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बोले रामपुर : मंडी में समस्याओं का अंबार, समाधान मांगें पल्लेदार

Rampur News - पल्लेदारों की मेहनत से कृषि उत्पादों का व्यापार संभव होता है, लेकिन उनकी जीवनशैली और काम करने की परिस्थितियां कठिन हैं। वे बिना सुरक्षा और सुविधाओं के काम करते हैं। मंडी में शौचालयों की गंदगी, दूषित...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरSun, 23 Feb 2025 04:23 AM
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बोले रामपुर : मंडी में समस्याओं का अंबार, समाधान मांगें पल्लेदार

पल्लेदारों की मेहनत और योगदान के बिना कृषि उत्पादों का व्यापार लगभग असंभव होता है। अनाज मंडी में 500 से ज्यादा पल्लेदार रोजाना काम करने आते हैं। स्वार रोड स्थित नवीन कृषि उत्पादन मंडी में करोड़ों रुपये का कारोबार हो रहा है, लेकिन पल्लेदारों की जीवनशैली और काम करने की परिस्थितियां बेहद कठिन हैं। वे दिन-रात बिना किसी ठोस सुरक्षा या सुविधा के भारी माल उठाने का काम करते हैं, और उनकी मेहनत का उचित मुआवजा भी नहीं मिलता। इनकी सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि वे न तो किसी सरकारी योजना के तहत पंजीकृत हैं, न ही इनकी स्थिति की सुध लेने के लिए कोई संगठन या समितियां हैं। मंडी में शौचालय की गंदगी, दूषित पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी इस कठिन काम को और भी मुश्किल बना देती है। यह एक अहम मुद्दा है, क्योंकि इनका काम समाज और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इनकी बुनियादी जरूरतें पूरी करना सरकार और समाज की जिम्मेदारी बनती है।

पल्लेदारों के लिए यदि योजनाओं और सुविधाओं की जानकारी होती, तो शायद वे इनसे लाभ उठा सकते थे, लेकिन उनके पास न तो उस जानकारी का स्रोत है और न ही सही मार्गदर्शन। इस प्रकार की स्थितियों में सुधार के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। इन्हें न केवल पंजीकरण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का हिस्सा बनाना चाहिए, बल्कि मंडियों में बुनियादी सुविधाओं की भी स्थिति सुधारनी चाहिए। हैंडपंप दूषित पानी उगल रहे हैं। इसके अलावा काम के हिसाब से मजूदरी न मिलना भी पल्लेदारों की बड़ी समस्या है।

शौचालय में पसरी गंदगी, नहीं होती सफाई: मंडी में व्यापारी और पल्लेदारों के लिए दुकानों के पास शौचालय तो है, लेकिन सफाई नहीं होने से इसमें गंदगी पसरी हुई है। पल्लेदारों का कहना है कि मंडी में अधिकांश पल्लेदार सुबह ही काम करने आ जाते हैं। फिर पूरा दिन रहते हैं और शाम को जाते हैं। कई पल्लेदार शाम को आते हैं और देर रात तक काम करते हैं। इस दौरान शौचालय गंदा होने से उन्हें काफी परेशानी होती है।

हैंड पंप उगल रहे हैं दूषित पानी: मंडी में व्यापारी, किसान और पल्लेदारों की सुविधा के लिए पानी के पांच हैंडपंप लगे हैं। मगर इनमें दो खराब पड़े हैं। तीन हैंडपंपों में से गंदा पानी आता है। पल्लेदारों ने बताया कि हैंडपंप का दूषित पानी पीकर वे बीमार हो रहे हैं। पानी में से दुर्गंध आती है। उन्होंने मंडी प्रशासन को यह समस्या बताई, लेकिन इसका समाधान नहीं हो सका है। वे इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं।

