बोले रामपुर : भवनों को आकर्षक दिखाते हम, फिर भी जिंदगी बेरंग
Rampur News - भारत में रंग पेंट करने वाले दिहाड़ी मजदूर ठंड के मौसम में बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। शहरों और गाँवों से आकर काम की तलाश में जुटने वाले ये मजदूर अक्सर खाली हाथ लौटते हैं। उन्हें 400-500 रुपये दैनिक...

प्रतिदिन पेंट की दुकानों पर शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर एकत्र होते हैं। इनमें से कुछ को तो काम मिल जाता है, लेकिन अधिकतर घर खाली हाथ लौट जाते हैं। भवन निर्माण, पुराने दफ्तरों, कार्यालयों पर काम करने के एवज में ठेकेदार से उन्हें 400 से 500 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है, लेकिन यदि काम रुक जाए या पूरा हो जाता है तो ये मजदूर फिर बेरोजगार हो जाते हैं। ठंड में स्थिति यह है कि रंग-पेंट करने वाले ये मजदूर काम न मिलने के कारण रोजी-रोटी के संकट का सामना करते हैं। उन्होंने हिन्दुस्तान से अपना दर्द बयां किया है। ठंड में दिहाड़ी मजदूरों के साथ साथ रंग, पेंट करने वालों के सामने रोजगार का संकट है। उन्हें काम की तलाश में दर-दर भटकना पड़ रहा है। देहात क्षेत्र के लोग शहरों में मजदूरी करने पहुंचते हैं, लेकिन ठंड के कारण भवन निर्माण का धीमा होने से इन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है। अधिकतर मजदूर मायूस होकर गांव लौट जाते हैं। इससे उन्हें आर्थिक रूप परेशानी हो रही है।
शहर में दर्जनों गांवों से आकर दिहाड़ी पर रंग पेंट कर अपना जीवन यापन करने वाले मजदूरों के लिए ठंड ने बेरोजगार कर दिया है। खराब मौसम के उनकी आजीविका पर संकट है। प्रतिदिन पेंट की दुकानों पर शहर और ग्रामीण क्षेत्र के मजदूर एकत्र होते हैं। इनमें से कुछ को तो काम मिल जाता है बाकी पेंटर बिना मजदूरी किए ही घर लौट जाते हैं। भवन निर्माण या पुराने दफ्तरों, कार्यालयों पर काम करने के एवज में ठेकेदार से उन्हें 400 से 500 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है, लेकिन यदि काम रुक जाए या समाप्त हो जाता है तो ये मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं। ठंड में स्थिति यह है कि इन्हें सूदखोरों से अधिक ब्याज दर पर रुपये लेकर परिवारों को पालना पड़ रहा है। मजदूरों का कहना है कि मौसम खराब होने के चलते लोगों ने अपना काम रोक दिया है, इसलिए परेशानी बढ़ गई है। स्थिति यह है कि प्रतिदिन बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर काम न मिलने से निराश होकर लौट रहे हैं।
ऐसे में इन्हें दोहरा दंड मिल रहा है। एक तो उन्हें किराया खर्च करना पड़ रहा है। दूसरी और काम नहीं मिलने से निराशा भी हो रही है। परिवारों को पालने के लिए रुपयों का इंतजाम करने की चिंता सता रही है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका घर, दफ्तर, दुकान सुंदर और आकर्षक लगे। इसके लिए वे भवनों की दीवारों पर पेंट अवश्य करवाते हैं। कई लोग तो अपने घर या दफ्तर को इतना सुंदर बनाना चाहते हैं कि अपना मनचाहा काम करवाने के लिए अधिक रुपये खर्च करते हैं। इतना ही नहीं, वे दीवारों पर अलग-अलग तरह की कलाकृतियां बनवाते हैं ताकि उनका घर बेहद आकर्षक लगे। लोगों को पेंट कराने के लिए एक अच्छे पेंटर की आवश्यकता होती है। रंग पेंट करने वाले मजदूरों को काम तलाशने से पहले यह देखना होता है कि वे काम शहर में करने जाएं या ग्रामीण क्षेत्र में, क्योंकि शहरी क्षेत्र में रंग पेंट मजदूरों को 600 से लेकर 700 रुपये तक की दिहाड़ी मिलती है जबकि देहात में 400 से 500 रुपये ही दिहाड़ी मिलती है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले अधिकतर लोग खुद या अपने परिवार वालों के साथ मिलकर घरों को पेंट कर लेते हैं। वहीं, शहरों में पेंट के लिए मजदूर की आवश्यकता पड़ती है। शहरी में काम अधिक होने की वजह से यहां पेंट करने वालों की मांग भी काफी होती है जिसकी वजह से काम करने की एवज में अधिक रुपये मिल जाते हंै, लेकिन मजदूरों की जान हमेशा जोखिम में रहती है। जब ऊंचे भवनों पर रंग पेंट किया जाता है तो रस्सी पर लटक कर मजदूर काम करते हैं। इससे उन्हें जान का जोखिम रहता है। फिलहाल ये लोग इस समय काम न मिलने से परेशान हैं। कई लोगों को काम की तलाश है।
सरकार से विशेष सहायता की उम्मीद
पेंटरों ने बताया कि उन्हें सरकार से विशेष सहायता मिलनी चाहिए। ताकि वे आर्थिक संकट से ऊबर सके। भवनों पर पेंट करते समय उन्हें जान जाने का खतरा रहता है। इस हालात में परिवार वालों के सामने अधिक समस्या होती है। उन्हें सरकार सुवधिा मुहैया कराए तो उनके परिजन सुरक्षित महसूस करेंगे। मजदूरों का उम्मीद है सरकार की तरफ से बेहतर सुविधा मिलेगी।
