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बोले रामपुर : बाइक मैकेनिकों के सामने स्थायी दुकानों का संकट

Rampur News - बाइक मैकेनिकों को स्थायी दुकानों की कमी और प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वे दिन में 400-500 रुपये कमाते हैं, जो परिवार का भरण-पोषण करने में कठिनाई पैदा कर रहा...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरSun, 23 Feb 2025 03:49 AM
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बोले रामपुर : बाइक मैकेनिकों के सामने स्थायी दुकानों का संकट

बाइक मैकेनिक कुछ वर्ष पहले तक सड़कों के किनारे लकड़ी के बॉक्स में टूल्स रखकर बाइकों की मरम्मत किया करते थे लेकिन, अब समय बदल गया है। जहां जिले में बढ़ती आबादी के कारण जगह कम पड़ रही है, वहीं अस्थायी दुकानों को प्रशासन अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ देता है। प्रशासन द्वारा कुछ लोगों को दुकानें दी जाती हैं, जिस कारण कुछ लोग या तो दूसरा काम देखते हैं या फिर दूसरे प्रदेशों में काम करने चले जाते हैं। वहीं मैकेनिक दिन में 400 से 500 रुपये कमाता है। इस कमाई से परिवार को पालने में दिक्कतें आ रही हैं। बाइक मैकेनिकों ने हिन्दुस्तान के साथ अपना दर्द बयां किया है। जिले में कई सौ बाइक मैकेनिक सड़क किनारे अस्थायी दुकान लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। परंतु अस्थायी दुकानों के सामने जगह न होने के कारण युवा मैकेनिक अपने शहर को छोड़कर दूसरे शहरों में रोजी-रोटी कमाने को जा रहे हैं। मैकेनिकों की सबसे बड़ी समस्या अच्छी जगह दुकान न मिलना और अस्थायी दुकानदारों को प्रशासन द्वारा बार-बार अतिक्रमण के नाम पर सड़क किनारे से हटा देना माना जा रहा है। वहीं ऑटोपार्ट विक्रेताओं के सामने भी तमाम तरह की चुनौतियां हैं। बताया कि दुकानों पर काम नहीं होने कारण लेबर की सैलरी निकालना मुश्किल हो गया है। इसलिए दुकानों में सिर्फ आधा ही स्टाफ है, जिसकी सैलरी भी बहुत मुश्किल से निकल पा रही है।

एक बाइक मैकेनिक सप्ताह में 50 से 60 घंटे काम करता है। लेकिन जीवन में एक भी दिन रोमांचक, सक्रिय और बहुमुखी नहीं होता है। बाइक मैकेनिक रखरखाव और मरम्मत करते हैं, साथ ही कई तरह के नए या पुराने वाहनों का टेस्ट और निरीक्षण भी करते हैं। इस पेशे की खास बात यह है कि इसमें रोज़ाना नई चुनौतियां आती हैं और कभी भी कोई तय रूटीन नहीं होता। सुबह को ही अपने खाने का टिफिन पैक कराकर निकल जाना और दिनभर काम करके देर रात घर पहुंचते हैं। कुछ दुकानें सामान्य सेवाएं प्रदान करने के लिए मैकेनिकों को नियुक्त करती हैं, जिसमें कोई या सभी निवारक रखरखाव या मरम्मत सेवाएं शामिल हैं। इसमें तेल बदलना, ब्रेक और टायर सेवाएं या सामान्य ट्यून-अप शामिल हो सकते हैं। मैकेनिकों के लिए सुबह का समय तूफान से पहले की शांति होती है।

मैकेनिक के जीवन में हर सुबह जल्दी उठना होता है। ज़्यादातर दुकानें सुबह 9 से 10 बजे के बीच खुलती हैं। मैकेनिकों के लिए दिन की अच्छी शुरुआत करने के लिए सुबह की तैयारी बहुत ज़रूरी होती है। दिन की भागदौड़ शुरू होने से पहले किसी भी नए या छूटे हुए बाइकों की मरम्मत शुरू कर देते हैं। ग्राहकों के लिए अपने निर्धारित मरम्मत या रखरखाव से पहले वाहनों को दुकान के बाहर छोड़ना आम बात है। परंतु जब हमने शहर में मैकेनिकों से बातचीत की तो अधिकतर लोगों ने बताया कि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या स्थायी ठिया न होना है। बताया कि जब भी प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जाता है तो सबसे पहले उनके ही ठिए हटाए जाते हैं जिसकी वजह से व अपने आपको असहज महसूस करते हैं।

