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बोले रामपुर : सुरक्षित सफर के जिम्मेदारों के लिए बढ़ें सुविधाएं

Rampur News - रेलवे के ट्रैकमैन यात्रियों की सुरक्षा के लिए 12-12 घंटे की ड्यूटी करते हैं। उनकी समस्याएं बढ़ रही हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। रेलवे कॉलोनियों की स्थिति जर्जर है, जहां सफाई और सुरक्षा के...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरMon, 24 Feb 2025 03:28 AM
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बोले रामपुर : सुरक्षित सफर के जिम्मेदारों  के लिए बढ़ें सुविधाएं

रेलवे के ट्रैकमैन यात्रियों के सुरक्षित और आरामदायक सफर के लिए अनवरत ड्यूटी कर रहे हैं। इसके बाद भी रेलवे में यह वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित है। हर साल मालगाड़ियों और सवारी गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। इससे ट्रैकमैन का कार्य भी बढ़ रहा है, लेकिन इनके पास प्रोन्नति के कम मौके हैं। संरक्षा का सबसे बड़ा जिम्मा संभालने वाले ये रेलकर्मी कई असुविधाओं के बीच अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। आराम के लिए इनके पास गैंगहट तक की सुविधाएं नहीं हैं। इन्हें अफसोस है कि रेलवे के जिम्मेदारों को इनकी फिक्र नहीं है। ट्रैकमैनों ने हिन्दुस्तान के साथ अपनी समस्याएं साझा की हैं। रेलवे के ट्रैकमैनों की पैनी नजर पटरियों की मरम्मत और इनकी देखरेख पर रहती है, ताकि ट्रेनें सुरक्षित रफ्तार भर सके। ट्रेन में सुरक्षित सफर की सबसे बड़ी जिम्मेदारी ट्रैकमैन की होती है। ये ट्रैकमैन भारतीय रेल की रीढ़ की हड्डी हैं, जो सेना के जवान की तरह काम करते हैं। हर मौसम में ये ट्रैकमैन रेल ट्रैक पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। जब लोग सफर के दौरान ट्रेनों के डिब्बों में आराम से सो रहे होते हैं। तब लोगों को सुरक्षित रखने के लिए ट्रैकमैन कड़ी मेहनत करते हैं।

रामपुर में 216 ट्रैकमैन कार्य करते हैं। इनमें सात महिला ट्रैकमैन भी शामिल हैं। इन्हें लगातार 12-12 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। कार्यस्थल पर विश्राम के लिए गैंगहट तक नहीं है। ऐसे में धूप,बारिश और सर्दी में बिना आराम काम करना पड़ता है। इनकी रेलवे कॉलोनी बदहाल है। एक तरफ जहां कॉलोनी में सड़कें जर्जर हैं, तो सफाई न होने से गंदगी का अंबार लगा हुआ है। नालियां चोक हैं। स्ट्रीट लाइटों की संख्या कम होने से शाम होते ही कॉलोनी अंधेरे में डूब जाती है। रेलवे कर्मी कहते है अधिकतर सरकारी क्वार्टर जर्जर है। दरवाजे टूटे होने से सर्दी काटना मुश्किल हो रहा है। बारिश में हालात बदतर हो जाते है। लेकिन,इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। राजकिशोर कहते हैं यूं तो जिले में कई सौ कर्मचारी विभाग में तैनात हैं लेकिन, इनके रहने के लिए यहां ठीक आवास तक नहीं है। जिस कारण कर्मचारी विभिन्न इलाकों में मकान किराये पर लेकर रहते हैं। मौजूदा समय में रेलवे कर्मियों के लिए बना सरकारी आवास बेहद जर्जर दशा में है। जिनमें रहना कर्मचारी और उनके परिवार के लिए मुश्किल भरा है। ट्रैकमैन कहते है कि दशकों पहले बनी रेलवे कॉलोनी मेंटीनेंस की कमी के कारण जर्जर हो चुकी है। अधिकतर के दरवाने टूटे हुए हैं। सड़कें जर्जर हैं। जिस कारण कर्मचारियों को परेशान होना पड़ता है। ट्रैक मैन का दर्द है कि रेलवे की ट्रेनें तो हाईटेक और व्यवस्थित हो रही हैं लेकिन उनके लिए सुविधाएं नहीं बढ़ रही हैं।

ट्रैकमैन की कमी, पर बढ़ी जिम्मेदारी : मुरादाबाद मंडल में स्वीकृति से कम ट्रैकमैन है। यह स्थिति काफी समय से बनी हुई है। इस समय मंडल में 61 सौ पदों के साक्षेप 47 सौ ट्रैकमैन काम कर रहे है। रेलवे में नियम है कि हर 12 घंटे की ड्यटी के बाद आराम मिलना चाहिए। लेकिन,कर्मचारी कम होने से चाहकर भी इनको अवकाश