पल्लेदारों ने की मजदूरी तय करने की मांग

रामपुर। मंडी में हर दिन काम करने के लिए शहर व गांव के सैकड़ों पल्लेदार आते हैं। ये आढ़तों से लेकर बाजार के विभिन्न दुकानों और गोदामों पर सुबह से शाम तक गल्ला उतारने का काम करते हैं। उसकी एवज में इनको किसान से पांच रुपये से 20 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से रुपये मिलते हैं। आढ़ती के माल को भरकर, सिलकर लादने के एवज में आठ से दस रुपये पैकेट के हिसाब से मजदूरी मिलती है। पल्लेदारों का कहना है कि सुबह से शाम तक जीतोड़ मेहनत करने के बाद इनके हाथ में चंद रुपये आते हैं, जिससे इनका परिवार चलता है। उनका कहना है कि मेहनत के हिसाब से पल्लेदारों की मजदूरी कम है। उनकी सरकार से मांग है कि मनरेगा श्रमिकों की तरह उनकी भी मजदूरी तय होनी चाहिए। पल्लेदारों का होना चाहिए बीमा: पल्लेदारों का कहना है कि उनको सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। कारण जागरूकता का अभाव या अधिकारियों की अनदेखी हो सकता है। उनका कहना है कि सरकार को सभी पल्लेदार वर्ग के लोगों का बीमा कराना चाहिए। उनके स्वास्थ्य की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। अगर किसी पल्लेदार के साथ अनहोनी हो जाती है तो बीमा कवर राशि से उसके परिवार के लोगों को आर्थिक मदद मिल सकती है। इससे उनकी परेशानी कम होगी, लेकिन इसके लिए शासन को पहल करने की जरूरत है।

ज्यादा उम्र होने पर पल्लेदारों को काम मिलने में कठिनाई

रामपुर। पल्लेदारों का काम उम्र के हिसाब से चलता है। लोग युवा पल्लेदारों को ज्यादा काम देते हैं।

बताते हैं कि बुजुर्ग पल्लेदारों को बोरे सिलने पर भी कोई नहीं लगाता। कई बार दया दिखाकर आढ़ती बूढ़े पल्लेदारों को बारदाना के काम में जरूर लगा देते हैं, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ ही दवा आदि की जरूरत नहीं पूरी हो पाती। उनकी मांग है कि उनके लिए मंडी में शिविर लगाया जाए और आयुष्मान कार्ड बनवाकर उन्हें इलाज में योजना का लाभ दिया जाना चाहिए। इससे वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकेंगे। वे स्वस्थ रहेंगे तो काम करने में दिक्कत होगी और परिवार के सदस्यों की आर्थिक सहायता करते रहेंगे। फिलहाल मंडी में अधिकतर पल्लेदार असुविधाओं के बीच काम करने के लिए मजबूर हैं। इसकी समस्याओं पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।

पल्लेदारों को नहीं मिलता है नियमित रोजगार

रामपुर। नियमित रोजगार नहीं मिलना भी पल्लेदारों के सामने बड़ी समस्या है। पल्लेदारों ने बताया कि मंडी शुल्क से बचने के लिए तमाम व्यापारियों ने जिले भर में अपने गोदाम बना लिए हैं। ऐसे में कई बार सुबह से शाम तक उन्हें बैठे रहना पड़ता है। इसके चलते मंडी में अब काम पहले की तुलना में काफी कम रह गया है। साथ ही वाजिब मजदूरी के लिए भी शोर मचाना पड़ता है। पल्लेदारों ने बताया कि मंडी के बाहर तो और भी खराब हालात हैं। वे मंडी छोड़कर जब बाहर गोदामों व व्यापारी के यहां जाते हैं तो वहां भी कम मजदूरी और कठिन काम मिलता है। बाहर के व्यापारी उनको माल उतराई के साथ हाथ ठेले से खींचकर सामान पहुंचाने को कह देते हैं।

बैठने के लिए नहीं टिनशेड का इंतजाम

पल्लेदार मेहनत करने के बाद थक हारकर आराम करना चाहे तो उनके बैठने के लिए कोई उचित व्यवस्था मंडी में नहीं है। ऐसा स्थान नहीं है, जहां काम के दौरान पल्लेदार आराम कर सके। पल्लेदारों को इस बात का दर्द है कि सर्दी, गर्मी, बारिश में वे खुले आसमान के नीचे काम करते रहते हैं। जब कभी अचानक बारिश होती है तो आढ़त के आगे खड़े होकर भीगने से बचते हैं। गर्मी में भी पल्लेदार काम करने को मजबूर होते हैं।

सुझाव

1. पल्लेदारों के बैठने के लिए ऐसी जगह हो जहां धूप, बारिश से बचा जा सके।

2. शुद्ध पानी और शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे पल्लेदारों को दिक्कत कम होगी।

