की पतंगें

रामपुर, संवाददाता। जिले की पतंग देश के दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, लखनऊ, बेंगलुरु के अलावा उड़ाई जाती है लेकिन रामपुर की पतंग करीब एक दशक पहले तक अफगानिस्तान में भी अपनी खूबसूरती बिखेरती थी। अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद से वहां पर पतंग जाना बंद हो गई। कारोबारियों ने बताया कि अफगानिस्तान में पतंग न जाने से प्रत्येक वर्ष लाखों रुपए की आमदनी कम हुई है। लोगों का कहना है कि अन्य देशों में पतंग जानी चाहिए। जिससे पतंग का कारोबार विदेशों में परचम लहरा सकें।

चाइनीज मांझे से घटी पतंग की बिक्री

काराबारियों का कहना है कि पतंग की दुकानों में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे को लेकर जिले में अभियान चलाया जाता है। लेकिन सरकार को सबसे पहले यह मांझा जहां से आता है वहां से आना बंद करना चाहिए। पतंग के दुकानदारों को बेवजह परेशान किया जाता है । जबकि दुकानदार पूरी ईमानदारी के साथ अपने काम काम कर रहे हैं। गलत काम करने वाले लोगों को पुलिस को पकड़ना चाहिए, लेकिन वह तो हाथ नहीं आते और पुलिस ईमानदारी से काम करने बालों को परेशान

किया जाता है।

सरकार को बाहर से आने वाले प्रतिबंधित चाइनीज मांझे पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना चाहिए। बताया कि चाइनीज मांझे से पतंगें कम टूटती और कम कटती हैं जिसकी वजह से करोबार में भी अच्छी खासी कमी देखने को मिल रही है। इससे लेकर दुकानदार चितिंत हैं। इसलिए इसमें प्रोत्साहन

की जरूरी है।

चांद को पतंग बनाने के लिए मिला था राष्ट्रपति से सम्मान

पतंग कारोबारी राशिद मियां जो रामपुर में पतंग बनाने वाले परिवार से जुड़े हैं और पतंग बनाने की एक दुकान के मालिक हैं। वह बताते हैं कि उनके स्वर्गीय दादा शाहवजादा चंदा को पतंग बनाने के लिए 1985 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने पुरस्कार से नवाजा था। मियां का कहना है कि पतंग उड़ाना जितना शारीरिक व्यायाम है, उतना ही दिमाग का खेल भी है। पतंग लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपकी पतंग कितनी अच्छी है। दूसरा तथ्य खिलाड़ी की प्रतिभा है। उनका मानना है कि अधिकांश टूर्नामेंट, ऐसे खिलाड़ियों द्वारा जीते जाते हैं जो अप्रत्याशित होते हैं। बरेली का मांझा और मियां की प्रसिद्ध लड़ाकू पतंगों की तलाश में ग्राहकों की लगातार भीड़ उनकी दुकान पर बनी रहती है। अन्य कारीगर बताते हैं कि पतंग मजदूर को किसी भी प्रकार का बोनस या पेंशन नहीं मिलती है।एक कारीगर हफ्ते में 8 घंटे लगातार काम कर मुश्किल से 1000 पतंगे बना पाता है। जिससे पूरे हफ्ते में1500 रुपये कमते हैं। महंगाई में परिवार का पालन पोषण नहीं हो पाता है। अधिकांश ने इस काम को छोड़ दिया।

सुझाव एवं शिकायतें

1. प्रत्येक कारीगर का मुफ्त में स्वास्थ्य बीमा होना चाहिए। ताकि उन्हें अपनी बीमारी का इलाज कराने में आसानी हो सकें।

2. कारीगरों के लिए मजदूरी की दर बढ़ाकर 500 रुपये होनी चाहिए। इससे उनकी आय बढ़ेगी।

3. कारीगरों से सिर्फ 8 घंटे ही काम कराने की व्यवस्था होना चाहिए। ताकि वे थकान महसूम न करे।

4. सरकारी की ओर से कारीगरों को कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराने की व्यवस्था होने की चाहिए।

5. प्रत्येक कारीगर का पंजीकरण होना चाहिए। इससे कारीगरों को काम करने में आसानी होगी।

1. रामपुर के पतंग कारीगरों को काम करने के लिए सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है।

2. मेहनत ज्यादा होने की वजह से युवाओं ने इस काम से दूरी बना शुरू कर दिया है।

3. बड़े शहरों से कनेक्टिविटी कम होने से के कारण कारोबार में दिक्कतें आ रही हैं।

4. सरकारी योजनाओं का लाभ कारीगरों को नहीं मिलने से कारोबार करने में दिक्कतें आ रही हैं।