रोज खर्च करते किराया, फिर भी नहीं मिलता काम
शहर के अलावा देहात से भी काफी संख्या में रंग, पेंट की मजदूरी करने के लिए मजदूर आते हैं। मजदूरों ने बताया कि ठंड में अब काम नहीं है जबकि गर्मियों के महीनों में भी महीनें में मात्र 15 से बीस दिन ही उन्हें काम मिलता है। मजदूरी भी नियमित नहीं है, कुछ ठेकेदार कभी 500 तो कभी 600 रुपये दिहाड़ी देते हैं। मजदूरों ने कहा कि नियमित काम न मिलने के कारण वह लोग हमेशा आर्थिक संकट से जूझते रहते हैं, जिसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है। क्योंकि इस महंगाई में पांच सौ रुपये में पचास, सौ रुपये किराए आदि में खर्च हो जाता है। शेष बचे पैसों में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। मजदूरी कम से कम 700 से 800 रुपये नियमित होनी चाहिए।
कारीगरों की रोजी-रोटी पर संकट
रामपुर। ठंड में रंग पेंट के दिहाड़ी मजदूरों ने अपना दर्द हिन्दुस्तान के साथ साझा करते हुए बताया कि मार्केट में काम की तलाश में भीषण ठंड में कांपते हजारों रंग पेंट मजदूर शहर में पेंट कारोबारियों से काम के लिए संपर्क करते हैं।
परंतु ठंड में कुछ मजदूरों को काम मिल पाता है जबकि कुछ मजदूर अपने पास से किराया लगाकर उतरा हुआ चेहरा घर लेकर चले जाते हैं। कहा कि जरूरी नहीं है कि शहर में उनको रोजगार मिल जाए।
नियमित रोजागर न मिलने से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी काफी खराब है। मजदूरों ने कहा कि कमाई ठीक न होने से अच्छे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना उनके लिए सपना है। क्योंकि रोजाना दो वक्त की रोटी ही मिल जाए उतने में ही हम खुश हो जाते हैं। हजारों रंग पेंट का काम करने वाले मजदूर रोजाना शहर में काम की तलाश में आते हैं।
सुझाव
1. रंग-पेंट मजदूर की दिहाड़ी 800 रुपये होनी चाहिए।
2. काम करते समय घायल हुए मजदूरों को आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
3. मजदूरों को सरकारी योजनाओं में विषेश लाभ मिलना चाहिए।
4. मजदूरों को 3000 रुपये पेंशन मिलनी चाहिए।
5. काम पर आने जाने वाले मजदूरों का किराया कम होना चाहिए।
शिकायतें
1. रंग-पेंट मजदूरों को ठंड में काम न मिलना बड़ी समस्या है।
2. मजदूरों की दिहाड़ी नहीं बढ़ने से उन्हें दिक्कत हो रही है।
3. सरकार से मजदूरों को विशेष योजनाओं का लाभ न मिल रहा है। इसमें सुधार होना चाहिए।
4. काम करते समय घायल को बेहतर उपचार न मिलना।
5. मंहगाई में रंग पेंट मजदूर की मजदूरी कम होना।
हमारी भी सुनें
ठंड में रंग पेंट बिल्कुल खत्म सा हो गया है। अब मजदूरी में गुजर बसर नहीं हो पा रहा है इसलिए बच्चों को बाहर काम करने भेज रहे हैं। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।
- अजय
बचपन से ही रंग पेंट का काम सीखकर कर रहे हैं परन्तु इससे परिवार का पालन पोषण करना बहुत मुश्किल हो गया है। इसलिए वह अपने बच्चों को दूसरा काम सिखा रहे हैं।
-फिराज
पेंटर के काम में पहले फायदा था। अब काम करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिससे काम में कंपटीशन बहुत हो गया है। इस ओर सरकार को बेहतर प्रयास करना चाहिए। -मिथुन
मजदूरी कम होने के कारण जिले में अब तक कई लोगों ने का काम छोड़ दिया। इस काम से अब घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। इसलिए मजदूरी बढ़ाई जानी चाहिए।
-हरप्रसाद
इस उम्र में काम में अब बहुत आलस आता है, तबीयत भी खराब रहती है फिर भी घर चलाने के लिए का काम करना पड़ता है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिले तो जीवन आसान हो जाएगा। -पप्पू
शीतलहर चलने से लोगों ने काम कराना बंद कर दिया है, जिस कारण काम बहुत ही धीमा चल रहा है। पूरा दिन काम नहीं मिल रहा है। जिससे परिवार पालने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। -शांति प्रसाद
कई वर्षों से लगातार रंग पेंट का काम कर रहे हैं, चुनाव का समय आता है तो नेता बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं लेकिन चुनाव के बाद कोई हमारी परेशानियों को पूछता तक नहीं। सब चुनाव के बाद गायब हो जाते हैं। -टेक चंद
चुनाव का समय आता है तो नेताओं को मजदूरों की याद आती है। चुनाव के बाद कोई भी उनकी आर्थिक स्थिति पूछने नहीं आता। जनप्रतिनिधियों को भी हमारी ओर ध्यान देना चाहिए।
-प्रेमपाल
लगातार काम न मिलने के कारण सही से घर नहीं चल रहा है। सरकार को पेंटरों को पेंशन देना चाहिए। जिससे हम लोग अपने परिवार का जीवन यापन सही तरीके से कर सकें।
-मोहम्मद फईम
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।