3. बड़ी मंडियों में इनके लिए स्वास्थ्य केंद्र बनाया जाए। ताकि स्वास्थ्य की जांच हो सके।

4. सरकारी योजनाओं का लाभ देकर इन्हें भी बीमित किया जाना जरूरी है।

5. पल्लेदारों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय होनी चाहिए। इससे वे काम में रुचि लेंगे।

शिकायतें

1. मंडियों में पल्लेदारों के लिए पीने के पानी की उचित व्यवस्था नही है। इससे परेशानी होती है।

2. पल्लेदारों के लिए शौचालय की गंदगी भी बड़ी परेशानी है जहां कभी-कभी ही सफाई होती है।

3. पल्लेदारों की आय अनियमित होती है, जो बाजार की स्थिति पर निर्भर करती है।

4. अक्सर काम के दौरान चोटें लगती हैं, लेकिन स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाएं नहीं होतीं।

5. मंडी में पल्लेदारों को बैठने के लिए जगह नहीं है। सर्दी, गर्मी और बारिश में परेशनी होती है।

हमारी भी सुनें

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मंडी में दुकानों के आगे बिजली का पोल टूटा पड़ा है। इससे हादसा होने का खतरा बना हुआ है। यह पोल व्यापारी के साथ पल्लेदारों के लिए खतरा है। -राजीव सिडाना

मंडी में एक बैंक की सुविधा होनी चाहिए। हम अपना कैश जमा करने के लिए शहर को भागते हैं। हमेशा डर बना रहता है। पेयजल की व्यवस्था को भी दुरुस्त हो। -फिरोज

मंडी में काम कर रहे पल्लेदारों का बीमा होना चाहिए। अगर उनके साथ कोई दुर्घटना होती है तो सरकार को पल्लेदारों की मदद के बारे में सोचना चाहिए। पल्लेदारों का बीमा कराना चाहिए। -प्रेमपाल

अनाज मंडी में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। यहां स्ट्रीट लाइटें खराब है। रात्रि में माल उतरवाने में परेशानी होती है। पीने के पानी की सुविधा अच्छी नहीं है। -पुनीत

काम न मिलने से घर खर्च चलाने के लिए पड़ोसियों या रिश्तेदारों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है। हमारी न्यूनतम मजदूरी भी तय होनी चाहिए। -गंगा

विभागों में हमारी बात नहीं सुनी जाती है। पात्र होने के बावजूद हम लोगों के पास लेबर कार्ड नहीं है, जिससे हम लोगों को कोई सरकारी मदद नही मिलती। आयुष्मान कार्ड नहीं है। -अजय

ज्यादा उम्र के पल्लेदारों को कोई दूसरे काम का प्रशिक्षण मिल जाए तो वे बेहतर जिंदगी जी सकते हैं। वृद्ध पल्लेदार चोटिल हो चुके हैं। काम कम मिलता है। -अंकुर

सर्दी में प्रशासन ने हमारी सुध नहीं ली। सर्दी से बचाव के लिए मंडी में अलाव की व्यवस्था तक नहीं की गई। अधिकारियों ने मंडी में आकर भी नहीं देखा। -अरविंद

हम लोगों को काम की गारंटी चाहिए। हम सभी मेहनत करने से पीछे नहीं हटते। बस हमें काम का उचित मेहनताना मिले और रोज काम मिलना चाहिए। -रूपकिशोर

गेहूं और धान को बोरी में भरते समय उड़ने वाली धुंध से पल्लेदार सांस की बीमारी का शिकार हो गए हैं। शिविर में पल्लेदारों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए। -नंदू

प्रति क्विंटल तीन या पांच रुपये के हिसाब से ढुलाई और कुछ अनाज मिल जाता है। पल्लेदारों की संख्या अधिक है और काम कम है। इतनी महंगाई में घर चलाना मुश्किल हो रहा है। -जयवीर

दिन भर भारी भरकम बोझा ढोने से रीढ़ और कमर में दर्द होता रहता है, लेकिन हमारा काम ही ऐसा है कि मेहनत नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? हमारा दर्द पूछने वाला कोई नहीं है। -वीरेंद्र यादव

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