आवासों की छतों से टपकता पानी: ट्रैकमैन राजीव ने बताया कि रेलवे की जर्जर हो चुकी कॉलोनियों में कर्मचारी खतरों के बीच रह रहे हैं। इनका हाल हैं कि बारिश के दिनों में छतों से पानी टपकता रहता है। कालोनी की नालियां चोक होने से रोज निकलने वाले पानी निकासी नहीं हो पाती है। बारिश में हाल और भी खराब होते हैं। गंदगी के बीच कर्मचारी रहने को मजबूर हैं। कॉलोनी परिसर में ही मवेशी घूमते रहते हैं। जिससे चारों ओर गंदगी पसनी नजर आती है। कॉलोनियों में स्वच्छता अभियान का असर नहीं दिखता है।

कार्यस्थल पर नहीं मिलता आराम: रेलवे में रोजाना लोगों की जान बचाने का जिम्मा संभाले वाले ट्रैकमैन की असल जिंदगी दुश्वारियों से भरी हुई है। कर्मचारी की आराम के लिए गैंगहट तक नहीं है। जिस कारण रेललाइन के किनारे पेड़ होने से ट्रैकमैन गर्मी के दिनों में आराम कर लेते है। कड़ाके की ठंड में जहां रेल पटरियां चटकती है,ये लोग भारी पटरी को पकड़कर ठीक करने में जुटते है।

रामपुर में नहीं है रेलवे का अस्पताल

रामपुर। रेलवे कर्मचारियों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए स्टेशन के अलावा जिला मुख्यालय में कोई भी रेलवे अस्पताल नहीं है। अगर ट्रैकमैन की तबीयत बिगड़ जाए तो उसे स्वास्थ्य प्रशिक्षण और उपचार के लिए मुरादाबाद या बरेली जाना पड़ता है।

ट्रैकमैन की मांग है कि जिला मुख्यालय पर एक स्वास्थ्य यूनिट का निर्माण कराया जाए। ट्रैकमैन राजवीर ने बताया कि उन्हें ट्रैक पर ट्रेनों से गिरने वाले मलमूत्र को भी हटाना पड़ता है। साथ ही पत्थरों पर कार्य करने से उन्हें बीमार होने का खतरा बना रहता है। लेकिन, उनके लिए स्वास्थ्य प्रशिक्षण और अन्य उपचार के लिए हेल्थ कैंप तक नहीं लगाए जाते हैं। इससे उन्हें असुविधा होती है। अगर जिले में रेलवे का अस्पताल बन जाए तो उन्हें समय पर उपचार मिल सकेगा।

रामपुर में ट्रैकमैनों को नहीं दी गई है रक्षक डिवाइस

रामपुर, संवाददाता। रेल लाइन पर कार्य करने वाले ट्रैकमैन को रेल विभाग में रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा उनका ही शोषण किया जाता है। एक ट्रैकमैन अकेला अपने कंधे पर 30 किलो से ज्यादा भारी उपकरण लेकर चलता है। जिस टैक पर वे काम कर रहे होते हैं, उस पर कब ट्रेन गुजरेगी इसकी जानकारी उन्हें नहीं दी जाती। ट्रैकमैन गौरव ने बताया कि रेलवे ने लाइन पर कार्य करने के लिए हर ट्रैकमैन को रक्षक डिवाइस दी है। लेकिन,उनके डिविजन में यह डिवाइस नहीं मिली है। राजकुमार ने बताया कि रेलवे स्टेशन के बाहर कर्मचारियों के लिए पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। कर्मचारी सड़क पर ही वाहन खड़ा करते हैं। कई बार पुलिसकर्मी चालान काटकर चले जाते हैं। कई कर्मचारियों की बाइकें चोरी हो चुकी है।

महिला ट्रैकमैन पूनम ने कहा कि कर्मचारियों के परिवारों के रहने के लिए कॉलोनी अलग बनाई गई है। ठीक से सफाई नहीं होती है। स्टेशन परिसर और प्लेटफार्मों पर सुरक्षा के लिए जीआरपी और आरपीएफ तैनात है लेकिन, कॉलोनियों में सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं।

हवाई जहाज के जमाने में मिल रहा साइकिल का भत्ता

रामपुर। ट्रैकमैन ने हंसते हुए बताया कि देश के लोग हवाई जहाज से सफर कर रहे हंै। हर विभाग में सुविधाएं भी अपग्रेड हो गई हैं। लोगों के कार्य करने का तरीका बदल गया है। लेकिन, रेलवे के ट्रैकमैन आज भी पुराने जमाने में व्यवस्था में काम कर रहे हैं।

बताया कि ट्रैकमैन को 180 रुप्ये प्रतिमाह का साइकिल भत्ता मिलता है। लेकिन,रामपुर के ट्रैकमैन इसके लिए भी परेशान हंै। रामपुर के ट्रैकमैन को यह भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। इस व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।