स्थायी दुकानें न होने से मैकेनिकों को ठिए के सामने वाहन खड़ा करने में भी डर बना रहता है कि कहीं पुलिस प्रशासन सड़क किनारे खड़ी बाइकों को कब्जे में लेकर जब्त न कर ले। वहीं मैकेनिकों ने बताया कि जब इलेक्ट्रिक बाइक, स्कूटी चालू हुई हैं तब से लगातार काम गिरता चला जा रहा है, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों में सर्विस या स्पेयर पार्ट का काम बहुत कम होता है। इलेक्ट्रिक वाहन सिर्फ मोटर और बैट्री से चलता है। बताया कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो धीरे-धीरे मैकेनिकों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी और परिवार का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो जाएगा।

पिछले कुछ वर्षों में घट गई स्पेयर पार्ट की बिक्री : देश में लगातार इलेक्ट्रिक वाहनों की तादाद बढ़ती जा रही है जिसकी वजह से ऑटोपार्ट्स की बिक्री में कमी आई है, वहीं कारोबारियों का कहना है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो धीरे-धीरे स्पेयरपार्टस का काम छोड़कर दूसरे काम करने पड़ेंगे, जिससे हम अपने परिवार का पालन पोषण सही तरह से कर सकें।

इलेक्ट्रिक वाहनों में मोटर और बैटरी होती है। जिसे ज्यादातर वाहन स्वामी कंपनियों में ही जाकर सही कराते हैं। जिस कारण छोटे-मोटे दुकानदारों को रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएंगे। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जिससे बाइक कारीगरों के काम में भी तेजी से कमी आ रही है। दुकानदारों की सैल कम होने उनकी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं।

ठंडी में मंदी, सैलरी निकलना मुश्किल : जिले में एक तरफ जहां बाइक मैकेनिकों की तमाम समस्याएं हैं वहीं ऑटोपार्ट्स विक्रेताओं को भी ठंड में खासी परेशानी का सामना करना पड़ है। ऑटोपार्ट्स का काम भी मंदी के दौर से गुजर रहा हैं, जहां शहर की दुकानों में पांच से छह लोगों का स्टाफ हुआ करता था वहीं घटकर यह स्टाफ आधा रह गया है।

इसका सबसे बड़ा कारण स्टाफ की सैलरी का निकलना ही है। दुकानों गोदामों का किराया ज्यादा और काम कम होने की वजह से स्टाफ की सैलरी निकालना मुश्किल हो रहा है जिसकी वजह से कारोबारियों ने अपनी दुकानों, गोदामों में स्टाफ आधा कर दिया है। कारोबारी का कहना है कि आधे स्टाफ की भी सैलरी निकालना मुश्किल हो रहा है अगर यही हालात रहे तो स्टाफ में और कमी करनी पड़ेगी। अगर ऐसा हुआ तो दुकानों पर काम करके अपने अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले मजदूरों के सामने समस्या आ जाएगी। मंदी की एक और वजह है इलेक्ट्रिक वाहन। इनके आ जाने से पेशेवर मैकेनिक बेरोजगार हो जा रहे हैं। लोग एजेंसियों में काम करा लेते हैं।

बाइक मैकेनिकों को दुकानें टूटने का लगा रहता है डर : शहर में पुल बैंक के सामने बनी नगर पालिका की दुकानों में करीब 25 वर्षों से दर्जनों बाइक मैकेनिक अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। कुछ माह पहले जब नगर पालिका में किराया जमा करने गए तो पालिका कर्मचारियों ने किराया लेने से साफ इंकार कर दिया। मैकेनिकों ने बताया कि सभी दुकानदारों ने सिविल कोर्ट रामपुर में केस फाइल किया था जिसमें उन्हें कोर्ट ने स्टे दिया है। परंतु दुकानें टूटने के भय से सभी मार्केट के लोग ग़मजदा हैं। दुकानदारों के नगर पालिका से दुकानें तोड़ने से पहले नई दुकानें बनाकर देने की मांग की है। दुकानें टूटने के सदमे में एक दुकानदार की हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। मैकेनिकों की पालिका से अपील है कि यदि शहर को सुंदर बनाने में दुकानें तोड़नी पड़े तो तोड़ें लेकिन उससे पहले हमारी व्यवस्था कहीं अन्यत्र अवश्य कर दे।

ज्वालानगर में तेजी से घटा बाइक मैकेनिकों का काम : एक दौर था जब रेलवे फाटक के पार ज्वालानगर में लोग लाइन से अपनी बाइकों की मरम्मत कराते थे, लेकिन अब ओवरब्रिज बनने के बाद वहां भी बाइक मैकेनिकों का काम खत्म होने की कगार पर है। ओवरब्रिज बन जाने के कारण लोग अब ऊपर से निकल जाते हैं और नीचे आकर बाइक मरम्मत कराने से गुरेज करते हैं। इस कारण यहां काम प्रभावित हुआ है।