5. कारीगरों के सामने नई तकनीक सीखने का कोई संसाधन नहीं है, इसका प्रभाव उनके कार्य पर काफी व्यापक रूप से पड़ रहा है।

हमारी भी सुनें

चाइनीज मांझे की वजह से पतंग का काम और कम हो गया है। लगातार काम न मिलने से परिवार को पालना मुश्किल हो रहा है। इस कारोबार को बढ़ाने के लिए शासन की ओर से पहल होनी चाहिए। -नूर, पतंग कारीगर

चुनाव के समय नेता आकर बड़े बड़े वादे करते हैं ओर चले जाते हैं लेकिन, इसके बाद वे हमारा हालचाल पूछने कोई नहीं आते। इस काम को करने वालों को संसाधनों की कमी है।

- सहाबत , पतंग कारीगर

ज्यादा मेहनत और कमाई कम होने की वजह से लोग इस हुनर को छोड़ने लगे हैं। सरकार ऐसे प्रयास करें कि मेहनताना बढ़े और लगातार काम मिले। इससे यह कारोबार बचा रह सकता है। -फैसल, पतंग कारीगर

महंगाई के हिसाब से हम लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है। परिवार का पालन पोषण कठिन होता जा रहा है। सरकार पतंग बनाने वालों के लिए सुविधा उपलब्ध कराने पर ध्यान दे।

- राकिब, पतंग कारीगर

सरकार इस कारोबार को अपने अधीन कर ले। पतंग की खुद खरीद-फरोख्त कराए। मुनाफे में कारीगरों को हिस्सा दे। इससे पतंग के कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

-जरीफ , पतंग कारीगर

छोटे कारखानों पर ती रोज काम भी नहीं मिलता। काम मिल जाये तो समय पर पैसा नहीं मिलता। पतंग कारीगरों की मेहनत का लाभ बिचौलियों को मिलता है। -

-जकी , पतंग कारीगर

वर्षों से पतंग कारीगरी कर रहे हैं , इस काम में मेहनत बहुत अधिक है। कम से कम 12 घंटे हम लोगों को काम करना होता है। नई पीढ़ी इतनी मेहनत नहीं कर पाएगी।

-आसिफ , पतंग कारीगर

परिवार चलाने के लिए पतंग बनाने का काम करते हैं। कढ़ाई के लिए ठेकेदार साड़ी और दुपट्टा दे जाते हैं। कारचोब का कम भी करते हैं। पतंग के काम कमाई कम है।

-अमान, पतंग कारीगर

सरकारी योजनाओं की ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन, हमें सरकार की तरफ से कोई भी सहूलियत नहीं मिलती। पतंग के काम से इतनी कमाई नहीं है कि परिवार का पालन हो सके।

--तौसीफ, पतंग कारीगर

पतंग बनाने वाले कारीगरों को सरकार से पेंशन मिलनी चाहिए। जिससे वह अपने परिवार का सही से पालन पोषण कर सकें। उनकी आय बढ़ाने के लिए पहल हो।

- गुलवेज, पतंग कारीगर

लगातार काम करने से दिखना भी कम हो जाता है, लेकिन सरकार से इस काम को करने वालों को सहूलियत नहीं दी जाती। कारीगर अपने निजी खर्च से इलाज करते हैं।

- हसीन मियां, पतंग कारीगर

पतंग बनाने वाले कारीगरों को सरकार से पेंशन मिलनी चाहिए। जिससे वह अपने परिवार का सही से पालन पोषण कर सकें। उनकी आय बढ़ाने के लिए पहल हो।

- गुलवेज, पतंग कारीगर

लगातार काम करने से दिखना भी कम हो जाता है, लेकिन सरकार से इस काम को करने वालों को सहूलियत नहीं दी जाती। कारीगर अपने निजी खर्च से इलाज करते हैं।

- हसीन मियां, पतंग कारीगर

पतंग बनाने वाले कारीगरों के स्वास्थ्य की जांच होनी चाहिए। इसके लिए सरकार की ओर से मुफ्त जांच की व्यवस्था जरूरी है। इससे कारीगरों को मदद मिलेगी।

- कामरान, पतंग कारीगर

लगातार काम न मिलने के कारण परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल हो जाता है। सरकार को कारीगरों की सहूलियत के लिए पेंशन देना चाहिए।

- वसीम, पतंग कारीगर

मुझे काम करते हुए कई वर्ष बीत गए लेकिन, अभी तक सरकार की ओर सहायता नहीं की मिली। मदद मिले तो इस काम में कारीगरों का मन लगेगा।

- राशिद मियां, पतंग कारीगर

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