सुझाव एवं शिकायतें

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1. पुरुषों के तरह ही महिला ट्रैकमैन के वस्त्र और जूते आते है। महिलाओं के अलग बनाने चाहिए।

2. महिला ट्रैकमैन की ड्यूटी हैडक्वाटर में ही लगानी चाहिए। उनसे भारी काम की जगह हल्का काम कराया जाए।

3. महिला ट्रैकमैन के लिए शौचालय और चेजिंग रूम बनाया जाए।

4. महिला ट्रैकमैन को ऑफिस या अन्य कार्य में लगाया जाए।

5. गेट से आवासों की दूरी पांच सौ मीटर से अधिक होने पर 12 घंटे की ड्यूटी पर दो अवकाश का नियम लागू किया जाए।

6. हेल्थ यूनिट की स्थापना करनी चाहिए। जिससे उपचार के लिए मुरादाबाद या बरेली जाने की परेशानी बचे।

1. रेलवे कॉलोनी में रहने वाले परिवार के लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है।

2. रेलवे आवासों को बुरा हाल है। छह माह से इनका कार्य रूका हुआ है।

3. ट्रैकमैन को दिए जाने वाले सैफ्टी जूते बहुत खराब होते है। इसकी क्वालिटी बहुत ही ज्यादा खराब होती है।

4. पहले ग्रेजएट व प्रतिभा के आधार पर कोटा के साथ ही वरिष्ठता पर प्रोन्नति होती थी।

5. अब टेलेटेंड कोटे के तहत प्रोन्नति पर रोक लगा दी गई है। इससे ट्रैकमैंनों की दिक्कत बढ़ गई है।

6. ट्रैकमैन के कार्य के घंटे ज्यादा है। ट्रैकमैन की संख्या बढ़ाकर उसे कम करा जाए।

हमारी भी सुनें

ट्रैकमैन का काम काफी कठिन होता है। जबकि,सुविधा नहीं मिलती है।रेल लाइन को ठीक करने में दिन-रात जुटे रहते है।ट्रैकमैन के लिए गैंगहट्स की सुविधा होनी चाहिए। -चंदन

सुबह से शाम तक काम के दौरान खतरा रहता है। पूरा दिन काम करने पर तीन घंटे के लंच दिया गया है लेकिन,सुविधा न होने के कारण उस समय में परेशान होना पड़ता है। -गौरव

अधिकतर ट्रैकमैन पढ़े लिखे है। विभागिय परीक्षा कराकर उनके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। जिससे उनका भविष्य संवर सके और प्रोन्नति की राह मिल सके। -जोगेंद्र पाल

काम के घंटे निर्धारित होने चाहिए। यदि 12 घंटे तक काम करें तो नियमानुसार आराम भी मिले। कई बार आराम न मिलने से बीमार होने का खतरा रहता है। -नन्हें

ट्रैकमैन से 12 घंटे तक काम लिया जा रहा है। जबकि,नियम के अनुसार 50 हजार टीवीयू वाले गेटों पर आठ घंटे की ड्यूटी होनी चाहिए। इस व्यवस्था में सुधर किया जाना चाहिए। -राजीव

कई बार टूल न होने पर हाथ से ही काम करना पड़ता है। रेलवे को ट्रैकमैन के लिए छोटे और हल्के टूल उपलब्ध कराने चाहिए। इससे काम करने में उन्हें आसानी होगी। -राजवीर

रेल ट्रैक पर काम करते हुए जान का जोखित रहता है। सेफ्टी जैकेट, शूज आदि न होने पर बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है। हमें सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। -राजेश

सेना पर जवान और रेलवे लाइन पर ट्रैकमैन का कार्य एक जैसा ही है। ऐसे में ट्रैकमैन का प्रमोशन करना चाहिए और उसी हिसाब से उसे सम्मान मिलना चाहिए। -राज किशोर

रेलवे कॉलोनियों का बुरे हाल है। आवास जर्जर हैं। उनकी दीवारों से प्लास्टर गिरता है। छत भी काफी कमजोर है। बारिश में सुरक्षा की चिंता और बढ़ जाती है। इनकी मरम्मत होनी चाहिए। -नवनीत सिंह

महिला ट्रैकमैन के लिए सुविधा नहीं है। उनकी ड्यूटी दूर लगाई जाती है तो सबसे ज्यादा परेशानी चेजिंग रूम और शौचालय की ही आती है। सुविधाएं बढ़े। -पूनम

महिला ट्रैकमैन की सुरक्षा को लेकर भी कदम उठाना चाहिए। रात में कॉलोनी में अकेले निकलने में डर रहता है। यहां पुलिस की ड्यूटी होनी चाहिए। -रिंकी राना

महिला ट्रैकमैन की ड्यूटी आसान काम में लगानी चाहिए। उनके टूल्स और उपकरण भी हल्के होने चाहिए। इससे उन्हें काम करने में आसानी होगी। - संतोषी राना

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