मैकेनिकों के मुताबिक जब से ओवरब्रिज बना है तब से अब तक 40 से 50 प्रतिशत काम कम हो गया है। बताया कि दर्जनों बाइक मैकेनिक यहां से काम छोड़कर दूसरे राज्यों में काम रहे हैं। जबकि जो यहां से नहीं गया उसकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। जहां पहले 1000 से 1500 रुपये कमा लेते थे वहीं अब पूरे दिन में 300 रुपये कमाना भी मुश्किल हो गया है।

सुझाव

1. स्पेयर पार्ट्स के दुकानदारों को प्रशासन स्थायी दुकानें उपलब्ध कराए।

2. बाइक मैकेनिकों को सरकार द्वारा पेंशन उपलब्ध करानी चाहिए।

3. बाइक मैकेनिकों के पास बाइकों की मरम्मत करने के लिए अपनी दुकानें होनी चाहिए।

4. प्रशासन द्वारा बाइक मैकेनिकों को सस्ते ब्याज पर लोन उपलब्ध कराना चाहिए।

5. अस्थायी मैकेनिकों को अतिक्रमण के नाम पर हटाया न जाए।

शिकायतें

1. अतिक्रमण के नाम पर नगर पालिका दुकानें तोड़ना चाहती है।

2. अस्थायी बाइक मैकेनिकों के पास स्थायी दुकानें नहीं हैं।

3. सरकार की तरफ से बाइक मैकेनिकों को किसी भी प्रकार से सरकारी सहायता का लाभ न मिलना।

4. पुलिस प्रशासन द्वारा बाइक मैकेनिकों को अतिक्रमण के नाम पर फटकारना।

5. बाइक मैकेनिकों को सरकार की तरफ से बैंक लोन उपलब्ध नहीं कराना।

हमारी भी सुनें

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कई वर्षों से लगातार बाइक मैकेनिक का काम कर रहे हैं, चुनाव का समय आता है तो नेता बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं लेकिन चुनाव के बाद कोई उनकी परेशानियों को पूछता तक नहीं।

- मोहन, बाइक मैकेनिक

ठंड में काम का बहुत मद्दा है, पहले जहां दिन में 1000 से 1500 रुपये तक का काम हो जाता था वहीं अब 400 रुपये तक का काम होना मुश्किल हो गया है।

-शफीक अहमद, बाइक मैकेनिक

इलेक्ट्रिक वाहनों के चलते काम में बहुत कमी आई है। जहां दुकान पर सुबह से ही भीड़ लग जाती थी, वहीं अब ग्राहकों के इंतजार में पूरा दिन बीत जाता है। इक्का-दुक्का ही बाइक बनवाने आते हैं।

-चंदन, बाइक मैकेनिक

शीतलहर चलने से लोगों ने वाहनों का इस्तेमाल कम कर दिया है, जिस कारण काम बहुत ही धीमा चल रहा है। पूरे दिन दुकान पर खाली बैठकर ही काट रहे हैं। काम बहुत मंदा है।

-ताज मोहम्मद, बाइक मैकेनिक

पहले 700 से 800 रुपये कमा लेते थे लेकिन अब अपना और परिवार का गुजरा करना भी मुश्किल हो गया है, सरकार को मैकेनिकों की पेंशन चालू कर देना चाहिए। जिससे राहत मिलेगी।

-शादाब, बाइक मैकेनिक

काम की स्थिति बहुत ही खराब है अगर ऐसा ही चलता रहा तो परिवार का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो जाएगा। पूरे दिन खाली बैठ रहे हैं। इससे रोजी-रोटी पर संकट छाया है।

-महिपाल सैनी, बाइक मैकेनिक

हमारे पास स्थायी दुकान न होने के कारण प्रशासन हमें अतिक्रमण के नाम पर फटकार कर भगा देता है। जिससे हम काम नहीं कर पाते हैं। प्रशासन को हमारी ओर ध्यान देना चाहिए।

-सचिन रस्तोगी, बाइक मैकेनिक

दुकान पर बाइकों की मरम्मत करने पर 400 रुपये मिल जाते हैं, जिससे घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। सरकार अगर मैकेनिकों को पेंशन दे तो उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी।

-सोनू, बाइक मैकेनिक

स्थायी दुकान न होने के कारण दुकान जगह-जगह लगाने से काम ठीक से जम नहीं पाता। प्रशासन को अस्थायी दुकानदारों को दुकानें आवंटित करनी चाहिए।

-अशोक, बाइक मैकेनिक

काम बहुत मद्दा है। घर का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। इस समय सब्जी खरीदने और बच्चों का खर्च चलाना भी मुश्किल होता जा रहा है। समस्या के समाधान की मांग है।

-धर्मेंद्र, बाइक मैकेनिक

नगर पालिका दुकानों को तोड़ना चाहती है, जिससे मार्केट के सभी दुकानदार ग़मजदा हैं। हमने सिविल कोर्ट में केस दायर किया है। प्रशासन हमारी ओर ध्यान दे।

-दानिश, बाइक मैकेनिक

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